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ग्लासगो में होने जा रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 26) में ग्लोबल सोलर ग्रिड की महत्वाकांक्षी योजना को संभावित रूप से अपनाया जायेगा. इस योजना को One Sun One World One Grid (OSOWOG) के नाम से भी जाना जाता है. अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन या ISA इस पहल को लागू करने वाली संस्था है.
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के महानिदेशक अजय माथुर ने 18 अक्टूबर को कहा कि,
TERI और फ्रांसीसी एनर्जी फर्म AETS और EDS भी योजना पर काम कर रहे हैं. गौरतलब है कि OSOWOG उन मुख्य मुद्दों में से एक है जिस पर ISA की चल रही चौथी जनरल असेंबली में चर्चा की जाएगी. यह बैठक 18 से 21 अक्टूबर 2021 के बीच वर्चुअल मोड में आयोजित की जा रही है. ऐसे में सवाल है कि आखिर ग्लोबल सोलर ग्रिड या OSOWOG क्या है ?
ग्लोबल सोलर ग्रिड या OSOWOG है क्या ?
अक्टूबर 2018 में "वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड" (OSOWOG) का कॉन्सेप्ट सबसे पहली बार एक वैश्विक मंच पर सामने आया था. इसे तब अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली जनरल असेंबली में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रस्तुत किया था.
इसके बाद अपने 2020 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पीएम मोदी ने इसे एक मेगा-प्लान के रूप में फिर से सामने लाया, जिसका उद्देश्य एक ट्रांस-नेशनल इलेक्ट्रिक ग्रिड का निर्माण करना था जो चरणबद्ध तरीके से दुनिया भर में बिजली की आपूर्ति करेगा.
2020 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने OSOWOG के लिए एक महत्वाकांक्षी ड्राफ्ट प्लान का प्रस्ताव रखा. इसका उद्देश्य 140 देशों को एक "कॉमन ग्रिड" के माध्यम से जोड़ना है जिसका उपयोग सौर ऊर्जा के ट्रांसफर के लिए एक चैनल के रूप में किया जाएगा.
इस प्लान के पीछे मंत्र यह है कि- "सूर्य कभी अस्त नहीं होता" क्योंकि यह किसी भी समय दुनिया के किसी न किसी भाग में हमेशा स्थिर रहता है. इस पहल का उद्देश्य सूरज से चौबीसों घंटे बिजली उत्पन्न करना है, क्योंकि यह दुनिया के एक हिस्से में डूबता है तो दूसरे में उगता है.
OSOWOG को चरणबद्ध तरीके से लागू किए जाने की उम्मीद है और इसे तीन मुख्य चरणों में विभाजित किया गया है:
पहले चरण में एशियाई महाद्वीप को आपस में ग्रिड से जोड़कर संपर्क सुनिश्चित किया जायेगा. इसमें भारतीय ग्रिड को मिडिल-ईस्ट , दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के ग्रिड से अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के अलावा सौर ऊर्जा शेयर करने के लिए एक साझा ग्रिड के रूप में जोड़ा जाएगा.
दूसरा चरण पहले से ही काम कर रहे पहले चरण को अफ्रीका के नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधनों के पूल से जोड़ेगा. पहले दो चरणों के लिए सौर स्पेक्ट्रम को दो व्यापक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
पहला, ‘Far East' जिसमें थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार आदि जैसे देश शामिल हैं.
दूसरा, ‘Far West’ जिसमें अफ्रीकी और मिडिल-ईस्ट के क्षेत्र कवर होंगे. भारत इस स्पेक्ट्रम के मध्य में आता है.
तीसरे और अंतिम चरण का लक्ष्य ग्लोबल कनेक्टिविटी प्राप्त करना है. इस परियोजना का उद्देश्य "नवीकरणीय ऊर्जा का सिंगल पावर ग्रिड" बनाने के लिए अधिक से अधिक देशों को शामिल करना है, जिसे दुनिया भर के देशों द्वारा प्रयोग किया जा सकेगा.
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