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वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (World Gold Council) द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2021 में गोल्ड रीसाइक्लिंग (Gold Recycling) के मामले में चौथा सबसे बड़ा देश बनकर उभरा है. इस लिस्ट में चीन पहले नंबर पर है. भारत ने कुल 75 टन सोना रीसाइकिल किया है, जो दुनिया भर में रीसाइकिल किए गए सोने का 6.5 प्रतिशत है. WGC के मुताबिक पिछले पांच सालों में भारत द्वारा की गई गोल्ड सप्लाई का 11 फीसदी हिस्सा पुराने गोल्ड से आया है.
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के भारत के रीजनल सीईओ सोमसुंदरम पीआर ने कहा-
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने रीसाइकिल्ड गोल्ड को ऐसे गोल्ड के रूप में परिभाषित किया है, जो कंज्यूमर या अन्य लोगों द्वारा कैश के लिए बेचा जाता है. इसमें गोल्ड के बदले गोल्ड का आदान-प्रदान शामिल नहीं है, जैसे कि रीटेल कस्टमर पुराने आभूषणों को नए के लिए बदलते हैं.
रीसाइकिल करने योग्य सोना या तो पुराने गहनों से लिया जा सकता है, जिसे उच्च-मूल्य वाले स्क्रैप के रूप में जाना जाता है. या फिर इंडस्ट्रियल स्क्रैप मैटेरियल- खराब इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट जैसे कंप्यूटर, टैबलेट और मोबाइल फोन से मिलता है. इस तरह के इक्विपमेंट्स के सर्किट बोर्ड्स में सोने का उपयोग किया जाता है.
बता दें कि गोल्ड कभी खराब या खत्म नहीं होता है, इसलिए जो भी सोना कभी खनन किया गया था वह अभी भी मौजूद है और इसे रीसाइकिल किया जा सकता है. गोल्ड माइनिंग की जगह सोने के रीसाइकिल की भी की जाती है, क्योंकि माइनिंग करते वक्त विशेष रूप से एक्सट्रैक्शन के स्टेज में भारी मात्रा में जहरीली गैसें निकलती हैं. इन गैसों का ईको-सिस्टम पर बुरा प्रबाव पड़ता है.
ज्वैलरी और इंडस्ट्रियल स्क्रैप को रीसाइकिल कई तरह से किया जाता है. ज्वैलरी के कुछ रिफाइनर मेटल को गर्म करके और पिघलाकर मेटल्स को अलग करते हैं. यह ज्वेलर द्वारा छोटे पैमाने पर किया जा सकता है, क्योंकि इसके लिए किसी खास तरह के उपकरण या ज्ञान की जरूरत नहीं होती है. हालांकि, हाई लेवल की शुद्धता प्राप्त करने के लिए यह प्रक्रिया पर्याप्त नहीं है. इसलिए, इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से गोल्ड की रिकवरी से पहले रिफाइनर एसिड में मेटल को घोलने का सहारा लेते हैं.
इंडस्ट्रियल रीसाइक्लिंग के लिए बड़ी साइटों और इक्विपमेंट की जरूरत होती है.
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्क्रैप आपूर्ति का 8 प्रतिशत हिस्सा भारत में है. लगभग 85 प्रतिशत पर, पुराने आभूषण भारत में सबसे अधिक रीसाइकिल्ड गोल्ड के प्रोडक्ट हैं. कुल भारतीय कबाड़ सप्लाई में इंडस्ट्रियल सेग्मेंट की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से भी कम है.
WGC की रिपोर्ट के मुताबिक 2012-14 में मंदी और COVID-19 महामारी के बावजूद, नकदी के लिए सोने के आदान-प्रदान की हिस्सेदारी व्यापक रूप से स्थिर रही है. यह देश में गोल्ड लोन इंडस्ट्री की जीवंतता को दर्शाता है.
अनुमान है कि 2013 और 2021 के बीच रिफाइनिंग क्षमता 6 गुना से अधिक 1500 टन बढ़ी है. हालांकि, अधिकांश रिफाइनर की वार्षिक क्षमता 50 टन से कम है.
रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री की ज्यादातर समस्याएं इसकी असंगठित प्रकृति से उत्पन्न होती हैं. इसके अलावा, यह देखते हुए कि गोल्ड के लिए लोगों के मन में एक सेंटीमेंटल और धार्मिक वेल्यू है. इसे एक अंतर-पीढ़ी की संपत्ति माना जाता है.
इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में सोने के मूल्य के बारे में जागरूकता की कमी है. इन वजहों से बाजार में ज्यादातर स्टॉक के वापस आने की संभावना नहीं है.
पिछले कुछ सालों में रिफाइनरों ने स्क्रैप इकट्ठा करने के लिए अतिरिक्त सेंटर खोल लिए हैं. हालांकि, वे संख्या में कम हैं और ज्यादातर बड़े शहरों में स्थित हैं. इस प्रकार रिफाइनरी को स्क्रैप भेजने की प्रक्रिया टाइम टेकिंग हो सकती है. इसके बजाय, रिफाइनर्स छोटे पैमाने की असंगठित रिफाइनरी में गोल्ड पिघलाने का विकल्प चुनते हैं. यह वैकल्पिक तंत्र विशेष रूप से छोटे स्क्रैप वॉल्यूम वाले ज्वैलर्स के लिए फायदेमंद है.
इसके अलावा, स्क्रैप मार्केट में ज्वैलर्स के बीच विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में नकद लेनदेन का प्रचलन है, जो मान्यता प्राप्त रिफाइनर के लिए अच्छा नहीं है.
डब्ल्यूजीसी के मुताबिक पूरा सिनेरियो रिफाइनर की ज्वैलर्स से ठीक-ठाक मात्रा में स्क्रैप प्राप्त करने में फेल होने का नतीजा है.
जहां तक उपभोक्ता का सवाल है, वह ये है कि मौजूदा जीएसटी नियमों में उनके लिए 3 प्रतिशत टैक्स की वसूली का प्रावधान नहीं है, जो उन्होंने शुरू में अपने आभूषण खरीदने पर चुकाया होगा. अनुमानित नुकसान जो वस्तु के वजन और मात्रा के अनुसार अलग-अलग होगा, कस्टमर्स को गोल्ड बेचने के लिए हतोत्साहित कर सकता है.
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