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पाकिस्तान (Pakistan) में इन दिनों चल रहे राजनीतिक संकट की चर्चा जोर-शोर से है. 18 अगस्त 2018 को इमरान खान Imran Khan ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. उस समय उन्होंने 'नया पाकिस्तान' 'New Pakistan' बनाने का वादा किया था, तब लगा था कि देश में आमूल-चूल बदलाव आएगा. तब से लेकर अब तक पाकिस्तान की दशा नहीं बदली. हाल ही में खुद इमरान खान ने यह बात स्वीकारी है कि उन्होंने जो वादा किया था, वह वो पूरा नहीं कर पाए हैं. ऐसे में जानना जरूरी है कि वो कौन से मोर्चे हैं जिनपर इमरान नाकाम रहे और जिनके कारण ये नौबत आई.
इमरान खान ने भले ही नया पाकिस्तान बनाने का नारा दिया था लेकिन उनके कार्यकाल में देश में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ा है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्टाचार से जुड़ी करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की भ्रष्टाचार के मामले में स्थिति पहले से भी बदहाल हो गई है. पिछले साल की तुलना में पाकिस्तान 16 स्थान गिर गया है और 180 देशों में 140 वें स्थान पर पहुंच गया है.
2018 के बाद से रैंकिंग में पाकिस्तान लगातार नीचे ही जा रहा है. 2018 में इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने उसके बाद 2019 में करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में पाकिस्तान का 120वां स्थान था. 2020 में पाकिस्तान 4 पायदान नीचे फिसलकर 124वें स्थान पर आ गया. 2021 में तो भ्रष्टाचार इस कद बढ़ा कि 16 पायदान का गोता लगाकर पाकिस्तान 140वें स्थान पर पहुंच गया. ऐसे में पाकिस्तान में भ्रष्टाचार के खात्मे का वादा करके सत्ता में आए इमरान खान पर विपक्ष ने जोरदार हमला बोला.
इमरान खान सरकार लोगों को रोजगार देने में विफल साबित हुई. पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स (पीआईडीई) के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में बेरोजगारी दर 16 फीसद तक पहुंच गई है, जोकि इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान सरकार के 6.5 फीसदी के दावों के उलट है. Dawn अखबार के मुताबिक पीआईडीई ने बेरोजगारी की बढ़ती दर की एक गंभीर तस्वीर को उजागर किया है और कहा है कि देश में कम से कम 24 फीसदी शिक्षित लोग बेरोजगार हैं.
वहीं पाकिस्तान की स्टैटिस्टिक्स ब्यूरो द्वारा प्रकाशित श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार 2017-18 में पाकिस्तान की बेरोजगारी 5.8 फीसदी से बढ़कर 2018-19 में 6.9 फीसदी हो गई. सत्ता में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के पहले वर्ष में पुरुषों और महिलाओं दोनों के मामले में बेरोजगारी में बढ़ोतरी देखी गई. पुरुष बेरोजगारी दर 5.1 फीसदी से बढ़कर 5.9 फीसदी और महिला बेरोजगारी दर 8.3 फीसदी से बढ़कर 8.9 फीसदी हो गई.
यूएन की एक रिपोर्ट में पाकिस्तान को विभिन्न स्रोतों से कर्ज लेने के प्रति चेताया गया था. आईएमएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज बढ़कर 90 अरब डॉलर हो गया है. इसमें चीन से लिए कर्ज की हिस्सेदारी 20 फीसदी है. पाकिस्तान के अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने एसबीपी डाटा का हवाला देते हुए कहा था कि इमरान सरकार आने के बाद कर्ज में 70 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. जबकि पिछले साल पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने दावा किया था कि उनके ढाई साल के शासनकाल के दौरान पाकिस्तान ने 20 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज चुकाया गया है, जो पाकिस्तान में अब तक विदेशी कर्जों की रिकॉर्ड अदायगी है.
लेकिन सबसे अहम तथ्य यह है कि उनके कार्यकाल के दौरान देश का कुल विदेशी कर्ज अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक पाक सरकार ने कर्ज तो चुकाया, लेकिन विदेशी कर्ज को अदा करने के लिए, नया कर्ज लेकर देश पर कर्ज का और बोझ डाल दिया. पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने दिसंबर 2021 में कहा था कि सरकार पुराने कर्ज को चुकाने के लिए नए कर्ज ले रही है. पाकिस्तान खुद को दिवालिया घोषित होने से बचाने के लिए लगातार कर्ज ले रहा है. पाकिस्तान ने पिछले साल के आखिरी छह महीनों में 10.4 अरब डालर का कर्ज लिया, जो उसके पिछले साल की उसी अवधि की तुलना में 78 फीसदी अधिक था. पाकिस्तान दुनिया के 10 सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में शामिल है.
इमरान सरकार के दौरान पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई से जनता पूरी तरह त्रस्त है. पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो (PBS) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक खाद्य और ऊर्जा वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण मार्च में मुद्रास्फीति की दर 12.7% बढ़ी. यह जून 2018 की तुलना में तीन गुना अधिक है. कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स (CPI) के मुताबिक पाकिस्तान में मुद्रास्फीति 22 जनवरी के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर है. जनवरी में मुद्रास्फीति 13 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जबकि फरवरी 2020 में यह 12.4 प्रतिशत थी. PBS के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 9 महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति अभी भी उच्च स्तर पर है. पाकिस्तान में महंगाई ने सबसे ज्यादा गरीब और मध्यम वर्ग का हाल बुरा कर रखा है. वहां खाने की कीमतें दोगुना हो चुकी हैं, जबकि घी, तेल, आटा और चिकन की कीमतें ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच चुकी हैं.
इमरान खान ने पाकिस्तान को खुशहाल बनाने का सपना दिखाते हुए सत्ता हासिल की थी. लेकिन उनकी सरकार के दौरान देश की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती रही. महंगाई, विदेशी कर्ज और ईंधन के दाम सबमें बढ़ोत्तरी होती गई जिससे आम लोग बेहाल हो गए. ऐसे में आर्थिक नाकामी को भी इमरान सरकार जाने की अहम वजह माना जा रहा है.
इमरान खान ने बीते साढ़े तीन साल में पांच वित्त मंत्री बदले लेकिन इसके बावजूद भी आर्थिक मोर्चे पर सरकार कुछ खास नहीं कर पायी. देश में कोई मेगा प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका, ना ही उनके पास देश को चलाने के लिए कोई विजन नजर आया.
पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2018 में 5.8 फीसदी पर थी, अगले वित्त वर्ष यानी 2019 में ही यह दर 0.99 फीसदी गिर गई. विश्व बैंक के मुताबिक 2020 में एक बार फिर विकास दर में 0.53 फीसदी की गिरावट आई. मौजूदा दौर में पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर 3.6 फीसदी है.
अगस्त 2018 में इमरान सरकार बनने से ठीक पहले डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपये की कीमत 123 थी, जबकि अब एक डॉलर की कीमत 183 पाकिस्तानी रुपये है. इमरान खान के कार्यकाल में पाकिस्तान की मुद्रा 33 फीसदी यानी एक-तिहाई तक गिर गई है. पाकिस्तानी रुपया एक साल से कम समय में ही डॉलर के मुकाबले 12 फीसदी कमजोर हुआ.
पाकिस्तान में सत्ता चलाने के लिए सेना का समर्थन जरूरी होता है, पाकिस्तान का विपक्ष भी लगातार आरोप लगाता रहा है कि इमरान खान को जीत दिलाने और फिर उनकी सरकार बचाने में सेना की अहम भूमिका रही है. लेकिन अब इमरान और सेना के रिश्तों के बीच दरार आ गई है. कई विश्लेषकों का मानता है कि सेना और इमरान के बीच पिछले साल अक्टूबर के बाद से रिश्ते खराब होना शुरू हो गए थे. तब इमरान ने पाकिस्तान की ताकतवर खुफिया एजेंसी इंटर स्टेट इंटेलिजेंस यानी आईएसआई के नए चीफ की नियुक्ति पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था. इमरान खान इस पद पर अपने वफादार फैज हमीद को ही कायम रखना चाहते थे, जबकि सेना प्रोटोकॉल के तहत इस पद के लिए लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम की नियुक्ति के पक्ष में थी. कहा जाता है कि इसी विवाद के बीच इमरान खान ने सेना के आदेश को टालने और अपनी मर्जी चलाने की कोशिश की. यहां से पहली बार इमरान सरकार और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच विवाद खुलकर सामने आ गए.
सत्ता में आने के साथ ही इमरान खान ने विपक्ष को निशाना बनाना शुरू कर दिया था. जब उन्हें विपक्ष के साथ सुलह की सलाह दी जाती तो इमरान सरेआम विपक्षी नेताओं के लिए कहते कि इन चोरों, डाकुओं और देश का खजाना लूटने वालों से मैं क्या बात करूं. इसका असर यह हुआ कि सुधार के लिए बनने वाले कई कानून अटके रहे और संसद के सत्र तनाव में ही खत्म होते रहे.
अपने राजनीतिक विरोधियों को इमरान तरह-तरह के नामों से संबोधित करते थे. जैसे नवाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी को 'चोर' और 'डाकू', फजल-उर-रहमान को डीजल, बिलावल भुट्टो जरदारी को टांगे कांपने वाला और मरियम नवाज को मरियम बीबी कहते थे.
हाल ही में जब विपक्ष ने पहली बार इमरान को अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की धमकी दी थी तो पीएम ने कहा था कि वे संसद के बाहर अपने 10 लाख समर्थक खड़े कर देंगे और फिर देखेंगे कि कौन-कौन अंदर जाता है.
इमरान ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे बयान दिये जिससे उनकी आलोचलना हुई, जिसकी हंसी उड़ाई गई
जून 2020 में नेशनल असेंबली को संबोधित करते इमरान खान ने ओसामा बिन लादेन को शहीद बताया था.
अप्रैल 2021 में इमरान ने एक साक्षात्कार के दौरान देश में बलात्कार के मामलों में तेजी के लिए अश्लीलता और महिलाओं के कपड़ों को भी जिम्मेदार बताया था.
हजारा समुदाय को उन्हें ब्लैकमेल न करने जैसे बयानों में भी इमरान ने लापरवाह भाषा का इस्तेमाल किया था.
'तटस्थ तो जानवर होते हैं' जैसे बयान भी उनके पक्ष में नहीं गए थे. जिसके लिए बाद में उन्हें सफाई भी देनी पड़ी.
पाकिस्तान के विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) के प्रवक्ता मरियम औरंगजेब ने कहा था कि लोगों से लंबे चौड़े वादे करने के बाद पाकिस्तान के पीएम इमरान खान गायब हो गए हैं. टिडि्डयों के हमले से फसलें तबाह हो रही हैं और कोविड से मौते बढ़ रही हैं लेकिन सरकार के पास इससे निपटने के लिए कोई रणनीति नहीं है.
कोविड मैनेजमेंट को लेकर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने कहा था कि दुनिया भर की स्थानीय सरकारें कोविड -19 संकट के मामले में सबसे आगे आकर काम कर रही थीं, लेकिन पाकिस्तान में ये संस्थान एक हद तक अपने नागरिकों से कटे हुए थे. पाकिस्तान में महामारी को रोकने के पर्याप्त प्रयासों के बावजूद, परिणाम खराब रहे हैं. कोरोना से जंग में इमरान खान कड़े फैसले लेने में असफल रहे. साथ ही वे लॉकडाउन का ऐलान भी करने से बचते दिखे थे.
इन दिनों इमरान खान सरेआम कह रहे हैं कि वे विदेशी साजिश का शिकार हुए हैं. शीत युद्ध के बाद से पाकिस्तान हर युद्ध में पश्चिम का साथ देता रहा है. अफगानिस्तान में तो वह चार दशकों तक अमेरिका का सैन्य सहयोगी बना रहा. जनरल परवेज मुशर्रफ जैसे शक्तिशाली सैन्य तानाशाह भी अमेरिका के एक कॉल पर मदद देने के लिए तैयार हो जाते थे. लेकिन अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के बाद अमेरिकी कॉल आना बंद हो गए. अमेरिका को अफगानिस्तान से जाने के बाद भी पाकिस्तान से काफी उम्मीदें थीं. अमेरिका चाहता था कि अफगानिस्तान में उनकी पसंद की सरकार बनवाने में पाकिस्तान मदद करे. पाकिस्तान ने यहां अपने कदम पीछे खींच लिए थे.
पाकिस्तान पारंपरिक रूप से अमेरिका का सहयोगी रहा है, लेकिन इमरान खान बार-बार ये दावा करते रहे कि उन्होंने पाकिस्तान को अमेरिका के प्रभाव से मुक्त करने और स्वतंत्र विदेश नीति बनाने की कोशिश की. वहीं वो चीन और रूस के करीब जाते नजर आए हैं. जिससे अमेरिका उनसे नाखुश है. बीजिंग विंटर ओलंपिक खेलों का अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने बहिष्कार किया था. जबकि इससे उलट चीन को खुश करने के लिए पीएम इमरान खान खुद इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए इसमें शामिल हुए थे.
पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन पर हमले की निंदा करने की मांग की गई थी लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के एक दिन पहले इमरान खान रूस यात्रा पर मॉस्को पहुंच गए जिसको लेकर पश्चिमी देश उनसे साफ तौर पर नाराज हैं.
खबर यह भी है कि चीन के ड्रीम प्रोजेक्ट सी-पैक कॉरिडोर पर इमरान ने सत्ता में आने से पहले और बाद में कुछ विरोध किया था जिससे चीन भी इमरान से खुश नहीं है. चीन के सरकारी महकमे में शाहबाज शरीफ को इमरान से ज्यादा लोकप्रिय बताया जाता है.
इमरान इस्लामिक देशों को भी एकजुट करने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने तुर्की और मलेशिया के साथ एक गुट बनाने की कोशिश की थी, जिसे सऊदी अरब की नाराजगी के कारण रोक दिया गया था. बाद में अफगानिस्तान और पिछले दिनों इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) की लगातार दो बैठकें इस्लामाबाद में आयोजित की गईं.
इमरान खान सरकार की एक बड़ी नाकामी ये रही कि वो अपने पड़ोसी देशों से रिश्ते ठीक नहीं रख सके. भारत और ईरान और खासकर पश्चिमी देशों के साथ पाकिस्तान के रिश्ते बहुत निचले स्तर तक चले गए. इसे भी इमरान सरकार की नाकामी की एक बड़ी वजह माना जा रहा है.
एक तरफ इमरान अमेरिका पर खुले आरोप लगा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने हाल ही में कहा है कि पाकिस्तान के चीन के साथ-साथ अमेरिका के साथ भी उत्कृष्ट रणनीतिक संबंध हैं और पाकिस्तान इन दोनों देशों के साथ अपने रिश्तों को बिगाड़े बिना इसे और विस्तार देना चाहता है.
इमरान ने सत्ता संभालते वक्त देश में शांति और चैन लाने का वादा किया था. लेकिन वहां आतंकी घटनाओं में इजाफा हुआ. साउथ एशिया पीस की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में पाकिस्तान में 106 आतंकी घटनाएं देखने को मिलीं जबकि 2021 में यह बढ़कर 325 के आंकड़े पर आ गईं. द डिप्लोमेट की रिपोर्ट के मुताबिक इमरान ने आतंक को रोकने के लिए आंतकी संगठनों के साथ करार किया था. जिसमें तहरीक-ए-तालिबान पाक (TTP) जैसे संगठन शामिल थे, लेकिन इससे घटनाओं में कोई गिरावट नहीं हुई बल्कि TTP ने पिछले साल 12 पाक सैनिकों को मार गिराया था.
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