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मध्य प्रदेश का इंदौर (Indore) देश का सबसे स्वच्छ शहर है, इस शहर को लगातार छठवीं बार भारत का सबसे स्वच्छ शहर घोषित भी किया गया है. 2016 में जब स्वच्छता सर्वे शुरू हुआ था तब इंदौर 25वें नंबर पर था, तब से लेकर लगातार छह सालों तक भारत के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में नेशनल सिविक रैंकिंग में शीर्ष पर रहने तक, इस शहर के कायाकल्प की कहानी काफी दिलचस्प है
इंदौर को भारत के पहले सेवन स्टार (सात सितारा) कचरा मुक्त शहर का गौरव भी प्राप्त है, स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण का एक अहम उद्देश्य है. इस स्टोरी में हम इस विषय पर बात करेंगे कि कैसे भारत का सबसे स्वच्छ शहर अपने कचरे का प्रबंधन करता है? इसके अलावा हम यह भी जानेंगे कि वे कचरे से रेवेन्यू कैसे बनता है?
मध्यप्रदेश की कर्मिशयल कैपिटल यानी वाणिज्यिक राजधानी कहलाने वाले इंदौर शहर की आबादी लगभग 35 लाख है, यहां से प्रतिदिन 1900 टन कचरा निकलता है. यह शहर में रोजाना 1200 टन सूखा कचरा और 700 टन गीला कचरा निकलता है. यहां दो वार्डों में एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जिसकी शुरुआत हुई थी आज वह एक पूर्ण रूप में एक एक्सरसाइज बन गई है.
2016 के अंत तक आईएमसी यानी इंदौर म्युनिसिपल काॅर्पोरेशन ने डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण के शत-प्रतिशत आंकड़े को छू लिया था.
जहां एक ओर देश में अधिकांश स्थानों पर वहां के कचरे को दो श्रेणियों (गीले और सूखे कचरे) में अलग किया जाता है, वहीं इंदौर में कचरे को एक कलेक्शन पॉइन्ट पर छह श्रेणियों में अलग किया जाता है.
इंजीनियर महेश शर्मा इंदौर नगर निगम के स्वच्छता विंग के सुपरिटेंडेंट हैं, उन्होंने आउटलुक को बताया कि आईएमसी (इंदौर नगर निगम) के पास 850 वाहन हैं जो घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से कचरा इकट्ठा करते हैं और इसे छह श्रेणियों में अलग करते हैं.
कचरा संग्रहण के लिए जिन वाहनों का उपयोग किया जाता है, उनमें अलग-अलग प्रकार के कचरे के लिए अलग-अलग कंपार्टमेंट (डिब्बे) निर्धारित किए गए हैं. उदाहरण के लिए इस्तेमाल करने के बाद फेंके गए सेनेटरी पैड को एक अलग कचरे के डिब्बे में डाला जाता है.
इंजीनियर महेश शर्मा के अनुसार इंदौर शहर को साफ रखने में लगभग 8,500 सफाई मित्र (स्वच्छता कर्मचारी) अपना अहम योगदान देते हैं. ये कर्मचारी तीन शिफ्ट में रात-दिन काम करते हैं.
इंदौर शहर की अपशिष्ट निपटान प्रक्रिया (वेस्ट डिस्पोजल प्रोसेस) का सबसे प्रमुख बिंदु एक बायो-सीएनजी संयंत्र है, जोकि शहर भर से एकत्र किए गए गीले कचरे पर चलता है. शहर के अधिकारियों द्वारा इसे एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र कहा जाता है.
अधिकारियों के अनुसार इस संयंत्र में बनी बायो-सीएनजी से 150 सिटी बसें चलाई जा रही हैं. यहां की सीएनजी कमर्शियल सीएनजी से 5 रुपये सस्ती है.
इस (इंदौर) नगरीय निकाय को पिछले वित्तीय वर्ष में कचरे के निपटान से करीब 14.45 करोड़ रुपये की आय हुई थी. इस आय में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कार्बन क्रेडिट बेचने से मिले 8.5 करोड़ रुपये और बायो-सीएनजी संयंत्र को कचरा मुहैया कराने के बदले निजी कम्पनी द्वारा दिया जाने वाला 2.52 करोड़ रुपये का सालाना प्रीमियम शामिल है.
शहर में निकलने वाले सीवेज या गंदे पानी को विशेष संयंत्रों में उपचारित (ट्रीटमेंट) किया जाता है और 200 सार्वजनिक बगीचों के साथ ही खेतों और निर्माण गतिविधियों में इसका दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है.
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