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1955 के सिटिजनशिप एक्ट में इस बात का प्रावधान है कि केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाएगी. इसके लिए केंद्र सरकार पर देश में हर परिवार और व्यक्ति की जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी है.
सिटिजनशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत हर नागरिक के लिए अपने आप को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य बनाया गया था. इसी पर एनआरसी की तरफ पहला कदम है नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर.
असम और मेघालय को छोड़कर पूरे देश के लिए पॉपुलेशन रजिस्टर को 2015-16 में अपडेट किया गया था. इसके लिए आंकड़े 2011 की जनगणना के साथ ही जुटाए गए थे.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य में अवैध तरीके से रहने वाले लोगों की पहचान कर उनको वापस भेजने के मकसद से असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस बनाने का काम चल रहा है.
इसी रजिस्टर का पहला ड्राफ्ट 31 दिसंबर को प्रकाशित होगा. इस रजिस्टर में उन लोगों के नाम होंगे जो भारत के नागरिक माने जाएंगे. इसके लिए कटऑफ डेट है 25 मार्च 1971. यानी वो लोग जो खुद, उनके माता-पिता या पूर्वज इस तारीख के पहले से असम में रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिक माना जाएगा. इसके लिए उन्हें दस्तावेजों के जरिए साबित करना होगा कि वो वैध तरीके से असम में रह रहे हैं.
असम में इसके पहले 1951 में एनआरसी बनाई गई थी. 2015 में असम की कांग्रेस सरकार ने एनआरसी अपडेट करने का काम शुरू किया था, जिसमें पिछले डेढ़-दो साल में तेजी आई है. 31 दिसंबर को ड्राफ्ट एनआरसी प्रकाशित किया जाएगा और पूरी सूची सभी विवादों को निपटाने के बाद लाई जाएगी.
1947 में आजादी के बाद से ही असम समेत पूरे भारत में सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान से प्रवासियों का आना शुरू हो गया था. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय असम में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से प्रवासियों का आना तेज हो गया जिसमें ज्यादातर मुस्लिम थे.
बांग्लादेश बनने के बाद 1972 में सरकार ने ऐलान किया कि भारत में 25 मार्च 1971 तक आए बांग्लादेशियों को रहने की इजाजत दी जाएगी, इस तारीख के बाद आए बांग्लादेशियों को वापस भेजा जाएगा.
असम में रह रहे मुस्लिमों का डर है कि इस रजिस्टर से खासकर गरीब और निरक्षर लोगों के नाम हटाए जा सकते हैं, क्योंकि उनके पास अक्सर पर्याप्त दस्तावेज नहीं रहते और उन्हें निशाना बनाया जाना आसान है.
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस प्रोजेक्ट के अफसर बार-बार भरोसा दिला रहे हैं कि इस रजिस्टर को बनाने में पूरी सावधानी बरती जा रही है. असम में करीब 3.28 करोड़ लोग हैं और उन सभी के नागरिकता प्रमाण पत्रों की जांच में थोड़ा अतिरिक्त समय लग सकता है.
31 दिसंबर को जारी होने वाला रजिस्टर पूरा नहीं होगा और इसमें नाम न होने का मतलब ये नहीं होगा कि बचे हुए लोगों को असम से निकाल दिया जाएगा. असम में नागरिकता और बांग्लादेशी मुस्लिमों का मुद्दा 1979 से ही राजनीतिक तौर पर उठने लगा था, जब यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम की नींव पड़ी थी.
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) की अगुवाई में इसके बाद 6 साल तक असम में विरोध प्रदर्शन होते रहे, जो 1985 में तब शांत हुए जब केंद्र की राजीव गांधी सरकार ने असम अकॉर्ड पर दस्तखत किए. इस अकॉर्ड में 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तारीख को सख्ती से लागू करने का वादा किया गया. आसू का मानना है कि असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ बहुत भारी समस्या है और इससे ना केवल राज्य बल्कि पूरे देश की सुरक्षा को खतरा है. आसू एनआरसी का समर्थन कर रहा है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, असम में 1 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम हैं, जो असम की आबादी का करीब एक-तिहाई है. यही नहीं, असम के 11 जिलों में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है और आशंका है कि एनआरसी का पहला ड्राफ्ट जारी होने के बाद इन जिलों में तनाव बढ़ सकता है.
राज्य के कई अल्पसंख्यक संगठनों के विरोध प्रदर्शन और जातीय हिंसा की आशंका को देखते हुए राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र ने 5,000 अर्धसैनिक बल असम भेजे हैं, ताकि वहां शांति बनी रह सके. राज्य सरकार भी लोगों में भरोसा बनाए रखने के लिए ‘आवर एनआरसी, फेयर एनआरसी’ कैंपेन चला रही है.
(धीरज कुमार अग्रवाल जाने-माने जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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