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इंस्टेंट मैगी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. मैगी बनाने वाली नेस्ले इंडिया इसे अपने पक्ष में बता रही है जबकि मैगी में सीसे की मौजूदगी को लेकर उपभोक्ताओं के पक्षकारों को लगता है कि यह उसके पक्ष में है. सच ये है कि आने वाले समय में यह बात स्पष्ट होगी जब इस फैसले के प्रभाव सामने आएंगे.
मैगी में सीसा की मौजूदगी कोई नया तथ्य नहीं है तो अत्यधिक मौजूदगी से नुकसान की थ्योरी भी नयी नहीं है, जिस बारे में मान्यता प्राप्त लैबोरेटरी की रिपोर्ट ही सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अब मान्य हुआ करेगी. यानी छूट न उत्पादक कंपनी नेस्ले को है, न खुश होने का पूरा मौका आशंकाएं जताने वाले वर्ग को.
इंस्टेंट मैगी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मैगी प्रेमियों के लिए और मैगी निर्माता नेस्ले इंडिया के लिए राहत भरी ख़बर है. मैगी प्रेमियों के लिए राहत भरी खबर इसलिए है क्योंकि मैगी में सीसे की मात्रा की मौजूदगी को लेकर भ्रम दूर हो गया है.
जबकि, नेस्ले इंडिया के लिए राहत की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह तय कर दिया है कि मैगी के मामले में मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) की रिपोर्ट ही आगे किसी भी कार्यवाही का आधार होगी. इसकी रिपोर्ट में उल्लेखनीय तरीके से इंस्टेंट मैगी की मात्रा तय सीमा के भीतर पाई गई थी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्साहित नेस्ले इंडिया ने देशभर में विज्ञापनों के जरिए मैगी प्रेमियों को भी खुशी का अहसास कराया है. ‘आपकी मैगी सुरक्षित है हमेशा की तरह’- इसी भाव में उपभोक्ताओँ को अहसास दिलाया गया है कि मैगी सुरक्षित है. नेस्ले ने दावा किया है कि मैगी के सुरक्षित होने की बात एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर डेस्टिं एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज़ यानी एनएबीएल की ओर से समय-समय पर पुख्ता की जाती रही है.
विज्ञापनों में नेस्ले ने एक बार फिर साफ किया है-
मैगी पर प्रतिबंध के बाद कारोबार को गहरा धक्का लगा था जिससे उबरने का प्रयास लगातार जारी है. नेस्ले इंडिया ने पूरे भारत में 2017 में 10 हज़ार करोड़ की बिक्री की. ताजा आंकड़ों के मुताबिक अभी नूडल्स के बाज़ार में मैगी की हिस्सेदारी 60 फीसदी से ज्यादा है जो प्रतिबंध लगाए जाते वक्त 75 फीसदी के स्तर पर था.
मार्च 2016 में यानी रीलांच होने के महज पांच महीने में ही बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी सुधरकर 51 फीसदी पर आ गयी. 2017 आते-आते इसकी हिस्सेदारी 60 प्रतिशत के करीब पहुंच गयी. अब भी यह इस स्तर से थोड़ा ज्यादा है.
कई राज्यों में प्रतिबंध के बाद मैगी की बिक्री पर इसका बुरा असर पड़ा था. दिल्ली के केंद्रीय भंडारों में भी मैगी की बिक्री रोक दी गई थी. बिग बाज़ार ने अपने स्टोर से मैगी को हटा लिया. सेना और नौ सेना ने भी एडवाइज़री जारी किये थे कि वे मैगी न खाएं.
मैगी में तय मात्रा से ज्यादा सीसा की ख़बर के बाद 50 फीसदी से ज्यादा मैगी की बिक्री गिर गयी. नेस्ले के शेयर की कीमतों में तब 9 साल में सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली थी. नेस्ले के शेयर 10 फीसदी तक गिर गये थे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक और नज़रिए से भी देखा जा रहा है. नेस्ले के वकीलों ने मैगी में सीसे की मौजूदगी की बात कबूल की है. मगर, यह कबूलनामा कोई उल्लेखनीय बात नहीं लगती क्योंकि मैगी में सीसे की मौजूदगी की बात तो नेस्ले ने तब भी स्वीकार की थी, जब 2015 में यह विवाद तूल पकड़ा था.
नेस्ले का कहना था कि मैगी तैयार करने के दौरान सीसा नहीं मिलाया जाता, बल्कि इसमें दूसरे कारणों से सीसे की मौजूदगी होती है और वह भी तय मानक का उल्लंघन नहीं करती.नेस्ले ने 21 मई, 2015 को ट्वीटर पर जारी एक बयान में कहा था,
स्विटजरलैंड से है मैगी का संबंध. जूलियस मैगी ने सबसे पहले अपने डॉक्टर मित्र के साथ मजदूरों को प्रोटीन युक्त पोषाहार देने के बारे में सोचा और 1886 में रेडिमेड सूप लेकर बाज़ार में आए. बात 1947 की है जब नेस्ले ने जूलियस मैगी की कंपनी का विलय कर लिया.
भारत में मैगी तब पहुंची जब नेस्ले का आगमन हुआ. 1982 में नेस्ले भारतीय बाज़ार पहुंची और इसने मैगी नूडल्स लांच किया. तब से 2015 तक निर्बाध तरीके से मैगी का कारोबार होता रहा. भारतीय बाज़ार में साढ़े तीन हज़ार करोड़ के कारोबार में बड़ा हिस्सा मैगी का रहा है.
बोलचाल की भाषा में जिसे हम सीसा कहते है उसे संक्षेप में एमएसजी यानी मोनो सोडियम ग्लूटामेट कहा जाता है. इंस्टेंट नूडल में 10 लाख हिस्सों में 2.5 हिस्सा एमएसजी को कानून वैध माना गया है. यूपी में मैगी का जो सैम्पल जांच के लिए भेजा गया था, उसमें एमएसजी 7 गुणा ज्यादा यानी 17.5 हिस्सा प्रति 10 लाख होने का दावा किया गया था.
देशभर में सैम्पल लिए जाने लगे तो ज्यादातर मामलों में सीसा या कहें कि एमएसजी की मात्रा 7 से 10 गुणा ज्यादा पायी गयी थी. हालांकि अब सीएफटीआरआई की रिपोर्ट ही सुप्रीम कोर्ट ने माना है इसलिए यही प्रामाणिक माना जाएगा और इसके मुताबिक मैगी के सैम्पल में सीसे की मात्रा तय मानक से कम है.
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीएमसी) में 640 करोड़ रुपये हर्जाने की मांग का मामला लम्बित है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले में यह रोक हटा ली गयी है. दरअसल उपभोक्ता मामले के मंत्रालय ने 2015 में नेस्ले इंडिया के खिलाफ एनसीडीआरसी में शिकायत दर्ज कराई थी.
इसके तहत केंद्र और राज्य दोनों के पास शिकायत दर्ज करने का अधिकार होता है. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने आरोप लगाया था कि मैगी नूडल के लिए ‘टेस्ट भी, हेल्दी भी’ का दावा कर नेस्ले इंडिया ने उपभोक्ताओं को गुमराह किया.
2015 में सबसे पहले मैगी में तय मात्रा से अधिक सीसा होने की बात सबसे पहले उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में फूड इंस्पेक्टर संजय सिंह ने सामने लाने की कोशिश की थी. तब उन्होंने मैगी के सैम्पल्स की जांच करायी.
प्राधिकरण ने मैगी के 9 स्वीकृत वेरिएंट को बेहद ख़तरनाक बताया था. हालांकि इन जांच रिपोर्ट पर नेस्ले ने यह कहकर आपत्ति जताई थी कि जिन लैब में टेस्ट कराए गये वे एनएबीएल से मान्यताप्राप्त नहीं थे.
विपरीत परिस्थितियों में भी मैगी ने जिस तरह से एक बार बाज़ार से गायब हो जाने के बाद दोबारा खुद को स्थापित किया और उपभोक्ताओं की पसंद बना रहा, उसे देखते हुए अब माना जा रहा है कि मैगी नये तेवर और नये कलेवर में उपभोक्ताओँ के बीच पैठ बनाने की कोशिश करेगी. अब मैगी खाने वाले भी हैं ख़ुश, बनाने वाले भी.
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