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Leap year 2024: आखिर हर 4 साल में 29 फरवरी ही क्यों आती है, 30/31 फरवरी क्यों नहीं?

Leap year 2024: पूरी दुनिया में लगभग 5 मिलियन लोग ही ऐसे हैं जिनका जन्म 29 फरवरी को हुआ है. इसमें भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी हैं.

विशाल विश्वकर्मा
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>Leap year 2024: आखिर हर चार साल में 29 फरवरी ही क्यों आती हैं, 30/31 फरवरी क्यों नहीं</p></div>
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Leap year 2024: आखिर हर चार साल में 29 फरवरी ही क्यों आती हैं, 30/31 फरवरी क्यों नहीं

फोटो: canva 

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बसंत का महीना फरवरी (February) वैसे तो हर साल आता है लेकिन इस साल की फरवरी खास है. अब आप कहेगें ऐसा क्यों तो इस साल फरवरी 29 दिनों की है. हर चार साल बाद फरवरी में 29 तारीख होती है लेकिन क्या कभी सोचा है कि हर चार साल में 29 फरवरी ही क्यों आती हैं 30 या 31 फरवरी क्यों नहीं?

असल में एक साल 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है. हर साल के ये एक्स्ट्रा 6 घंटे 4 साल बाद पूरा एक दिन बन जाते हैं. चौथे साल में इस एक दिन को फरवरी में जोड़ दिया जाता है.

यही वजह है कि फरवरी का महीना हर चार साल में 29 दिन का होता है. इस एक्स्ट्रा दिन को लीप डे और जिस साल में ये पड़ता है उसे लीप ईयर कहते हैं. इस दिन जन्मे व्यक्तियों को "लीपलिंग्स" कहा जाता है.

एच हिस्ट्री वेबसाइट के अनुसार, पूरी दुनिया में लगभग 5 मिलियन लोग ही ऐसे हैं जिनका जन्म 29 फरवरी को हुआ है. इसमें भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी शामिल हैं.

क्यों बना लीप डे?

कैलेंडर में एक अतिरिक्त दिन जोड़ने की जरूरत क्यों पड़ी इसका दिलचस्प इतिहास है. आमतौर पर एक साल 365 दिन का माना जाता है पर असल में ऐसा नही हैं. पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने में 365.242 दिन लगे जबकि एक कैलेंडर ईयर में 365 दिन होते हैं. अब बचे 0.242 दिन या 5 घंटे 48 मिनट और 46 सेकंड को एडजस्ट करना पड़ा. ताकि, मौसम में बदलाव न हो और सालाना प्रोग्राम अपने नियमित शेड्यूल का पालन कर सकें.

फरवरी में ही क्यों जुड़ता है यह एक दिन?

फरवरी में ही एक दिन इसलिए जुड़ता है क्योंकि जूलियन कैलेंडर में फरवरी महीने को आखिरी महीना माना जाता है. इसी वजह से दिसंबर की जगह फरवरी में ये एक्स्ट्रा दिन जुड़कर 28 दिन की जगह 29 दिन होते हैं.

जूलियन कैलेंडर पहले होता था इस्तेमाल

46 ईसा पूर्व जब जूलियन कैलेंडर बनाया गया. तब जानकारी थी कि धरती को सूरज का चक्कर लगाने में 365 दिन 6 घंटे लगते हैं. उस समय पृथ्वी के एक चक्कर लगाने के निश्चित समय का ज्ञान न होने के कारण इसमें खामियां आने लगीं. करीब 1600 सालों तक गलत गणना के कारण मौसम और त्योहारों का क्रम आगे-पीछे होता रहा.

जूलियन कैलेंडर की इस विसंगति को ठीक करने के लिए,16वीं शताब्दी (साल 1582) में पोप ग्रेगरी XIII (13) ने अक्टूबर महीने से 10 दिन कम कर दिए. उस वर्ष 4 अक्तूबर के बाद सीधे 15 अक्तूबर की तारीख आएगी. इस प्रकार गलती को सुधारा गया था.

इस प्रकार पोप ने जूलियन कैलेंडर में लीप ईयर सिस्टम को भी संशोधित किया और नई प्रणाली को ग्रेगोरियन कैलेंडर के रूप में जाना जाने लगा. इस अंग्रेजी कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian Calendar) कहा जाता है. इस कैलेंडर के मुताबिक, इसका पहला महीना जनवरी होता है.

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लीप ईयर है या नहीं, कैसे पता करें? 

कोई भी वर्ष लीप वर्ष है कि नहीं, इसको जानने के लिए हम आपको कुछ तरीके बताते हैं...

1: उस वर्ष को 4 से पूरी तरह भाग दिया जा सकता हो. यानी वर्ष को 4 से डिवाइड करने पर पूर्ण संख्या (whole number) आएगी, यदि संख्या समान रूप से डिवाइड हो जाती है.

जैसे साल 2000 को 4 से पूरी तरह भाग दिया जा सकता है. इसी तरह 2004, 2008, 2012, 2016 और अब यह नया साल 2020 भी इसी क्रम में शामिल है.

2: यदि वर्ष, समान रूप से 4 से डिवाइड हो जाता है लेकिन यह 100 से समान रूप से डिवाइड नहीं होता है तो यह एक लीप वर्ष है.

3: एक वर्ष 4 और 100 दोनों से डिवाइड हो जाता है तो यह एक लीप वर्ष नहीं हो सकता है

जैसे साल 2000 को 4 से डिवाइड किया जा सकता है और यह 100 से भी समान रूप से डिवाइड हो जाता है. जिससे रिजल्ट 20 आता है. इसका मतलब है कि 2000 एक लीप वर्ष नहीं हो सकता है.

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