मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Explainers Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019शिवराज की बड़ी 'गलतियां' जिस वजह से बीजेपी ने नहीं बनाया CM, अब आगे क्या विकल्प?

शिवराज की बड़ी 'गलतियां' जिस वजह से बीजेपी ने नहीं बनाया CM, अब आगे क्या विकल्प?

मोहन यादव होंगे मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह चौहान का पत्ता कटा

आदित्य मेनन
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>एमपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान.</p></div>
i

एमपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान.

(फोटोः क्विंट हिंदी)

advertisement

(यह स्टोरी पहली बार 17 नवंबर को पब्लिश हुई थी. एमपी के अगले सीएम के रूप में मोहन यादव के चुने जाने के बाद इस स्टोरी को अपडेट कर रिपब किया जा रहा है.)

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी को शानदार जीत दिलाने के बावजूद, सीएम के रूप में शिवराज सिंह चौहान का कार्यकाल समाप्त हो गया है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व - पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उनकी जगह लो प्रोफाइल उज्जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव को सीएम की कुर्सी पर लाने का फैसला किया है.

  • बीजेपी ने शिवराज चौहान को हटाने का फैसला क्यों किया?

  • शिवराज के लिए आगे की राह क्या होगी?

यह स्टोरी में हम इन्हीं दोनों सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे.

इन सवालों को समझने के लिए पीएम मोदी के साथ शिवराज के जटिल समीकरण को समझना जरूरी है. चुनावी तौर पर देखें तो पीएम मोदी और सीएम शिवराज BJP के सबसे सफल राजनेताओं में से हैं. जहां मोदी पार्टी के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री हैं, वहीं शिवराज बीजेपी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं.

दोनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पृष्ठभूमि से आने वाले ओबीसी नेता हैं, लेकिन दोनों की राजनीतिक शैली एक-दूसरे से जुदा है. जहां मोदी ने बहुत विशाल छवि बना ली है, वहीं शिवराज ने विनम्र और सहज 'मामाजी' (Mamaji) की छवि कायम रखी है.

दोनों नेताओं के बीच सटीक समीकरण बता पाना मुश्किल है. उनके बीच कोई दुश्मनी नहीं रही है. हालांकि, यह सच है कि मोदी के पीएम बनने के बाद से शिवराज चौहान के कद में कटौती हुई है.

इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि कैसे सीएम शिवराज के राजनीतिक कद में बदलाव आया है और इसमें पीएम मोदी की क्या भूमिका है?

1- 31 साल में MLA, 32 में MP और 46 साल की उम्र में CM, किस्मत ने किस तरह शिवराज का दिया साथ

मध्य प्रदेश बीजेपी के एक पूर्व पदाधिकारी ने द क्विंट से बातचीत में कहा, “किस्मत हमेशा साथ नहीं देती. देर-सबेर आपकी किस्मत साथ छोड़ ही जाती है. शिवराज सिंह चौहान के साथ यही हुआ है.”

उन्हें हमेशा एक जिम्मेदार और मेहनती राजनेता के रूप में जाना जाता है, लेकिन किस्मत और सही समय पर सही जगह पर होना, शिवराज चौहान की राजनीतिक यात्रा में खास फैक्टर रहे हैं.

शिवराज कॉलेज के दिनों में ही राजनीति में आ गए थे, पहले अपने कॉलेज के छात्र संघ में एक नेता के रूप में छात्र राजनीति में कदम रखा और फिर इमरजेंसी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) में पद संभाला और फिर 1990 की बीजेपी लहर में बुधनी (Budhni) से विधायक बने.

उस साल के अंत में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की भोपाल यात्रा के दौरान उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन से शिवराज को पहचान मिली. ओबीसी आरक्षण के लिए वीपी सिंह के दबाव ने भी बीजेपी को शिवराज जैसे ज्यादा ओबीसी चेहरों को आगे बढ़ाने के लिए मजबूर किया था, जो ओबीसी किरार (OBC Kirar) समुदाय से आते हैं.

शिवराज को अपने अगले ब्रेक के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा. 1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने दो सीटों-उत्तर प्रदेश की लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा से चुनाव लड़ा. दोनों में जीत के बाद वाजपेयी ने विदिशा सीट खाली कर दी. बीजेपी ने उपचुनाव में शिवराज चौहान को उतारा, जिसे उन्होंने आसानी से जीत लिया और महज 32 साल की उम्र में सांसद बन गए.

उनकी जीत आश्चर्यजनक नहीं थी क्योंकि विदिशा बीजेपी के पूर्ववर्ती जनसंघ के दिनों से ही एक मजबूत हिंदुत्व समर्थक सीट रही है. जनसंघ ने 1967 और 1971 में यहां से जीत हासिल की थी.

उन्होंने 1996, 1998, 1999 और 2004 में फिर यह सीट जीती. साल 2003 में फायरब्रांड नेता उमा भारती (Uma Bharti) के नेतृत्व में बीजेपी मध्य प्रदेश में सत्ता में आई लेकिन एक साल से भी कम समय के अंदर कर्नाटक के हुबली में 1994 के दंगा मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया.

इसके चलते उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. उनकी जगह वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर ने ली, लेकिन गौर प्रभाव नहीं छोड़ पाए और 2005 में गौर की जगह शिवराज को लाया गया.

भोपाल: बीजेपी नेता उमा भारती 11 नवंबर, 2020 को भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करती हुई.

(फोटो: IANS)

किस्मत ने एक बार फिर शिवराज का साथ दिया.

इस दौरान पार्टी में उमा भारती के समीकरण तेजी से खराब होते गए. लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनका सार्वजनिक विवाद हुआ और उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया. बार-बार 'कारण बताओ नोटिस' की अनदेखी करने के बाद उन्हें बीजेपी से निकाल दिया गया. उन्होंने 2006 में भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया. 2008 के चुनाव में इससे बीजेपी को हालांकि थोड़ा नुकसान हुआ, लेकिन वह शिवराज को सत्ता में वापसी से नहीं रोक सकीं.

इन सभी घटनाक्रमों ने शिवराज को मध्य प्रदेश में बीजेपी का निर्विवाद चेहरा बना दिया.

2- शिवराज ने बीजेपी के बाहर प्रशंसक बनाए, भीतर दुश्मन बनाए

साल 2011 में उमा भारती की पार्टी में वापसी हुई लेकिन शिवराज को आश्वासन दिया गया कि वह मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर रहेंगी. इसकी जगह उन्हें 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी का चेहरा बनाया गया, जो दो दशक में राज्य में बीजेपी के सबसे खराब प्रदर्शनों में से एक था.

उस समय, शिवराज कई मायनों में अपनी ताकत के चरम पर थे.

कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी और असरदार कल्याणकारी योजनाओं ने मध्य प्रदेश में उनकी लोकप्रियता को मजबूत बनाया था.

सिर्फ बीजेपी में ही नहीं, विरोधियों ने भी एमपी के सीएम के काम की सराहना की.

उदाहरण के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक का मसौदा तैयार करने के दौरान राज्यों से सलाह लेने की कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने शिवराज से इनपुट लिया. संसद में विधेयक पेश करते समय जयराम ने दलीय सीमा से ऊपर उठकर इन संशोधनों को ‘शिवराज चौहान संशोधन’ कहा था.

हालांकि, राजनीतिक रूप से शिवराज ने अपने हिस्से से ज्यादा दुश्मन बनाए, खासकर अपनी पार्टी के अंदर.

हालांकि, उमा भारती को राज्य से बाहर कर दिया गया था, फिर भी वे मन में नाराजगी पाले रहीं. मगर शिवराज के लिए बड़ा खतरा मध्य प्रदेश बीजेपी में उनके अपने समकालीन लोग थे. तत्कालीन राज्य इकाई प्रमुख प्रभात झा (Prabhat Jha) के साथ उनके मतभेद जगजाहिर थे और आखिर में झा का दिल्ली तबादला कर दिया गया.

कैलाश विजयवर्गीय पर आरोप है कि उन्होंने शिवराज के विरोधियों के साथ गुप्त बैठकें कीं. ऐसी अफवाहें भी थीं कि उनमें से कुछ लोगों ने उन्हें ‘गब्बर सिंह’ का नाम दिया था.

प्रह्लाद सिंह पटेल और नरोत्तम मिश्रा मध्य प्रदेश बीजेपी में शिवराज के दो और प्रतिद्वंद्वी रहे हैं.

3- मुस्लिम टोपी, तब्लीगी जमात और एक ‘समावेशी’ बीजेपी सीएम

मुख्यमंत्री के रूप में कम से कम अपने शुरुआती 10 सालों के दौरान जब मुसलमानों के साथ रिश्तों की बात आती थी तो शिवराज को तुलनात्मक रूप से ज्यादा समावेशी बीजेपी नेता के रूप में देखा जाता था.

मोदी के उलट, जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में एक मुस्लिम शख्स द्वारा उन्हें दी गई टोपी (skull-cap) पहनने से इनकार कर दिया था, शिवराज को टोपी पहने मुस्लिम समारोहों में शामिल होते देखा गया था. नीचे दी गई यह तस्वीर 2013 में ईद-उल-फितर की है.

2013 में ईद के दौरान मुस्लिम टोपी पहने शिवराज चौहान.

(फोटो: PTI)

तब्लीगी जमात ने 2010 में अपने सालाना इज्तेमा (सम्मेलन) में सरकार की मदद के लिए शिवराज की तारीफ की. बताया जाता है कि शिवराज ने व्यवस्थाओं की निगरानी के लिए खुद कार्यक्रम स्थल का दौरा किया था.

शिवराज सरकार ने 2012 में भोपाल में मुस्लिम सरकारी कर्मचारियों को आधे दिन की छुट्टी भी दी ताकि वे इज्तेमा के आखिरी दिन “दुआ” में हिस्सा ले सकें.

शिवराज की कई योजनाएं मुसलमानों में भी काफी लोकप्रिय हुईं जैसे कि कन्या विवाह एवं निकाह योजना (Kanya Vivah Evam Nikah Yojana), जिसमें लड़कियों की शादी पर नकद राशि दी जाती है. राज्य सरकार की तीर्थ दर्शन योजना (Teerth Darshan Yojana) में अजमेर शरीफ भी शामिल है.

शिवराज के नजरिये की वजह से ही बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 16 फीसद मुस्लिम वोट (CSDS के आंकड़े के अनुसार) हासिल किए, जो किसी भी राज्य में पार्टी का सबसे बड़ा हिस्सा है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

4. लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती ने किस तरह नरेंद्र मोदी के खिलाफ शिवराज चौहान को इस्तेमाल किया

मोदी के साथ शिवराज का समीकरण उन कोशिशों से जटिल हुआ, जब गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ताकत जुटा रहे थे, और दूसरों ने उन्हें 2013 में मोदी के खिलाफ खड़ा कर दिया था.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी (LK Advani) ने जून 2013 में यह कहकर शिवराज को मोदी के खिलाफ पेश कर दिया कि मोदी को “विरासत में एक विकसित राज्य मिला” जबकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को “राज्य के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी.”

बताते हैं कि उस साल की शुरुआत में आडवाणी ने शिवराज को बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल करने की कोशिश की थी, ऐसा कहा जाता है कि इस कोशिश को मोदी और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नाकाम कर दिया था.

नई दिल्ली के लोदी श्मशान घाट पर पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अंतिम संस्कार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह. (दाएं से बाएं)

(फोटो: PTI)

अगस्त 2013 में एक और विवाद हुआ जब शिवराज की मौजूदगी में बॉलीवुड अभिनेता रजा मुराद ने “समावेशी” नहीं होने के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज किया और उन्हें एमपी के मुख्यमंत्री से सबक सीखने को कहा. उन्होंने ईद पर मुसलमानों को बधाई देते समय टोपी पहनने के लिए शिवराज की प्रशंसा की.

मामला निपट गया होता लेकिन शिवराज की पुरानी आलोचक उमा भारती ने इसका इस्तेमाल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से हिसाब बराबर करने और उन्हें मोदी के खिलाफ खड़ा करने के लिए किया.

“मैं बहुत आहत हूं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बगल में खड़े एक सी-ग्रेड अभिनेता ने नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाया. मैं अचंभित हूं कि यह कैसे हुआ.” उन्होंने मुस्लिम टोपी पहनने के लिए शिवराज की आलोचना भी की थी.

इस घटना के कुछ महीनों बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में, शिवराज ने अपने अभियान में मोदी के सलाहकारों के दखल का कथित तौर पर विरोध किया, यहां तक कि प्रचार सामग्री में उनका नाम शामिल करने से भी इनकार कर दिया.

शिवराज चौहान के करीबी सूत्रों का कहना है कि कभी भी उनका इरादा संभावित पीएम उम्मीदवार के रूप में अपना नाम उछालने या मोदी के लिए चुनौती बनने का नहीं था. मध्य प्रदेश के एक बीजेपी विधायक नाम न छापने की शर्त के साथ कहते हैं,

“मुझे लगता है कि वह (शिवराज चौहान) सिर्फ इतना चाहते थे कि मध्य प्रदेश को चलाने में उन्हें खुली छूट मिले. यह हमेशा उनकी मुख्य प्राथमिकता रही है.”

नेता ने आगे कहा, “लेकिन वह मोदी और अमित शाह के कामकाज के तरीके को ठीक से नहीं समझ सके. किसी भी नेता को खुली छूट नहीं है, चाहे वह शिवराज चौहान हों या वसुंधरा राजे या (बीएस) येदियुरप्पा.”

5. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने कैसे पलट दी शिवराज चौहान की किस्मत

2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने बीजेपी सहित देश में राजनीतिक परिदृश्य को अपने हिसाब से ढालना शुरू कर दिया. सत्ता केंद्रों का आकार छोटा कर दिया गया, कई प्रमुख नेताओं को किनारे लगा दिया गया.

शिवराज के कुछ विरोधियों को मोदी और शाह के तहत प्रमुखता मिली. इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम कैलाश विजयवर्गीय का है, जिन्हें 2014 के हरियाणा चुनावों के लिए बीजेपी प्रभारी बनाया गया था और बाद में पार्टी का महासचिव बनाया गया.

उमा भारती 2014 में केंद्र सरकार में मंत्री बनीं. प्रभात झा का भी कद बढ़ गया. फिर दो और विरोधी प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते 2019 में मंत्री बनाए गए.

बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय

(फोटो: PTI)

शिवराज चौहान को सबसे बड़ा झटका 2018 में लगा, जब बीजेपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मामूली अंतर से हार गई.

शिवराज के समर्थकों का कहना है कि यह बदकिस्मती की मार थी, क्योंकि बीजेपी को असल में कांग्रेस के मुकाबले वोट ज्यादा मिले थे, लेकिन सीटें कम मिलीं.

उनकी यह भी दलील है कि बीजेपी की हार में योगदान देने वाली कुछ वजहों पर शिवराज का वश नहीं था- नोटबंदी और GST दोनों केंद्र सरकार के फैसले थे, एससी और एसटी (अत्याचार) कानून को कमजोर करने का काम सुप्रीम कोर्ट ने किया, जिससे एससी/एसटी तबका नाराज हो गया. बदलावों को पलटने वाला कानून बनाने का फैसला केंद्र सरकार द्वारा लिया गया और इससे दबंग जातियां नाराज हो गईं.

6. शिवराज चौहान के लिए आगे का सफर?

2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके वफादार विधायकों ने कांग्रेस से बगावत कर दी और राज्य में कमलनाथ सरकार गिरा दी. बीजेपी के पास नाजुक बहुमत होने के कारण पार्टी आलाकमान को शिवराज चौहान की शरण में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

लेकिन चूंकि सिंधिया की एंट्री करीब-करीब पूरी तरह केंद्र की बदौलत हुई थी, इसलिए साफ था कि शिवराज की नई पारी का श्रेय मोदी और शाह को जाना था.

शिवराज का अब वैसी स्वायत्तता या कद नहीं रहा, जैसा 2013 में था.

सबसे वरिष्ठ मुख्यमंत्री होने के बावजूद आज पार्टी में शिवराज का रुतबा योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्वा सरमा जैसे जूनियर मुख्यमंत्रियों से कम है.

शिवराज चौहान ने मोदी और शाह के नेतृत्व में बीजेपी के वैचारिक रूप से ज्यादा कट्टर तौर-तरीकों को अपनाने की भी कोशिश की. मुसलमानों के प्रति समावेशी नजरिये का त्याग कर दिया गया है. मिलनसार ‘मामा’ की जगह ‘बुलडोजर मामा’ ने ले ली है. वहीं तबलीगी जमात, जिसने एक दशक पहले शिवराज की तारीफ में कशीदे पढ़े थे, पहली कोविड लहर के दौरान उनके जुबानी हमलों का शिकार हुई.

आज शिवराज लगभग पूरी तरह बीजेपी आलाकमान के रहमो-करम पर हैं. एक ऐसे नेता से, जिसने कथित तौर पर 2013 में प्रचार सामग्री में मोदी को शामिल करने से इनकार कर दिया था, अब वह 17 साल सरकार चलाने के बावजूद आधिकारिक तौर पर पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में नामित किए जाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं.

उज्जैन: 14 मई, 2016 को उज्जैन में सिंहस्थ के सार्वभौमिक संदेश पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक स्मृति चिन्ह भेंट करते हुए.

(फोटो: IANS/PIB)

हालांकि, इसका कतई यह मतलब नहीं है कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो मोदी और शाह ने शिवराज को बदलने का फैसला ले लिया है. उनकी मुख्य प्राथमिकता 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतना है. अगर इसके लिए शिवराज को सीएम बनाना जरूरी है तो वे ऐसा करेंगे. अगर इसके लिए उन्हें दिल्ली भेजना जरूरी है, तो वे वैसा करेंगे.

मौजूदा समय में शिवराज को जाति जनगणना के चलते थोड़ा फायदा हो सकता है, जिसे विपक्ष एक प्रमुख मुद्दा बना रहा है.

बीजेपी के लिए मौजूदा समय में अपने इकलौते ओबीसी मुख्यमंत्री को दरकिनार करना आसान नहीं होगा, खासकर तब जबकि विपक्ष राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर OBC के लिए आरक्षण बढ़ाने का वादा कर सकता है.

(द क्विंट में, हम सिर्फ अपने पाठकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच का कोई विकल्प नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT