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रात में ठीक से नहीं सोने से क्या हो सकता है? दिमाग से नहीं दिल से आर्थिक फैसले लिए जाएंगे तो क्या होगा? परमाणु बम की विध्वंसक शक्ति पर लगाम नहीं लगी तो? और फोर्स ऑफ ग्रेविटी की मानक परिभाषा अगर बदल जाए तो हमारे यूनिवर्स के बारे में जानकारी कितनी बदल जाएगी. इन सारे मूल मुद्दों का जवाब पिछले सालों में विद्वानों ने खोजने की कोशिश की है.
खास बात ये है कि इन्हीं मूल सवालों का प्रामाणिक जवाब देने वालों को इस बार का नोबेल पुरस्कार दिया गया है.
ऐसे में एक नजर डालते हैं कि इन ‘नोबेल’ स्टडी, रिसर्च और इनोवेशन से दुनिया कितनी बेहतर बन सकती है:
आखिर शरीर को सोने की जरूरत क्यों होती है? कई टाइम जोन में यात्रा करने वाले यात्रियों को भी जेट लैग यानी अस्थाई भटकाव का सामना क्यों करना पड़ता है? इन सारे सवालों के जवाब तीन अमेरिकी वैज्ञानिक जेफ्री सी. हॉल, माइकल रोसबाश और माइकल वी. यंग ने बायोलॉजिकल साइकल और उसके इंटरनल स्ट्रक्चर को समझकर ढूंढा.
इस खोज के बाद हमें सोने के पैटर्न, खाने के व्यवहार, हार्मोन फ्लो, ब्लड प्रेशर और बॉडी के तापमान को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी. बायोलॉजिकल सिस्टम में अचानक बदलाव से बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है, इस क्लॉक के स्ट्रक्चर को समझकर कई बीमारियों से लड़ने और उनसे बचने में इनसान अब कामयाब हो सकेगा. मतलब यह कि वाइलॉजिकल क्लॉक में ज्यादा छेड़छाड़ खतरे से खाली नहीं है.
यूनिवर्स के बारे में एक चीज खास है जितना ही उसे समझने की कोशिश करो उसका दायरा उतना ही बड़ा होता जाता है. बैरी बैरिश, किप थोर्ने और रेनर वेस को गुरुत्व तरंगों (gravitational waves) की खोज के लिए इस साल का फिजिक्स नोबेल प्राइज दिया गया.
आपने पानी में कंकड़ मार के तो देखा ही होगा, उस वक्त जैसी तरंगे बनती हैं, स्ट्रक्चर के लिहाज से कुछ वैसी ही होती हैं गुरुत्व तरंगे. दो ब्लैक होल्स का एक दूसरे से मिल जाने की स्थिति में ये तरंगे पैदा होती हैं. ब्लैक होल्स से ये कैसे पैदा हो रही हैं और ब्लैक होल्स का यूनिवर्स में क्या रोल है इसको समझने में अब कामयाबी मिल सकती है.
अर्थशास्त्र का ये नोबेल प्राइज कई मायनों में खास है. इसे हासिल करने वाले रिचर्ड थेलर ने साबित किया है कि कैसे एक इंसान के आर्थिक फैसले काफी हद तक उसकी मानसिकता पर निर्भर होते हैं न कि तर्क शक्ति पर. उन्होंने अपने काम के जरिए ये दिखाया की इकनॉमिक और फाइनेंशियल डिसिजन करने वाले हमेशा तार्किक (Rational) ही नहीं होते बल्कि ज्यादातर वो मानवीय हदों और अपनी सोच से बंधे होते हैं.
थेलर ने नोबेल प्राइज में जीती 1.1 मिलियन डॉलर की रकम को खर्च करने के सवाल पर अपनी रिसर्च जीतना ही दिलचस्प जवाब दिया- ''मैं इसे जहां तक मुमकीन होगा बिना सोचे समझे खर्च करूंगा.''
अल्फ्रेड नोबेल ने 'डायनामाइट' का आविष्कार किया था, जिसके बाद बम-बारूदों को दौर शुरू हुआ. अब ये विडंबना ये है कि उसी अल्फ्रेड के नाम पर दिया जाने वाला नोबेल प्राइज इस साल परमाणु बम के खात्मे पर काम करने वाली संस्था ICAN को दिया गया.
तमाम परमाणु युद्धों की धमकी, धरती और इंसानी बस्तियों पर खतरे की आशंका और दुनियाभर में छाए आर्थिक संकट के इस दौर में ये सारे रिसर्च एक भरोसा दिलाते हैं. वो भरोसा जो साबित करता है कि इंसान हमेशा दुनिया की भलाई के लिए कुछ न कुछ नया सोचता रहेगा जिससे दुनिया थोड़ी और भली और अनुभवी दिखे.
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