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प्रधानमंत्री के बयान के बाद बैंकों के एनपीए पर बहस फिर से तेज हो गई है. रिपोर्ट के मुताबिक कुछ सरकारी बैंकों में एनपीए की समस्या इतनी भयावह है कि इसका उनके कारोबार पर असर हो रहा है. दो सरकारी बैंक तो ऐसे हैं कि उनका 20 फीसदी से ज्यादा कर्ज डूब गया है. और डूबे हुआ कर्ज लाखों करोड़ रुपए हैं. इतनी बड़ी रकम अगर डूब जाए तो इसका अर्थव्यवस्था पर असर होना तय मानिए.
बैंक का वो कर्ज जो डूब गया हो और जिसे फिर से वापस आने की उम्मीद नहीं के बराबर हो उसे एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) कहा जाता है. अमूमन अगर बैंक को कर्ज की ईएमआई 3 महीने पर नहीं आती है तो उस अकाउंट को एनपीए घोषित कर दिया जाता है. मुमकिन है कि उसमें से कुछ रकम वापस आ भी जाए. जून में खत्म हुई तिमाही में देश के बैंकों का करीब 8 लाख 30 हजार करोड़ रुपए डूबा हुआ था. दूसरे शब्दों में बैंकों का 10 फीसदी से ज्यादा कर्ज एनपीए है. अमेरिका और चीन में यह रेशियो 2 फीसदी से कम है. हां, कुछ देश ऐसे भी हैं जहां एनपीए की समस्या अपने देश से भी ज्यादा भयावह है.
एनपीए की मार सबसे ज्यादा सरकारी बैंकों पर है. केयर रेटिंग्स के एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी बैंकों में 8 ऐसे हैं जिनका एनपीए रेशियो 15 फीसदी से ज्यादा है. दो बैंक- आईडीबीआई और इंडियन ओवरसीज- का रेशियो तो 22 फीसदी से ज्यादा है.
ध्यान देने वाली बात है कि पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले इस साल की पहली तिमाही में बैंकों के एनपीए 34 फीसदी बढ़े है. इतनी ज्यादा ग्रोथ बैंकिंग सिस्टम के लिए बहुत ही बुरी खबर है.
जिन सेक्टर्स में बैंकों के सबसे ज्यादा कर्ज डूबे हैं उनमें मेटल, सीमेंट, कंस्ट्रक्शन, टेक्सटाइल और इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल है. इनमें से ज्यादा सेक्टर वो हैं जिनकी सेहत देश की विकास दर से डुड़ी होती है. मतलब यह कि विकास दर अगर तेज होती है तो इन सेक्टर में काम करने वाली कंपनियों की सेहत बेहतर होती है और लोन चुकाने की क्षमता भी. ऐसे भी कई उदाहरण हैं कि कंपनियों ने कर्ज लिए लेकिन अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ने से कंपनियों की सेहत पर असर पड़ा और बैंकों को लोन चुकाने की क्षमता कम हो गई.
बैंकों का पैसा डूबने का सीधा मतलब कि बैंक के पास कर्ज देने की रकम में कमी. अब कर्ज देने की रफ्तार में कमी का मतलब है अर्थव्यवस्था में सुस्ती. मतलब यह कि ये पहले अंडा आया या मुर्गी जैसी पहली है. किसी एक को ठीक कीजिए तो दूसरा अपने आप ठीक होगा.
सबसे अचूक इलाज है अर्थव्यवस्था में तेजी. लेकिन तेजी बहुत सारे फैक्टर्स पर निर्भर करते हैं. तत्काल सरकार ने बैंकों में नई पूंजी डालने का जो फैसला किया है उससे कुछ फायदा हो सकता है. नई पूंजी आने से बैंकों के पास कर्ज बांटने के लिए रकम बढ़ेगी तो बैंकों की सेहत में सुधार हो सकता है.
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