Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Explainers Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019प्याज के दाम फिर आसमान पर, कीमतों में ये उतार-चढ़ाव आखिर क्यों?

प्याज के दाम फिर आसमान पर, कीमतों में ये उतार-चढ़ाव आखिर क्यों?

प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह बाजार में इसकी सप्लाई में कमी है.

धीरज कुमार अग्रवाल
कुंजी
Updated:
सब्जी के थोक के बाजार में प्याज को संभालती हुई एक महिला 
i
सब्जी के थोक के बाजार में प्याज को संभालती हुई एक महिला 
(फोटो: Reuters)

advertisement

देश में एक बार फिर से प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं. हमारे यहां ये एक सालाना दस्तूर सा बन गया है कि दिवाली के आसपास प्याज की कीमतें बढ़ेंगी ही. केंद्र और राज्य सरकारों की तमाम तैयारी के दावे, जमाखोरी पर अंकुश लगाने की रणनीति और प्याज इम्पोर्ट करने की रस्मअदायगी आम लोगों को कोई राहत नहीं दे पाती.

प्याज की कीमत बढ़ती जाती है और 2-3 महीने तक लोगों को रुलाने के बाद नई फसल की आवक के साथ सामान्य स्तर पर आ जाती है. सवाल यही है कि जब हर साल सितंबर-अक्टूबर में प्याज महंगा होता है तो आखिर सरकार इसकी कीमत पर लगाम की तैयारी समय रहते क्यों नहीं कर पाती. फिलहाल देश के कई राज्यों में प्याज की कीमत 50 रुपए किलो के पार चली गई है.

क्या है प्याज का गणित

देश में प्याज की मांग अर्थशास्त्र के संदर्भ में कहें तो ‘इनइलास्टिक’ है यानी प्याज की मांग पर इसकी कीमत का ज्यादा असर नहीं पड़ता. देश में प्याज की खपत है प्रति व्यक्ति 800 ग्राम प्रति महीना. यानी 5 लोगों का एक परिवार महीने में 4 किलो प्याज खाता है जिसकी औसत कीमत हुई 100 रुपए. अब अगर प्याज की कीमत यहां से चार गुनी भी बढ़ जाए यानी 20 के बजाय 80 रुपए किलो तो भी एक परिवार का मासिक बजट सिर्फ 300 रुपए महीना बढ़ेगा. एक मिडिल क्लास परिवार इस बढ़त को आसानी से वहन कर सकता है और यही वजह है कि प्याज की मांग कीमत बढ़ने के बावजूद उसी स्तर पर बनी रहती है.

क्यों बढ़ जाती हैं प्याज की कीमतें?

प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह बाजार में इसकी सप्लाई में कमी है. लेकिन ये कमी पैदा की जाती है, क्योंकि देश में प्याज का उत्पादन खपत से ज्यादा होता है. तभी तो हर साल प्याज की कीमत का ऐसा संकट आता है, फिर भी हर साल हमारा देश इसका एक्सपोर्ट भी करता है. दरअसल, जमाखोरी, प्याज स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था न होना और सरकारी नीतियों में स्थिरता का अभाव कीमत को अनाप-शनाप बढ़ा देते हैं.

कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुणे, मुंबई, भोपाल और कोलकाता के खुदरा बाजारों में प्याज की कीमत सितंबर 2016 के मुकाबले सितंबर 2017 में 92 फीसदी या ज्यादा बढ़ी है. इस बार कीमत में बढ़ोतरी की वजह है दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश की वजह से फसल पर असर. साथ ही नई फसल आने में अभी थोड़ा वक्त भी है. जब कीमत ज्यादा बढ़ने लगती है तो सरकार स्टॉक लिमिट लगाने, जमाखोरों पर कार्रवाई करने या इंपोर्ट की संभावना तलाशने जैसे कदम उठाती है, लेकिन ये कदम सिर्फ फौरी तौर पर राहत देते हैं. अगले साल फिर वही कहानी दोहराई जाने लगती है.

कहां होता है प्याज का ज्यादा उत्पादन?

भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है. कृषि उत्पादों के निर्यात पर नजर रखने वाली सरकारी एजेंसी अपीडा के मुताबिक देश में प्याज की फसल दो बार आती है. पहली बार नवंबर से जनवरी तक और दूसरी बार जनवरी से मई तक. देश में प्याज सबसे ज्यादा होता है महाराष्ट्र में, करीब 30 फीसदी. इसके बाद कर्नाटक 15 फीसदी उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर है. फिर आता है मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात का नंबर. 2015-16 में देश में 2.10 करोड़ टन प्याज का उत्पादन हुआ था, वहीं 2016-17 में करीब 1.97 करोड़ टन.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कितना होता है एक्सपोर्ट?

अपीडा के मुताबिक साल 2016-17 में भारत से 2.41 लाख टन प्याज का एक्सपोर्ट किया गया था. इस प्याज की कीमत थी 3,106 करोड़ रुपए. जिन देशों को एक्सपोर्ट किया गया उनमें शामिल थे- बांग्लादेश, मलेशिया, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात और नेपाल.

प्याज के राजनीतिक प्रभाव

प्याज सिर्फ आम लोगों के आंसू नहीं निकालता, सरकारों का तख्ता पलट भी कर सकता है. इसका पहला शिकार हुई थी 1980 के चुनावों में केंद्र की तत्कालीन चौधरी चरण सिंह सरकार, जब इंदिरा गांधी ने प्याज की कीमतों को भी सरकार के खिलाफ एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया था. फिर दिल्ली में 1998 में प्याज की बढ़ती कीमतों के चलते मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना का इस्तीफा कौन भूल सकता है. प्याज की इसी राजनीतिक ताकत से हर सरकार डरती है, खासकर तब जब चुनाव सर पर हों. इसलिए प्याज भले ही लोगों के किचन का बजट उतना ना बिगाड़े, उनके मन में सरकार की छवि जरूर बिगाड़ सकता है. लेकिन ये भी एक आश्चर्य है कि इतनी ताकत रखने के बावजूद प्याज की कीमत में भारी उतार-चढ़ाव रोकने की कोई पक्की नीति किसी सरकार ने नहीं बनाई है.

क्या है प्याज की कीमतों में स्थिरता का उपाय?

प्याज की कीमत में भारी उतार-चढ़ाव से राहत मिल सकती है अगर केंद्र और राज्य सरकारें एक-दो कदम उठा लें. एक रिपोर्ट के अनुसार, प्याज के उत्पादन में सिर्फ 10 फीसदी का बदलाव इसकी कीमत में 30 से 100 फीसदी का अंतर ले आता है. इसका समाधान है प्याज के स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था. हालांकि इसमें कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस बनाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत पड़ेगी, जो सरकारी सहयोग के बिना नामुमकिन है.

कृषि जानकारों का मानना है कि अगर प्याज उत्पादक इलाकों में सिंचाई की व्यवस्था सुधार ली जाए तो इसकी प्रति एकड़ उपज में बढ़ोतरी होने लगेगी. इससे एक साथ कई फायदे हो जाएंगे. एक तो किसान की कमाई बढ़ेगी और दूसरा इसका बफर स्टॉक बनाकर जुलाई से अक्टूबर के महीनों में इसकी सप्लाई को दुरुस्त किया जा सकेगा. फिर प्याज के दाम में भारी उतार-चढ़ाव नहीं दिखेंगे, और एक्सपोर्ट के लिए भी ज्यादा प्याज बच सकेगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 15 Nov 2017,10:09 AM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT