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पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतों से देशभर के उपभोक्ता परेशान हैं. हाल ही में पीएम मोदी ने राज्यों को टैक्स कम करने का सुझाव दिया. ऐसे में एक बार फिर पेट्रोल-डीजल में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लगने वाले भारी भरकम टैक्स का मुद्दा गरमा गया. राज्यों द्वारा केंद्र से ही सवाल पूछे जाने लगे हैं. लेकिन 100 रुपये पार पेट्रोल-डीजल की मार आम आदमी पर पड़ने की नौबत कैसे आई...पिछले कुछ महीनों में केंद्र और राज्यों ने कितना टैक्स लगाया है, पूरा गणित आपको समझाते हैं.
मुख्यमंत्रियों के साथ वर्जुअल बैठक में 27 अप्रैल को पीएम ने याद दिलाया कि नवंबर 2021 में केंद्र ने ड्यूटी घटाई थी, लेकिन उसके पहले और बाद में क्या हुआ ये भी जानना जरूरी है. हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनावों से पहले पिछले साल (2021) नवंबर में केंद्र सरकार ने तीन साल में पहली बार पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले केंद्रीय उत्पाद शुल्क (सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी) में कटौती की थी. जिसके परिणामस्वरूप एक के बाद एक 19 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों ने वैट (VAT) में कटौती की थी. जिससे आम आदमी को ईंधन की कीमतों से कुछ राहत मिली थी. 3 नवंबर की शाम को केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 5 रुपए और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की थी.
नवंबर 2021 में एक्साइज ड्यूटी में कटौती के बाद 19 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों ने ईंधन पर अपना वैट कम कर दिया था. ये राज्य थे-
गुजरात
उत्तर प्रदेश
बिहार
हरियाणा
कर्नाटक
मध्य प्रदेश
हिमाचल प्रदेश
उत्तराखंड
गोवा
असम
अरुणाचल प्रदेश
मणिपुर
मेघालय
नागालैंड
त्रिपुरा
सिक्किम
ओडिशा
पंजाब
राजस्थान
दिल्ली (दिसंबर में)
उपचुनाव के परिणाम आने के बाद और दिवाली के पहले पेट्रोल-डीजल के दाम में जो राहत मिली थी. वह पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर) के विधानसभा चुनावों के बाद गायब हो गई. गौर करने वाली बात यह है कि 4 नवंबर 2021 के बाद से 22 मार्च 2022 तक यानी 137 दिनों तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कोई बदलाव नहीं हुआ था.
राहुल गांधी ने 5 मार्च 2022 को ही ईंधन के दाम बढ़ने को लेकर आगाह करते हुए लिखा था. "फटाफट पेट्रोल टैंक फुल करवा लीजिए. मोदी सरकार का ‘चुनावी’ ऑफर ख़त्म होने जा रहा है."
समाजवादी पार्टी सांसद जया बच्चन ने भी कहा था कि "उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने बार-बार यही कहा था. आप लोग सतर्क हो जाएं. चुनाव के बाद दाम बढ़ने वाले हैं."
चुनाव और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में सांप-सीढ़ी का खेल अपने देश में चलता रहता है. पिछले पांच साल के चुनावों को देखें तो हमें स्थिति स्पष्ट हो जाएगी.
दिसंबर 2017 में गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे. 9 दिसंबर से वोटिंग होनी थी लेकिन एक महीने पहले (9 नवंबर) से ही पेट्रोल की कीमतें ठहर सी गई थीं. लेकिन जब 14 दिसंबर को वोटिंग खत्म हुई और अगले ही दिन पेट्रोल की कीमत में बढ़ोतरी हुई. इसके आगे काउंटिंग के 1 महीने बाद पेट्रोल की कीमतें 2 रुपए से ज्यादा बढ़ गईं.
मई 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए थे. तब वोटिंग से पहले लगातार 20 दिन तक ईंधन की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था. लेकिन 12 मई को वोटिंग खत्म होने के बाद अगले 15 दिन में ही पेट्रोल की कीमत 4 रुपए से ज्यादा बढ़ गई थी.
2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी तेल की कीमतों में मामूली सा बदलाव हुआ था. 19 मई को लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण की वोटिंग हुई थी. इसके अगले दिन ही पेट्रोल के दाम में 10 पैसे तक की और डीजल के दाम में 16 पैसे तक की बढ़ोतरी हुई थी.
2020 अक्टूबर-नवंबर में बिहार में चुनाव हुए थे. चुनाव की घोषणा से पहले और नतीजों के बाद कुल 58 दिन तक दाम नहीं बढ़े थे. 10 नवंबर को परिणाम आने के बाद से एक महीने तक यानी 10 दिसंबर तक 2 रुपये से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हो गई थी.
2021 में मार्च से अप्रैल तक असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी और केरल में विधानसभा चुनाव हुए थे. चुनाव के पहले 27 फरवरी से ही पेट्रोल-डीजल की कीमतों में ब्रेक लग गया था. लेकिन 2 मई को परिणाम आने के 2 दिन बाद ही पेट्रोल की कीमत दोबारा बढ़ने लगी और जून के पहले सप्ताह तक लगभग 4 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गईं थीं.
ये कहना आसान है कि राज्य पेट्रोल-डीजल पर वैट कम क्यों नहीं करते, लेकिन जरा गहरे में जाएं तो समझ में आएगा कि अब राज्यों के पास कमाई के ज्यादा अवसर है नहीं. राज्य खुद से अब टैक्स पेट्रोलियम उत्पादों और शराब पर ही लगा सकते हैं. जीएसटी लागू के बाद राज्यों में जमा कर भी पहले केंद्र के पास जाता है और फिर केंद्र उन्हें उनकी हिस्सेदारी भेजती है. जब पीएम मोदी ने राज्यों से वैट घटाने की अपील की तो कई राज्यों ने यही दलील दी कि आप हमारी जीएसटी हिस्सेदारी वक्त पर नहीं देते तो हम अपना खर्चा कैसे चलाएं? कुछ राज्यों ने तो पेट्रोल डीजल पर भी एक टैक्स यानी जीएसटी लागू करने की मांग कर दी.
वैसे कहना आसान है कि पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायर में लाया जाए लेकिन इसकी उम्मीद फिलहाल तो नहीं दिख रही क्योंकि ऐसा हुआ तो एक आकलन के मुताबिक केंद्र और राज्यों को एक लाख करोड़ रुपये का घाटा होगा.
यूपीए सरकार के समय राज्यों को एक्साइज ड्यूटी में से हिस्सा मिलता था, लेकिन अब राज्यों को मिलने वाला हिस्सा लगातार कम होकर महज कुछ पैसे प्रति लीटर रह गया है. इसलिए राज्य अपना वैट बढ़ाने के लिए मजबूर हुए हैं.
आपके फ्यूल टैंक तक पहुंचते-पहुंचते डीजल-पेट्रोल में इतना टैक्स लग जाता है कि तेल की कीमतें आपको भारी लगने लगती है. अब आपका सवाल होगा कि टैक्स में कटौती क्यों नहीं? इसका सीधा सा जवाब है राजस्व यानी कि रेवेन्यू. तेल पर टैक्स लगाने से केंद्र और राज्य सरकारों को भारी भरकम राजस्व प्राप्त होता है. केंद्र सरकार जहां सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी और अन्य सेस लगाती है वहीं राज्य सरकारें वैट और अन्य टैक्स और सेस लगाती हैं.
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी रुपये प्रति लीटर इस प्रकार है :
पेट्रोल : 27.90 रुपये
पेट्रोल ब्रांडेड : 29.10 रुपये
हाई स्पीड डीजल : 21.80 रुपये
हाई स्पीड डीजल ब्रांडेड : 24.20 रुपये
अलग-अलग राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में पेट्रोल-डीजल पर वसूला जाने वाला टैक्स अलग-अलग है. पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के आंकड़ों के मुताबिक लक्षद्वीप में पेट्रोल और डीजल पर कोई स्टेट टैक्स नहीं है, जबकि अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 1-1 फीसदी स्टेट टैक्स/वैट लिया जाता है. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, केरल और बिहार कुछ ऐसे राज्य हैं जहां राज्य सरकारें भारी टैक्स वसूलती हैं.
जब 2014 में केंद्र में पहली बार मोदी सरकार बनी तो उस समय पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.20 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 3.46 रुपये प्रति लीटर थी. हालिया डेटा की बात करें तो पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 27.90 रुपये प्रति लीटर और 21.80 रुपये प्रति लीटर है. सरकार ने दिवाली के आस पास (नवंबर 2021 में) एक्साइज ड्यूटी में कटौती की थी. उसके पहले यह 32.98 रुपये और 31.83 रुपये प्रति लीटर थी. फिलहाल मोदी सरकार के पहले टर्म की शुरूआत से अबतक एक्साइज ड्यूटी की बात करें तो पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 203 फीसदी से ज्यादा और डीजल पर करीब 530 फीसदी बढ़ी है.
बिजनेस लाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 से 2021 के बीच केंद्र और राज्य, दोनों ने पेट्रेल और डीजल पर टैक्स की दरें बढ़ाई हैं. लेकिन राज्यों की तुलना में केंद्र को ज्यादा लाभ हुआ है. पेट्रोल और डीजल की एक्साइज ड्यूटी में हर एक रुपये की बढ़ोतरी से केंद्र सरकार के खजाने में 13,000-14,000 करोड़ रुपये सालाना की बढ़ोतरी होती है.
पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती के बावजूद, केंद्रीय कर महामारी के पहले की तुलना में पेट्रोल पर 8 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 6 रुपये प्रति लीटर अधिक रहे हैं.
केंद्र सरकार ने लोकसभा में कहा था कि 31 मार्च 2021 को समाप्त हुए पिछले वित्त वर्ष में पेट्रोल-डीजल की एक्साइज ड्यूटी से 3.35 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई है. यह अब तक का रिकॉर्ड है. यह वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले करीब दोगुना कलेक्शन है.
2020-21 में क्रूड ऑयल और पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स व अन्य कर लगाने से जहां केंद्र सरकार द्वारा 4.19 लाख करोड़ रुपये (3.73 लाख करोड़ रुपये की एक्साइज ड्यूटी और 10,676 करोड़ रुपये के सेस को मिलाकर) एकत्र किए गए वहीं राज्यों द्वारा 2.17 लाख करोड़ रुपये (2.03 लाख करोड़ रुपये के VAT सहित) जुटाए गए.
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के मुताबिक दिल्ली में पेट्रोल के लिए चुकाए जाने वाली कीमत की बात करें तो प्रति 100 रुपये पर ग्राहकों को 45.3 रुपये टैक्स देना होता है. इसमें केंद्र सरकार को चुकाए जाने वाला टैक्स करीब 29 रुपये और राज्य सरकार को चुकाए जाने वाला टैक्स करीब 16.30 रुपये शामिल है. वहीं महाराष्ट्र में प्रति 100 रुपये पर सरकारों को 52.5 रुपये टैक्स, आंध्र प्रदेश में 52.4 रुपये, तेलंगाना में 51.6 रुपये, राजस्थान में 50.8 रुपये, मध्य प्रदेश में 50.6 रुपये, केरल में 50.2 रुपये और बिहार में 50 रुपये के करीब टैक्स देना पड़ता है. यानी आधे से भी ज्यादा कीमत आप सरकारों को टैक्स के रूप में देते हैं.
आंध्र प्रदेश
31% वैट
4रु./ली. अतिरिक्त वैट
1रु./ली. रोड विकास सेस और उसपर वैट
मध्य प्रदेश
29% वैट
2.5रु./ली. अतिरिक्त वैट
1% सेस
दिल्ली
19.40% वैट
जनवरी 2016 में क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल की इंटरनेशनल कीमतों में तगड़ी गिरावट आई थी. यह गिरकर करीब 35 डॉलर प्रति बैरल पर जा पहुंचा था. उस समय कच्चा तेल अपने करीब 11 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था. चूंकि सरकार ने तेल की कीमतों को बाजार पर छोड़ दिया तो उम्मीद की जा रही थी कि दाम घटेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. तब भी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई. तब सरकार ने गिरावट का इस्तेमाल अपनी कमाई बढ़ाने में किया था.
2014 में कुछ ऐसा था तेल का खेल :
क्रूड की इंटरनेशनल कीमतें: 106 डॉलर/बैरल (मई 2014 में औसत)
पेट्रोल पर टैक्स: 9.48 रुपये/लीटर
डीजल पर टैक्स: 3.56 रुपये/लीटर
अप्रैल 2022 में हाल हुआ बेहाल :
क्रूड की इंटरनेशनल कीमतें: 109 डॉलर/बैरल
पेट्रोल पर टैक्स: 27.90 रुपये/लीटर (इजाफा 203%)
डीजल पर टैक्स: 21.80 रुपये/लीटर (इजाफा 530%)
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें औसतन 61 डॉलर प्रति बैरल रही हैं तब भी पेट्रोल 110 रुपए एवं डीजल 100 रुपए प्रति लीटर से अधिक मूल्य पर बिक रहा है जबकि यूपीए सरकार के कार्यकाल में कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक रहे तब भी आमजन के हित को देखते हुए पेट्रोल 70 रुपये एवं डीजल 50 रुपये लीटर से अधिक महंगा नहीं होने दिया गया.
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