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सिक्किम में इतनी खतरनाक बाढ़ के पीछे वजह क्या है? क्या इसे रोका जा सकता था?

Sikkim Floods Explained | सिक्किम में ग्लेशियल झील क्यों फटी? क्या पहले से चेतावनी के कोई संकेत थे?

करण महादिक
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>Explained | सिक्किम में इतनी खतरनाक बाढ़ के पीछे क्या वजह है?</p></div>
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Explained | सिक्किम में इतनी खतरनाक बाढ़ के पीछे क्या वजह है?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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सिक्किम (Sikkim) के कुछ हिस्से बुधवार, 4 अक्टूबर को विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ गए. अबतक बरामद शवों की संख्या बढ़कर 22 हो गई है, जिनमें सेना के सात जवान भी शामिल हैं. 15 जवानों समेत कुल 103 लोग लापता हैं. सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SSDMA) के मुताबिक कम से कम चार जिलों- मंगन, गंगटोक, पाक्योंग और नामची में सबसे ज्यादा बाढ़ देखी गई. राज्य की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना में से एक, अचानक आई बाढ़ की वजह से गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई है.

दक्षिण ल्होनक झील एक हिमनदी या ग्लेशियल झील है, जो सिक्किम के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. जब झील फटी, तो पानी नीचे की ओर बहने लगा और तीस्ता नदी के जल स्तर में बढ़ोतरी हुई, जिसके बाद चार जिलों में बाढ़ आ गई.

गुरुवार, 5 अक्टूबर को सिक्किम के रंगपो शहर में अचानक भारी बारिश की वजह से आई बाढ़ के बाद एक वाहन पानी में डूबा हुआ दिखाई दे रहा है.

(फोटो- PTI)

लेकिन ग्लेशियल झील क्यों फटी? क्या पहले से चेतावनी के कोई संकेत थे? क्या ऐसा दोबारा हो सकता है? अगर हां, तो कहां? और इन सबका जलवायु परिवर्तन से क्या लेना-देना है? आइए जानते हैं...

GLOFs के बारे में आप कितना जानते हैं?

दक्षिण ल्होनक झील की फील्ड फोटोग्राफ, जिसमें वर्तमान ग्लेशियर टर्मिनस, पार्श्व मोराइन और मोराइन का अग्र भाग दिखाया गया है.

(फोटो- Department of Science and Technology, Government of Sikkim)

कोलंबिया क्लाइमेट स्कूल (Columbia Climate School) के मुताबिक ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ ( glacial lake outburst flood) तब घटित होती है, जब बांध के फेल होने से ग्लेशियल झील का पानी अचानक और तेजी से नीचे की ओर बढ़ता है.

दक्षिण ल्होनक झील संभवतः अस्थिर बर्फ या ढीली चट्टान और मलबे (मोरेन-बांधित) से बनी तलछट से क्षतिग्रस्त हुआ है.

पानी का दबाव, बर्फ और चट्टान के हिमस्खलन, भूकंप, कटाव और अन्य प्राकृतिक व्यवधानों की वजह से GLOFs हो सकता है.

University of Canterbury (New Zealand) के लेक्चरर टॉम रॉबिन्सन, Indian Express से बातचीत में कहते हैं- "ये झीलें अक्सर खड़ी, पहाड़ी इलाकों में भी पाई जाती हैं, जिसका अर्थ है कि भूस्खलन या बर्फ का हिमस्खलन कभी-कभी सीधे झीलों में गिर सकता है और पानी को विस्थापित कर सकता है, जिससे यह प्राकृतिक बांध के ऊपर पहुंच जाता है और नीचे की ओर बाढ़ आ जाती है."

क्या GLOF की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है?

हां, GLOF का पता लगा पाना मुश्किल हो सकता है. जब बरसात की तेजी, भूस्खलन का स्थान, पानी की मौजूद मात्रा, झीलों और जल निकायों की भौतिक स्थिति पर पर्याप्त डेटा का अभाव हो, तो ऐसा हो सकता है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप से कथित तौर पर GLOF आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है.

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क्या दक्षिण ल्होनक झील GLOF के नजरिए से संवेदनशील है?

दक्षिण ल्होनक झील कथित तौर पर कई सालों से सरकारी अधिकारियों के रडार पर है. सिक्किम वन एवं पर्यावरण विभाग की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि बुलेट के आकार की झील का क्षेत्रफल पिछले पांच दशकों में काफी बढ़ गया है.

ल्होनक 1989 में अपने शुरुआती आकार से लगभग 1.5 गुना और दक्षिणी ल्होनक लगभग 2.5 गुना बढ़ गया है. 21 सितंबर, 1991 को 4.9 तीव्रता का भूकंप (संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट) दक्षिण ल्होनक झील और झील को पोषित करने वाले एक्चुअल ग्लेशियर के पास था. 18 सितंबर, 2011 का हालिया भूकंप (6.9) झीलों से लगभग 70 किलोमीटर दूर और भविष्य के भूकंप GLOF घटनाओं को ट्रिगर कर सकते हैं.
सिक्किम वन एवं पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट

सिर्फ सिक्किम सरकार ही नहीं, कई इंडिपेंडेंट रिसर्चर्स ने भी ग्लेशियर के पिघलने के नतीजे में दक्षिण ल्होनक झील के GLOF के प्रति संवेदनशील होने के बारे में खतरे की तरफ इशारा किया है.

प्रोग्लेशियल झील प्रोसेस दर्शाने वाला प्लान किया हुआ आरेख.

(फोटो- ScienceDirect.com)

उदाहरण के लिए, 'फ्यूचर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) हैजार्ड ऑफ द साउथ लोनक लेक, सिक्किम हिमालय' टाइटल वाली 2021 की स्टडी के अहम नतीजों में से एक यह था कि "चुंगथांग में रिवर चैनल के किनारे स्थित कई बस्तियां आने वाले वक्त में संभावित रूप से रिस्क में हैं."

2021 के एक स्टडी में चेतावनी दी गई थी- "दक्षिण ल्होनक झील को बांधने वाले टर्मिनल मोराइन की चौड़ाई एक समान नहीं है और सिरों की ओर पतली हो रही है. बांध की ढीली सतह से संकेत मिलता है कि इसमें दबी हुई बर्फ होने की संभावना है और यह आने वाले वक्त में डिग्रेडेशन का मुद्दा हो सकती."

स्टडी में सिफारिश की गई थी कि पूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के साथ-साथ GLOF जोखिम शमन उपाय भी किए जाएं.

दक्षिण ल्होनक झील के लिए टर्निंग पॉइंट क्या था?

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक दक्षिण ल्होनक झील में GLOF घटना का अहम कारण संभवतः "ज्यादा बरसात" है, जिसमें कहा गया है कि वैज्ञानिक अभी भी सटीक वजह की जांच कर रहे हैं.

मौसम विभाग के मुताबिक जिस इलाके में दक्षिण ल्होनक झील स्थित है, वहां रविवार, 1 अक्टूबर से लगभग 50 मिलीमीटर बरसात (48 प्रतिशत बढ़ोतरी) दर्ज की गई है.

Hindustan Times की रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के वरिष्ठ जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ अरुण बी श्रेष्ठ ने कहा कि हम तीस्ता नदी, सिक्किम में अचानक आई विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहे हैं. इसकी सही जानकारी नहीं है लेकिन लेकिन ऐसा लगता है कि बंगाल की खाड़ी के कम दबाव वाले अवसाद से भारी वर्षा की वजह से यह आपदा आई. यह बड़े खतरों का एक और उदाहरण लगता है.

हालांकि, एक और सिद्धांत जो सामने आया है वह यह है कि नेपाल में हाल ही में आए भूकंप ने GLOF को फोर्स दे दिया. India Today की रिपोर्ट के मुताबिक साइट का दौरा करने वाले एक्सपर्ट्स का मानना है कि भूकंप की वजह से यह आपदा आई होगी क्योंकि "बादल फटने के ये नतीजे नहीं होते हैं."

मंगलवार, 3 अक्टूबर को नेपाल में 6.2 तीव्रता का भूकंप आया, जिसके साथ दिल्ली-NCR और उत्तर प्रदेश के लखनऊ, अमरोहा और हापुड़ जैसे अन्य शहरों में तेज झटके महसूस किए गए. सोशल मीडिया पर भूकंप के झटकों का असर दिखाने वाले कई वीडियो वायरल हुए.

सरकार क्या कर सकती है?

2016 में, साउथ ल्होनक झील से प्रति सेकंड 150 लीटर पानी निकाला गया. यह काम सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और सिक्किम के विज्ञान और प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग के सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था.

Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक इनोवेटर सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) (3 इडियट्स फेम) पानी को निकालने की एक तकनीक लेकर आए और इसे उनकी देखरेख में आठ इंच चौड़े और 130-140 मीटर लंबे तीन हाई डेंसिटी पॉलीथीन (HDPE) पाइपों का उपयोग करके लागू किया गया.

यह स्पष्ट नहीं है कि झील की जगह पर हाल ही में इसी तरह का कार्य किया गया था या नहीं.

सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने एक सोशल मीडियो पोस्ट में लिखा कि

हम सभी हमारे राज्य में आई हालिया प्राकृतिक आपदा पर नजर रख रहे हैं. प्रभावित इलाकों में इमरजेंसी सेवाएं तैनात कर दी गई हैं और नुकसान का आकलन करने और स्थानीय समुदाय के साथ बातचीत करने के लिए मैंने व्यक्तिगत रूप से सिंगतम का दौरा किया.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुख्यमंत्री को फोन किया और कथित तौर पर उन्हें केंद्र से समर्थन का आश्वासन दिया.

इस बीच, भारतीय सेना ने खतरनाक बाढ़ के दौरान लापता लोगों के परिवारों के लिए तीन हेल्पलाइन नंबर शुरू किया हैं, जिनमें सेना के अपने सैनिक भी शामिल हैं.

उत्तरी सिक्किम के लिए सेना का हेल्पलाइन नंबर - 8750887741

पूर्वी सिक्किम के लिए सेना की हेल्पलाइन - 8756991895

लापता सैनिकों के लिए सेना की हेल्पलाइन - 7588302011

क्या GLOF को रोका जा सकता है या फिर यह न्यू नॉर्मल है?

जियोमॉर्फोलॉजी जर्नल में प्रकाशित 2021 के एक स्टडी में सामने आया कि 2015 में चुंगथांग में जलविद्युत बांध के निर्माण के कारण, दक्षिण ल्होनक और बेसिन में अन्य महत्वपूर्ण झीलों के संबंध में जीएलओएफ जोखिम न्यूनीकरण बेहद अहम है.

(फोटो- ScienceDirect.com)

बढ़ते ग्लोबल तापमान की वजह से सिक्किम हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. नतीजतन पर्वतीय इलाके में कई ग्लेशियर झीलें तेजी से क्षेत्रफल के नजरिए से बड़ी होती जा रही हैं.

Mongabay की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्त में सिक्किम हिमालयी इलाके में 300 हिमनद झीलों में से 10 विस्फोट के नजरिए से संवेदनशील हैं.

इसी तरह की एक जलवायु घटना 2013 में हुई थी, जब उत्तराखंड के केदारनाथ में चोराबाड़ी ताल हिमनद झील फट गई थी और इस दौरान हजारों लोगों को जान गंवाना पड़ा था.

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि

GLOF से जुड़े जोखिम को कम करने के लिए सबसे अहम शमन उपाय झील में पानी की मात्रा को कम करना है, जिससे पीक सर्ज डिस्चार्ज को कम किया जा सके.

झील के पानी की मात्रा को कम करने के लिए, ICIMOD रिपोर्ट में सिफारिश की गई:

  • नियंत्रित उल्लंघन

  • एक आउटलेट नियंत्रण संरचना का निर्माण

  • झील से पानी को पंप करना या साइफन से बाहर निकालना

  • मोराइन बैरियर के जरिए या बर्फ के बांध के नीचे सुरंग बनाना

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