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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 15 फरवरी को चुनावी बांड (Electoral Bond) योजना को रद्द कर दिया. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया और कहा कि यह योजना सूचना के अधिकार (RTI) का उल्लंघन करती है. इसे साल 2018 में राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे की जगह लाया गया था. आइये समझते हैं क्या है चुनावी बॉन्ड और इसे सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द किया.?
चुनावी बॉन्ड एक पैसे देने का साधन है जो व्यक्तियों और कंपनियों को अपनी पहचान उजागर किए बिना, राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता करने की अनुमति देता है. साल 2017 में बजट सेशन में तात्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह योजना पेश की थी. 9 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे लागू किया.
इलेक्टोरल बॉनड्स के जरिए आप देश की किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को चंदा दे सकते हैं. इसके लिए आपको बॉन्ड खरीदना होता है.
ये बॉन्ड आप केवल सरकारी बैंक - स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी SBI से ही खरीद सकते हैं. किसी और बैंक के पास आपको इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं मिलेंगे.
इलेक्टोरल बॉन्ड से ये भी सुविधा मिलती है, कि किसने, किस पार्टी को और कितना चंदा दिया ये सब गुप्त होता है. पार्टी को भी पता नहीं चलता कि उसे किसने चंदा दिया है. हां लेकिन एसबीआई को इसकी जानकारी होती है. चुनाव आयोग या आम जनता इस बारे में नहीं जान सकते कि किस पार्टी को, किसने, कितना चंदा दिया है.
साथ ही ये बॉन्ड टैक्स के दायरे में नहीं आता, ना ही इस पर किसी तरह का ब्याज दिया जाता है. साथ ही ये भी माना जाता है कि अगर विपक्षी पार्टी को किसी ने ज्यादा चंदा दे दिया तो सत्ता पक्ष उसको परेशान कर सकती है और इसका उल्टा भी हो सकता है, इसीलिए डोनर की जानकारी गुप्त रखने का फैसला लिया गया.
मान लीजिए आप किसी पॉलिटिकल पार्टी को 10 हजार रुपये का चंदा देना चाहते हैं. इसके लिए आप SBI की किसी शाखा पर जा कर बताएंगे कि फलां पार्टी को 10 हजार रुपये डोनेट करना चाहते हैं. इसके बाद आपको बैंक में 10 हजार रुपये जमा करने होंगे और इसके बादले आपको 10 हजार रुपये का बॉन्ड मिल जाएगा.
यही बॉन्ड पॉलिटिकल पार्टी को मिलेगा. अब पार्टी के पास इस बॉन्ड को रीडीम करने के लिए केवल 15 दिन का समय मिलेगा.
अगर पार्टी 15 दिन में बॉन्ड को रीडीम करती है तो बैंक में आपका जमा पैसा 10 हजार रुपये उस पार्टी के खाते में चला जाएगा. अगर पार्टी 15 दिन में बॉन्ड का रिडिम्पशन नहीं करती तो आपका जमा पैसा प्राइम मिनिस्टर रीलीफ फंड को डोनेट कर दिया जाएगा.
आप किसी भी पार्टी को मन चाहा अमाउंट डोनेट नहीं कर सकते. इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत चंदे की रकम फिक्स होती है. ये बॉन्ड:
1000, 10,000, 1,00,000, 10,00,000 और एक करोड़ का मिलता है.
आप चाहे तो एक से ज्यादा बॉन्ड भी खरीद सकते हैं.
देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा नहीं मिल सकता. इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए केवल उन्हीं पार्टी को चंदा मिल सकता है जो रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट 1951 के तहत रजिस्टर्ड हो और उस पार्टी को लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम 1% वोट मिला हो.
इलसे पहले 20,000 रुपये तक का कैश में चंदा देने वालों की जानकारियों को गुप्त रखा जाता था, उससे ज्यादा का चंदा देने वालों की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती थी. बाद में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 20000 रुपये को घटा कर 2000 कर दिया था, यानी 2000 तक का कैश में चंदा देने वालों की जानकारी गुप्त और उससे ऊपर का चंदा देने वालों की जानकारी चुनाव आयोग के पास होती थी. लेकिन अब जो इलेक्टोरल बॉन्ड आए उसमें हर किसी की जानकारी गुप्त है और चुनाव आयोग को भी नहीं दी जाती है.
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के लागू होते ही इसके खिलाफ कई याचिकाएं कोर्ट में दाखिल हुईं थी,याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पॉलिटिकल पार्टियों को कौन कितना चंदा दे रहा है ये आम लोगों को मालूम होना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि गुप्त रूप से सरकार की पार्टी को चंदा दे कर लोग या कंपीन सरकार इनडायरेक्ट फायदा ले सकते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि जो कंपनी घाटे में है वो भी चंदा दे सकती है, ऐसा क्यों हैं. कंपनी के शेयर होल्डर्स को भी मालूम होना चाहिए कि उनकी कंपनी किस पार्टी को चंदा दे रही है.
कोर्ट ने SBI को आदेश दिया कि 6 मार्च तक बैंक के पास इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर जो भी जानकारी है वो सारी चुनाव आयोद को दी जाए जिसके बाद चुनाव आयोग उसे सार्वजनिक करें.
जब संसद में कांग्रेस ने पूछा कि अब तक कितने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए हैं तो 5 फरवरी, 2024 को सत्ता पक्ष की ओर से जवाब में बताया गया कि कुल 16 हजार 518 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए हैं. आपको ये भी बता दें कि इसमें से 50% से ज्यादा बॉन्ड बीजेपी को मिले हैं.
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