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5G क्या है? 5 प्वाइंट में समझिए पूरी तकनीक, फायदे और चुनौतियां

5G के बारे में पिछले करीब 2 सालों से चर्चा हो रही है और अब कई देशों में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है.

सायरस जॉन
कुंजी
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5G टेक्नोलॉजी आने से दुनिया काफी बदलने वाला है लेकिन इसकी अपनी चुनौतियां भी हैं
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5G टेक्नोलॉजी आने से दुनिया काफी बदलने वाला है लेकिन इसकी अपनी चुनौतियां भी हैं
(फोटो: iStockphoto)

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हम साल 2020 में पहुंच चुके हैं और यह 5G का दौर है! 5G के बारे में पिछले करीब 2 सालों से चर्चा हो रही है और अब चीन, अमेरिका, जापान और यहां तक कि दक्षिण कोरिया जैसे देशों में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है. 5G की चर्चा होते ही हम स्वचालित गाड़ियों, ऑग्मेंटेड रियलिटी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी चीजों पर बात करने लगते हैं.

लेकिन 5G पर चर्चा के बीच कई लोग यह जानने के लिए जरूर उत्सुक होंगे कि 5G टेक्नोलॉजी आखिर है क्या और यह मौजूदा टेक्नोलॉजी के बीच किस तरह जगह बनाएगा. तो चलिए हम इसे आपको समझाने की कोशिश करते हैं.

मैं आपको बता देता हूं कि इस पूरे लेख में कुछ जगहों पर कठिन शब्द होंगे, लेकिन आप धैर्य बनाकर रखें. मैं पूरी कोशिश करूंगा कि ये आपको समझा सकूं.

5G क्या है?

5G मोबाइल नेटवर्क का पांचवा जेनरेशन है. 5G को इस तरह से सोचिए कि 4G नेटवर्क की स्पीड का 100 गुना. 4G की तरह ही, 5G भी उसी मोबाइल नेटवर्किंग प्रिंसिपल पर आधारित है.

पांचवी पीढ़ी की वायरलेस तकनीक अल्ट्रा लो लेटेन्सी (आपके फोन और टावर के बीच सिग्नल की स्पीड) और मल्टी-जीबीपीएस डेटा स्पीड पहुंचाने में सक्षम है.

यह एक सॉफ्टवेयर आधारित नेटवर्क है, जिसे वायरलेस नेटवर्क की स्पीड और कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए डेवलप किया गया है. यह तकनीक डेटा क्वांटिटी को भी बढ़ाती है, जो वायरलेस नेटवर्क को ट्रांसमिट किया जा सकता है.

5G टेक्नोलॉजी का आधार पांच तकनीकों से बनता है
1. मिलीमीटर वेव
2. छोटे सेल्स
3. मैक्सिमम MIMO
4. बीमफॉर्मिंग
5. फुल डुप्लेक्स

5G टेक्नोलॉजी के पांच आधार

5G तकनीक "सब-6 बैंड" में काम करने में सक्षम है, जिसकी फ्रीक्वेंसी आम तौर पर 3Ghz-6Ghz के बीच होती है. अधिकतर मौजूदा डिवाइस जैसे मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप भी इसी फ्रीक्वेंसी में काम करते हैं, जिसकी रीच काफी अधिक होती है.

हालांकि इस सिस्टम में काफी ज्यादा ट्रैफिक होने के कारण अब रिसर्चर 6Ghz से ऊपर प्रयोग करने की सोच रहे हैं. वे 24Ghz-300Ghz स्पेक्ट्रम पर काम करने की तैयारी में हैं जिसे हाई-बैंड माना जाता है. एक्सपर्ट इसे मिलीमीटर-वेव (mmWave) भी कहते हैं.

मिलीमीटर-वेव 5G
मिलीमीटर-वेव 5G बहुत सारा डेटा एक्वॉयर करता है, जो 1 जीबी प्रति सेकेंड की स्पीड से डेटा ट्रांसफर को संभव बनाता है. ऐसी तकनीक फिलहाल अमेरिका में वेरीजॉन और AT&T जैसे टेलीकॉम ऑपरेटर इस्तेमाल कर रहे हैं.

स्पीड सेल्स
5G टेक्नोलॉजी का दूसरा आधार स्पीड सेल्स है. मिलीमीटर-वेव में रेंज के साथ दिक्कत है जिसकी भरपाई स्पीड सेल्स करता है. चुंकि mm वेव रुकावटों में काम नहीं कर सकता है, इसलिए मेन सेल टावर से सिग्नल रिले करने के लिए पूरे क्षेत्र में बड़ी संख्या में मिनी सेल टावर्स लगाए जाते हैं. इन छोटे सेल को परंपरागत टावर की तुलना में कम दूरी पर रखा जाता है ताकि यूजर्स को बिना किसी रुकावट के 5G सिग्नल मिल सके.

मैक्सिमम MIMO
5G टेक्नोलॉजी का अगला आधार है मैक्सिमम MIMO, यानी मल्टीपल-इनपुट और मल्टीमल आउटपुट टेक्नोलॉजी. इस तकनीक का इस्तेमाल कर ट्रैफिक को मैनेज करने के लिए बड़े सेल टावर्स का इस्तेमाल किया जाता है. एक रेगुलर सेल टावर जिससे 4G नेटवर्क मिलता है, वो 12 एंटीना के साथ आता है जो उस क्षेत्र में सेल्युलर ट्रैफिक को हैंडल करता है.

MIMO 100 एंटीना को एक साथ सपोर्ट कर सकता है जो अधिक ट्रैफिक रहने पर टावर की क्षमता को बढ़ाता है. इस तकनीक के सहारे आसानी से 5G सिग्नल पहुंचाने में मदद मिलती है.

बीमफॉर्मिंग

बीमफॉर्मिंग एक ऐसी तकनीक है जो लगातार फ्रीक्वेंसी की कई सारे सोर्सेस को मॉनिटर कर सकती है और एक सिग्नल के ब्लॉक रहने पर दूसरे मजबूत और अधिक स्पीड वाले टावर पर स्विच करती है. यह सुनिश्चित करती है कि खास डेटा सिर्फ एक खास दिशा में ही जाए.

फुल डुप्लेक्स

फुल डुप्लेक्स एक ऐसी तकनीक है, जो एक समान फ्रीक्वेंसी बैंड में एक साथ डेटा को ट्रांसमिट और रिसीव करने में मदद करता है. लैंडलाइन टेलीफोन और शॉर्ट वेव रेडियो में इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल होता है. यह टू-वे स्ट्रीट की तरह है, जो दोनों तरफ से समान ट्रैफिक भेजता है.

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5G टेक्नोलॉजी के फायदे

जरा सोचिए कि आपने एक फुल एचडी फिल्म 3 सेकंड के अंदर डाउनलोड कर लिया. इतना ही तेज होने वाला है 5G नेटवर्क. क्वॉलकॉम के अनुसार, 5G ट्रैफिक कपैसिटी और नेटवर्क एफिसिएंसी में 20 जीबी प्रति सेकेंड की स्पीड देने में सक्षम है.

इसके अलावा mm वेव के साथ, आप 1ms की लेटेंसी पा सकते हैं जो तुरंत कनेक्शन इस्टैब्लिश करने और नेटवर्क ट्रैफिक को कम करने में मदद करता है.

क्वॉलकॉम के अध्यक्ष क्रिस्टियानो आमोन का भी मानना है कि 5G नेटवर्क ऐसी स्पीड देगा, जो रियल टाइम में ऑग्मेंटेड रियलटी का अनुभव करा सकता है. इससे ऑग्मेंटेड रियलिटी पर काम करने वाले हार्डवेयर के विकास में भी मदद मिलेगी.

यह तकनीक वर्चुअल रियलिटी, ऑटोमैटिक ड्राइविंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के लिए आधार बनने जा रहा है. यह सिर्फ आपके स्मार्टफोन इस्तेमाल करने के अनुभव को बेहतर नहीं करने वाला है, बल्कि मेडिकल, इंफ्रास्ट्रक्चर और यहां तक कि मैन्युफैक्चरिंग के विकास में भी मदद करने वाला है.

5G की चुनौतियां

5G टेक्नोलॉजी को लाना काफी महंगा होने वाला है. नेटवर्क ऑपरेटर्स को मौजूदा सिस्टम हटाना पड़ेगा क्योंकि इसके लिए 3.5Ghz से अधिक फ्रीक्वेंसी की जरूरत होती है जो 3G या 4G में इस्तेमाल होने वाले से बड़ा बैंडविड्थ है.

सब-6 Ghz स्पेक्ट्रम की बैंडविड्थ भी लिमिटेड है, इसलिए इसकी स्पीड मिलीमीटर-वेव की तुलना में कम हो सकती है.

इसके अलावा, मिलीमीटर-वेव कम दूरियों में ज्यादा प्रभावी होता है और यह रुकावटों में काम नहीं कर सकता है. यह पेड़ों के द्वारा और बारिश के दौरान एब्जॉर्ब भी हो सकता है, इसका मतलब है कि 5G को ठोस तरीके से लागू करने के लिए आपको काफी ज्यादा हार्डवेयर लगाने की जरूरत होगी.

5G का विस्तार तो रहा है लेकिन लोगों के उम्मीदों के मुताबिक नहीं. GSMA इंटेलीजेंस रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा रेट के तहत भी 2025 तक 3G और 4G को 5G ओवरटेक नहीं कर पाएगा.

2025 तक 5G के विस्तार का अनुमान(फोटो: GSMA Intelligence)

हालांकि, क्वॉलकॉम के अध्यक्ष क्रिस्टियानो आमोन का मानना है कि 2022 तक 5G स्मार्टफोन की संख्या 75 करोड़ होगी और 2023 तक 5G कनेक्शन 1 अरब होने चाहिए. 4G को इस आंकड़े तक पहुंचने में इससे दो साल ज्यादा लगे हैं.

इसके अलावा 5G टेक्नोलॉजी के साथ सिक्योरिटी और प्राइवेसी का भी मुद्दा है, जो अधिक इस्तेमाल होने के बाद ही पता चल पाएगा.

क्या 5G, 4G के साथ काम कर सकता है?

6Ghz से अधिक स्पेक्ट्रम की फ्रीक्वेंसी में 5G बेहतर काम करता है. 2G, 3G और 4G जैसी पुरानी तकनीक भी वायरलेस बैंड्स पर ऑपरेट होती है जो 3.5Ghz से 6Ghz के बीच होता है.

एंड्रायड सेंट्रल की एक रिपोर्ट के अनुसार- 5G, 4G के साथ काम कर सकता है लेकिन 3Ghz-6Ghz स्पेक्ट्रम अधिक इस्तेमाल होने के कारण रिसर्चर्स 6Ghz से आगे 30Ghz-300Ghz के बीच शॉर्टर mm वेव पर एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं.

इस तरह के स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल पहले टेलीविजन के लिए होता था लेकिन कभी मोबाइल डिवाइसों के लिए नहीं किया गया. इस स्पेक्ट्रम में जाने का मतलब है मोबाइल डिवाइस के लिए अधिक बैंडविड्थ मिलना.

पिछले कुछ सालों में 5G की बदलती तस्वीर(फोटो: Android Central)

कुछ तकनीक जैसे 5G NR (न्यू रेडियो) और यहां तक कि 5Ge (AT&T प्रॉपराइटरी एलटीई एडवांस्ड नेटवर्क) 4G नेटवर्क पर काम करते हैं, लेकिन ये mm वेव की तरह फास्ट नहीं हैं, जिसका मतलब है कि 1 जीबी प्रति सेकंड से अधिक की स्पीड के लिए नए हार्डवेयर लगाने होंगे.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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