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चांदीमल विवाद: बॉल टैंपरिंग बला क्या है, इसका पूरा साइंस समझ लो!

बॉल टैंपरिंग और उससे जुड़े सभी सवालों को आसानी से बताया गया है, पढ़ लीजिए

अभिनव राव
कुंजी
Updated:
वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलते हुए श्रीलंका के कप्तान दिनेश चांदीमल पर बॉल टैंपरिंग का आरोप लगा है
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वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलते हुए श्रीलंका के कप्तान दिनेश चांदीमल पर बॉल टैंपरिंग का आरोप लगा है
(फोटो: Twitter/ICC)

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वेस्टइंडीज और श्रीलंका क्रिकेट टीम के बीच सेंट लुसिया में चल रहे टेस्ट मैच के दौरान बॉल टैंपरिंग का भूत फिर से बाहर आ गया है. इस  बार इल्जाम लगा है श्रीलंका के कप्तान दिनेश चांदीमल पर, कि उन्होंने मैच के दूसरे दिन के आखिरी सत्र में गेंद के साथ छेड़छाड़ की और उसपर शुगर सलाइवा लगाने की कोशिश की. आईसीसी ने चांदीमल को आरोपी पाया है तो वहीं लंकाई कप्तान ने खुद को बेकसूर बताया है. आप पूरा मामला यहां पढ़ सकते हैं.

ऐसे में ये सवाल हर जगह है कि ये बॉल टैंपरिंग बला क्या है और क्या ये इतनी ज्यादा बड़ी चीज है कि मैच का रुख ही बदल दे? इस स्टोरी में हम आपको बेहद सरल अंदाज में बॉल टैंपरिंग और उससे जुड़ी चीजों को बताने की कोशिश करेंगे.

बॉल टैंपरिंग होती कैसे है?

जब किसी फील्डिंग टीम की ओर से कोई खिलाड़ी जानबूझकर मैच के दौरान गेंद की स्थिति को खराब करने की कोशिश करता है तो उसे बॉल टैंपरिंग कहते हैं. अक्सर टैंपरिंग करने वाला खिलाड़ी गेंद के आकार से छेड़छाड़ करने की कोशिश करता है. आप जानते ही हैं कि क्रिकेट बॉल लैदर से बना होता है. ऐसे में जब खेल आगे बढ़ता है तो गेंद खुद-ब-खुद पिच से लगकर, या बल्ले से पिटकर या फिर ग्राउंड पर रगड़-रगड़ कर थोड़ी सी खुरदुरी होने लगती है. ऐसे में अलग-अलग कंडीशन में वो खुरदुरी गेंद अलग-अलग तरीके से व्यवहार करती है. अब अगर मैच भारत जैसे उपमहाद्वीप में है और पिच स्पिन कर रही है तो टैंपरिंग की सोच रखने वाला खिलाड़ी चाहेगा कि गेंद की स्थिति और ज्यादा खराब हो जाए. गेंद बिल्कुल बुरी तरह से खुरदुरी हो जाए या फिर अगर मैच इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया या साउथ अफ्रीका की किसी तेज पिच पर हो रहा है तो वो खिलाड़ी गेंद को कम खुरदुरा करने या फिर थूक या कुछ और गलत चीज लगाकर उसकी शाइन बचाने का प्रयास करेगा क्योंकि जितनी चिकनी गेंद होगी उतनी ही तेज गेंदबाजों को मदद मिलेगी.

विराट कोहली और डुप्लेसी पर गेंद पर जैली और मिंट लगाने के आरोप लगे थे. (फोटो: Twitter/Facebook)

आप सोच रहे होंगे कि ये तो आम बात है कि खिलाड़ी गेंद को चमकाने के लिए थूक लगाता है या फिर चमक को हटाने के लिए बार-बार गेंद को जमीन पर पटकता है तो इसमें बुरा क्या है? इसमें बुरा तब तक नहीं है जब तक खिलाड़ी किसी आर्टिफिशियल चीज जैसे टेप, च्विंगम, टॉफी, संसक्रीम, जैली, मिठाई, चॉकलेट, पिन, पत्थर, जूते या मैदान से रगड़ना,कड़े या नाखून से छीलने की कोशिश न कर रहे हों, जैसे ही उन्होंने गेंद की हालत बदलने के लिए कुछ भी बाहरी चीज अपनाई तो वो टैंपरिंग कहलाएगी.

लेकिन टैंपरिंग से फायदा मिलता है क्या?

एशेज 2005 के दौरान की एक तस्वीर उस सीरीज में इंग्लैंड के गेंदबाजों ने स्विंग और रिवर्स स्विंग से कहर बरपाया था(फाइल फोटो)

टैंपरिंग का सीधा-सीधा मतलब होता है कि दोषी टीम गेंद को अपने मन मुताबिक व्यवहार करवाना चाहती है. उदाहरण के लिए आपको इंग्लैंड में खेली गई 2005 की एशेज सीरीज की याद दिलाते हैं जहां पर फ्लिंटॉफ, हार्मिसन, होगार्ड और साइमन जोन्स जैसे गेंदबाजों ने ऑस्ट्रेलिया पर स्विंग और रिवर्स स्विंग का कहर ढाया था. लोग उस सीरीज को टेस्ट क्रिकेट की सबसे रोमांचक सीरीज में से एक मानते हैं लेकिन इंग्लैंड के दिग्गज ओपनर मार्कस ट्रैस्कॉथिक ने अपनी आत्मकथा “Coming Back To Me” में लिखा कि उन्होंने पूरी सीरीज के दौरान गेंद की चमक को बरकरार रखने के लिए ‘मिंट सलाइवा’ का इस्तेमाल किया और उसके बाद गेंद ने खूब स्विंग और रिवर्स स्विंग दिखाई. वो ज्यादा गाढ़ा सलाइवा पैदा करने वाली मिंट टॉफी खाते और गेंद पर उसे रगड़ते ताकि गेंद की चमक और नयापन लंबे समय तक बरकरार रहे. उस सीरीज में अक्सर देखा गया कि गेंद 40वें ओवर तक रिवर्स स्विंग करने लगती थी, यहां तक की बिल्कुल हरी पिच पर भी गेंद रिवर्स कर रही थी जोकि देखने को नहीं मिलता है.

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रिवर्स स्विंग का साइंस क्या है?

हमने ऊपर लिखा कि हरी पिच पर गेंद जल्दी से रिवर्स नहीं करती. उसका मतलब ये है कि हरी-भरी घास में जब लैदर लगता है तो उसे थोड़ा कम नुकसान पहुंचता है. आपने टीवी रीप्ले में देखा भी होगा कि इंग्लैंड, न्यूजीलैंड में जब मैच होते हैं तो गेंद की चमक काफी देर तक बरकरार रहती है जबकि भारत, श्रीलंका या बांग्लादेश में सख्त पिचों पर होने वाले मैचों में गेंद पहले सेशन के बाद ही पुरानी सी लगने लगती है. रिवर्स स्विंग का साइंस यहीं से शुरू होता है. तेज गेंदबाजों का ये सबसे बड़ा हथियार माना जाता है.

रिवर्स स्विंग पाने के लिए गेंद की एक साइड को चमकाया जाता है तो दूसरे को खुरदुरा रखा जाता है(फोटो: Facebook)
जब गेंद नया होता है तो वो किसी भी तरफ स्विंग करता है क्योंकि गेंद दोनों तरफ से चमकता है या शाइन करता है.  लेकिन जैसे-जैसे गेंद पुरानी होने लगती है तो उसकी चमक चली जाती है और स्विंग गायब होने लगती है. पुरानी गेंद को स्विंग कराने के लिए, खिलाड़ी गेंद की एक साइड को लगातार चमकाने की कोशिश करते हैं वहीं दूसरी साइड को जैसे का तैसा यानी खुरदुरा रखने की कोशिश करते हैं. चमकने वाली साइड को थोड़ा स्मूथ रखने की कोशिश भी की जाती है क्योंकि जब गेंदबाज तेजी से गेंद फेंके तो हवा चिकने साइड से आसानी से पास हो और खुरदुरे साइड से मुश्किल से. इसे फ्रिक्शन कह सकते हैं. उससे फायदा ये होता है कि गेंद चिकने साइड की तरफ मूव करती है. इसे विज्ञान की भाषा में एयरोडायनामिक्स कहते हैं.

इसको आप ऐसे देखें कि जब गेंदबाज आउट स्विंगर डालेगा यानी गेंद को बाहर निकालने के गेंद फेंकेगा तो गेंद इनस्विंग होगी और जब वो इनस्विंग करेगा तो गेंद बाहर की तरफ निकलेगी यानी आउटस्विंग करेगी. आपको बता दें कि बल्लेबाज तेज गेंदबाजी खेलते हुए हमेशा गेंदबाज की कलाई को देखता है और उसी के मुताबिक बल्लेबाजी करता है. अब अगर वो हाथ की मूवमेंट को आउट स्विंग के तरीके से देख रहा है लेकिन गेंद अंदर घुस जाती है तो वो गेंदबाज के जाल में फंस जाता है.

तो फिर मिंट, मिठाई और जैली का क्या प्रयोग?

अब जरा सोचिए एक तरफ तो फील्डर लगातार गेंद को घिस घिस कर चमका रहा है. उसकी शाइन को बनाए रख रहा है क्योंकि शाइनी साइड से हवा आसानी से जा रही है और गेंद उसी तरफ मुड़ रही है. इसमें अगर आप शाइनी साइड में ही मिंट, शुगर और जैली से भरा सलाइवा लगा देंगे तो वो गेंद उस तरफ से और ज्यादा भारी हो जाएगी. दो साइड वाली गेंद का शाइनी साइड हवा के लिए चिकना और भारी हो जाएगा. अब गेंद को जब बॉलर रिलीज करेगा तो वो गेंद शाइनी साइड की तरफ और तेजी से झुकेगी. मतलब जबरदस्त रिवर्स स्विंग!

गेंद चमकाने का प्रयास करते इंग्लैंड के जो रूट(फोटो: Dawn)

आपको जहीर खान याद हैं ना? वो अक्सर गेंद पुरानी होने पर हाथ में उसे छिपाकर गेंद फेंकते थे. दरअसल वो बल्लेबाज को गेंद की शाइन नहीं दिखाना चाहते थे ताकि बैट्समेन को पता ही न लगे कि किस तरफ गेंद घुसेगी.

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Published: 18 Jun 2018,06:23 PM IST

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