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जानिए क्या है SC-ST एक्ट, किस बदलाव को लेकर मचा है संग्राम

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्यों हो रहा है विरोध? सभी बातें समझिए यहां  

प्रसन्न प्रांजल
कुंजी
Updated:
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करते लोग
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करते लोग
(फोटोः क्विंट हिंदी)

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एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देशभर में काफी विरोध-प्रदर्शन हुए. दलित समुदाय भारत बंद और कई संगठनों के लगातार विरोध को देखते हुए अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने का फैसला किया है. एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के लिए इस मॉनसून सेशन में बिल लाया जा रहा है.

संशोधन बिल पास हो जाने के बाद एक्ट में वही स्थिति फिर से बहाल हो जाएगी जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले थी. आखिर क्या है एससी-एसटी एक्ट?, क्यों बनाया गया था इसे और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्यों हो रहा है इतना विरोध? सभी बातें समझिए यहां

क्या है SC-ST Act?

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था. जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया.

इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए. इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके.

क्यों बनाया गया था ये SC-ST एक्ट?

1955 के 'प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट' के बावजूद सालों तक न तो छुआछूत का अंत हुआ और न ही दलितों पर अत्याचार रुका. यह एक तरह से एससी और एसटी के साथ भारतीय राष्ट्र द्वारा किए गए समानता और स्वतंत्रता के वादे का उल्लंघन हुआ. देश की चौथाई आबादी इन समुदायों से बनती है और आजादी के तीन दशक बाद भी उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति तमाम मानकों पर बेहद खराब थी.

ऐसे में इस खामी को दूर करने और इन समुदायों को अन्य समुदायों के अत्याचारों से बचाने के मकसद से इस एक्ट को लाया गया. इस समुदाय के लोगों को अत्याचार और भेदभाव से बचाने के लिए इस एक्ट में कई तरह के प्रावधान किए गए.

क्या है इस एक्ट के प्रावधान?

एससी-एसटी एक्ट 1989 में ये व्यवस्था की गई कि अत्याचार से पीड़ित लोगों को पर्याप्त सुविधाएं और कानूनी मदद दी जाए, जिससे उन्हें न्याय मिले. इसके साथ ही अत्याचार के पीड़ितों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था की जाए.

इस एक्ट के तहत मामलों में जांच और सुनवाई के दौरान पीड़ितों और गवाहों की यात्रा और जरूरतों का खर्च सरकार की तरफ से उठाया जाए. प्रोसिक्यूशन की प्रक्रिया शुरू करने और उसकी निगरानी करने के लिए अधिकारी नियुक्त किए जाए. और इन उपायों के अमल के लिए राज्य सरकार जैसा उचित समझेगी, उस स्तर पर कमेटियां बनाई जाएंगी. एक्ट के प्रावधानों की बीच-बीच में समीक्षा की जाए, ताकि उनका सही तरीके से इस्तेमाल हो सके. उन क्षेत्रों और पता लगाना जहां एससी और एसटी पर अत्याचार हो सकते हैं और उसे रोकने के उपाय करने के प्रावधान किए गए.

क्यों हो रहा है विरोध?

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. इसके अलावा जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी जांच के बाद एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी. बेगुनाह लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा. कोर्ट के इस आदेश और नई गाइडलाइंस के बाद से इस समुदाय के लोगों का कहना है कि ऐसा होने के बाद उन पर अत्याचार बढ़ जाएगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को एक अहम फैसला सुनाया. इसमें कोर्ट ने माना कि इस एक्ट का गलत इस्तेमाल हो रहा है. इसके तहत शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम, 1989 के तहत स्वत: गिरफ्तारी और आपराधिक मामला दर्ज किये जाने पर रोक लगा दी थी. इसके अलावा कोर्ट ने इस एक्ट को लेकर नई गाइडलाइंस भी जारी की है.

अब तक थे ये नियम?

इस एक्ट के तहत अभी तक जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने पर तुरंत मामला दर्ज होता था. इनके खिलाफ मामलों की जांच का अधिकार इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी के पास भी था. केस दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का भी प्रावधान था. ऐसे मामलों की सुनवाई केवल स्पेशल कोर्ट में ही होती थी. साथ ही अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती थी. सिर्फ हाईकोर्ट से ही जमानत मिल सकती थी.

ये है नई गाइडलाइंस?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले और नई गाइडलाइंस के बाद से अब एससी-एसटी के खिलाफ जातिसूचक टिप्पणी या कोई और शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा. ना ही तुरंत गिरफ्तारी होगी. डीएसपी लेवल के अधिकारी पहले मामले की जांच करंगे, इसमें ये देखा जाएगा कि कोई मामला बनता है या फिर झूठा आरोप है. मामला सही पाए जाने पर ही मुकदमा दर्ज होगा और आरोपी की गिरफ्तारी होगी. जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करने वाले आरोपी की हिरासत अवधि बढ़ाने से पहले मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी के कारणों की समीक्षा करनी होगी. सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. सरकारी कर्मचारी या अधिकारी ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत के लिए याचिका भी दायर कर सकते हैं.

क्या है सरकार का रुख?

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन (पुनर्विचार याचिका) दायर किया था. सरकार एससी-एसटी के कथित उत्पीड़न को लेकर तुरंत होने वाली गिरफ्तारी और मामले दर्ज किए जाने पर रोक लगाने वाले आदेश को चुनौती भी दी. लेकिन अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए एससी-एसटी एक्ट पर संशोधन बिल लाने का फैसला किया है. कैबिनेट ने इस एक्ट में संशोधन को मंजूरी दे दी है और मॉनसून सत्र में ही ये बिल संसद में पेश किया जाएगा. संशोधन बिल पास हो जाने के बाद एक्ट में वही स्थिति फिर से बहाल हो जाएगी जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले थी.

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Published: 02 Apr 2018,11:15 AM IST

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