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इस सप्ताह चीन के गुआंगझाऊ सिटी में अमेरिकी सरकार के एक कर्मचारी को अचानक दिमाग में सनसनी महसूस हुई. उस परेशान करने वाली अजीब आवाजें आ रही थीं. दबाव महसूस हो रहा था और सुनने में दिक्कतें आ रही थीं. अमेरिका लौटने पर पता चला कि उसके दिमाग में हल्की चोट आई है. अपने कर्मचारी के इस हालात से अमेरिका चौकन्ना हो गया और उसने अपने नागरिकों को सोनिक अटैक के बारे में चेतावनी जारी कर दी. इससे पहले क्यूबा में कुछ अमेरिकी राजनयिकों को ऐसा महसूस हुआ था. कयास लगाए गए थे वहां भी अमेरिकी कर्मचारियों पर सोनिक अटैक हुआ है. आइए जानते हैं सोनिक अटैक आखिर है क्या और क्यों अमेरिका इससे इतना डर गया है.
दरअसल दो साल पहले क्यूबा में अचानक 24 अमेरिकी राजनयिकों पर सोनिक अटैक कर दिया गया. उन्हें एक खास दिशा से आने वाली कर्कश और भारी आवाजें सुनाई पड़ रही थीं. भनभन करती ये आवाजें दिमाग में अजीब सनसनी पैदा कर रही थीं. जैसे कहीं लोहा कूटा जा रहा हो. कहीं बहुत सारे जानवर मिल कर चिंचिया रहे हों और मक्खियां भिनभिना रही हों. दरअसल आवाज किया जाने वाला यह हमला बेआवाज होता है. इसे एक लंबी रेंज के एकॉस्टिक डिवाइस (LARD) से अंजाम दिया जाता है. यह एक नया हथियार है, जिसे कई देश एक दूसरे के खिलाफ मनोवैज्ञानिक लड़ाई में आजमा रहे हैं.
सोनिक अटैक के शिकार लोगों के कानों में तेज दर्ज होता है. एक कान में घंटियां बज सकती हैं. सिर चकराने लगता है. मानसिक भटकाव, ध्यान भंग और हल्के दिमागी चोट या इंज्यूरी की समस्या पैदा हो सकती है. क्यूबा में जिन अमेरिकी राजनयिकों को सोनिक अटैक का शिकार बताया गया था उन्होंने याददाश्त जाने, एकाग्रता में कमी, संतुलन बनाने और देखने में दिक्कतें की शिकायत की थी. उन्हें सुनने और सोने में भी दिक्कतें आ रही थीं. सिर में दर्द की शिकायत थी. हमले की जद में आने के बाद उन्हें लगभग तीन महीने तक इस तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ीं.
इन आवाजों के हमले से दिमागी चोट लगने की पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन लक्षण लगभग ऐसे ही होते हैं. दरअसल इस हमले से अमेरिकी अधिकारी इसलिए घबराए हुए हैं इसके शिकार लोगों में दिमागी चोट जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. हालांकि चीन और क्यूबा दोनों जगह कथित सोनिक अटैक के शिकार लोगों के दिमागी चोट (traumatic brain injury) की पुष्टि नहीं हुई है.
सोनिक अटैक आवाज के जरिये हमला होता है लेकिन यह आवाज सुनाई नहीं पड़ती. 20हर्ट्ज से कम आवाज धीमी होती है. इसे इन्फ्रासाउंड कहते हैं. लेकिन बेहद संघनित और तेजी के साथ हमला किया जाए तो लोगों की सुनने की ताकत खत्म हो सकती है. उन्हें चक्कर आ सकता है. उल्टी हो सकती है और लगातार दस्त हो सकते हैं. लेकिन इन्फ्रासाउंड के जरिये हमले को छिपाया नहीं जा सकता.
दूसरी ओर, अल्ट्रासाउंड आवाज की फ्रिक्वेंसी 20 हजार हर्ट्ज से ऊपर होती है और इससे हमला आसान हो सकता है. हालांकि इससे हमले के लिए किसी ऐसे उपकरण की जरूरत होगी जो ऐसी बैटरी में फिट हो सके जिससे इसे ताकत मिल सके. लेकिन इससे उन लोगों को भी नुकसान पहुंच सकता है जो टारगेट के आसपास हों. खुद हमलावर को नुकसान पहुंच सकता है.
साउंड कैनन का इस्तेमाल दुनिया भर की पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए करती है. सोमालियाई समुद्री डाकुओं को भगाने के लिए जहाजों पर इसे फिट किया जाता है. कुछ साउंड कैनन एक मीटर के दायरे में 120 डेसिबल साउंड पैदा कर सकते हैं. 15 मिनट के दायरे के लोगों को यह बहरा कर सकता है. अमेरिका में सोनिक कैनन के तौर पर पुलिस के पास लंबी रेंज के डिवाइस होते हैं.
आवाज का इस्तेमाल साइकोलिजकल ऑपरेशन के लिए भी होता है. अमेरिका सेना ने इराक युद्ध के कैदियों के सामने हैवी मेटल और वेस्टर्न चिल्ड्रेन्स म्यूजिक बजाए थे ताकि वे आराम न कर सकें और पूछताछ के दौरान टूट जाएं. ब्रिटेन में कुछ दुकानदारों ने 15 से 18 हजार हर्ट्ज के इक्विपमेंट अपनी दुकानों में लगाए थे. यह आवाज 25 साल की उम्र वालों को सुनाई नहीं देती है. दुकानों के आगे मजमा लगाने वाले किशोरों को भगाने के लिए ये उपकरण लगाए गए थे.
दरअसल चीन अमेरिका का नया प्रतिद्वंद्वी बन कर उभरा है. दुनिया भर में दोनों देश एक दूसरे का वर्चस्व कम करने की जुगत में लगे हैं. चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर के साथ ही कई मोर्चों पर लड़ाई चल रही है. और अमेरिका को डर है चीन उसके खिलाफ कोई भी हथियार आजमा सकता है. चीन का आक्रामक रवैया उसे डरा रहा है. यही वजह है कि उसने चीन में कथित सोनिक अटैक को इतनी गंभीरता से लिया है. बहरहाल, दुनिया में बड़ी ताकतों के बीच अंदर ही अंदर चल रही लड़ाई में सोनिक अटैक नया खतरनाक हथियार बन कर सामने आया है.
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