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सरोगेसी के बारे में सुना है, लेकिन बहुत से लोग अभी भी इससे अनजान हैं. लोकसभा ने बुधवार को सरोगेसी बिल पास कर दिया. बिल सरोगेसी के नियमों को सुनिश्चित करने के साथ ही कॉमर्शियल सरोगेसी को बैन भी करेगा. हालांकि, कुछ महिला सांसदों ने मांग की है कि सिंगल पैरेंट सरोगेसी के जरिए माता या पिता बन सकें, इसके लिए बिल में प्रावधान होने चाहिए.
तो आइए आपको सरोगेसी और सरोगेसी बिल के बारे में विस्तार से समझाते हैं.
मेडिकल साइंस में सरोगेसी वो विकल्प है, जिसकी मदद से वो महिलाएं भी मां बन सकती हैं, जो किसी भी वजह से गर्भ धारण करने में सक्षम न हों. आसान शब्दों में कहा जाए तो सरोगेसी का मतलब है 'किराये की कोख', यानी किसी दूसरी स्त्री की कोख में अपना बच्चा पालना. जो महिला अपनी कोख में किसी दूसरे कपल का बच्चा पालती है, उसे 'सरोगेट मदर' कहते हैं. कॉमर्शियल सरोगेसी के जरिये अपनी कोख से दूसरों का बच्चा जन्म देने के लिए उस सरोगेट मदर को पैसे मिलते हैं.
सरोगेसी दो तरह की होती है. एक ट्रेडिशनल सरोगेसी और दूसरी जेस्टेशनल सरोगेसी. सरोगेट मदर की कोख में भ्रूण को विकसित करने के लिए इन दोनों तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. जानिए, इन दोनों तकनीकों में क्या अंतर होता है.
ट्रेडिशनल सरोगेसी – इस तकनीक के तहत अपना बच्चा चाहने वाले कपल में से पिता के स्पर्म्स को सरोगेट मदर के एग्स के साथ निषेचित यानी Fertilise किया जाता है. ट्रेडिशनल सरोगेसी के जरिए पैदा होने वाले बच्चे में पिता के साथ सरोगेट मदर का जेनेटिक प्रभाव आता है.
जेस्टेशनल सरोगेसी – इस तकनीक में बच्चा चाहने वाले माता-पिता दोनों के अंडाणु और शुक्राणु मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है और उस भ्रूण को सरोगेट मदर की बच्चेदानी में प्रत्यारोपित किया जाता है. इस तकनीक से पैदा होने वाले बच्चे में जेनेटिक प्रभाव माता और पिता दोनों का आता है.
साल 2012 में की गई एक अंतरराष्ट्रीय स्टडी के मुताबिक भारत में सरोगेसी का मार्केट 3 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का है. भारत में 2000 से ज्यादा IVF क्लीनिक हैं. इनमें से बहुत से क्लीनिक सरोगेसी की सेवाएं मुहैया कराते हैं. इस मामले में गुजरात सबसे आगे है. इसके बाद महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्य भी आते है.
भारत में सरोगेसी के जरिये किराए की कोख लेने का खर्चा पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है. साथ ही भारत के ग्रामीण इलाकों में बड़ी तादाद में ऐसी गरीब महिलाएं मौजूद हैं, जो पैसों के एवज में बड़ी ही आसानी से सरोगेट मदर बनने को तैयार हो जाती हैं. इसीलिए विदेशी भी किराए की कोख के लिए भारत की ओर रुख ज्यादा करते हैं.
एक तरफ सरोगेट मदर बनने वाली महिलाओं की प्रेग्नेंट होने से लेकर डिलीवरी तक अच्छी तरह से देखभाल की जाती है, वहीं दूसरी ओर उन्हें इस काम के लिए अच्छी खासी रकम भी दी जाती है.
सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल 2016 के तहत देश में कॉमर्शियल मकसद से जुड़ी सरोगेसी और सरोगेसी तकनीक के दुरुपयोग पर रोक लगाएगा. बिल सरोगेसी के नियमों को सुनिश्चित करने के साथ ही कॉमर्शियल सरोगेसी को बैन भी करेगा. साथ ही यह नि:संतान भारतीय जोड़ों की जरूरतों के लिए सरोगेसी की इजाजत देगा. हालांकि इसमें अपवाद के तौर पर ऐसे कपल को भी शामिल किया गया है, जिनके बच्चे मानसिक या शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं या किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं.
इस बिल में ये भी ये भी कहा गया है कि उन्हीं को सरोगेसी की इजाजत मिलेगी जो बच्चे पैदा नहीं कर सकते और शादी को कम से कम पांच साल बीत गए हों. सरोगेसी करने वाली महिला उस दंपती की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिए और उसकी उम्र 25-35 साल के बीच होनी चाहिए. इसके अलावा उस महिला का कम से कम एक अपना बच्चा होना चाहिए. बिल में प्रावधान है कि एक महिला अपनी जिंदगी में केवल एक बार किसी के लिए सरोगेसी कर सकेगी.
बिल के मुताबिक सिंगल पुरुष और औरतें, लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़ों और होमोसेक्शुअल कपल्स को सरोगेसी की इजाजत नहीं होगी. सिर्फ मदद के मकसद से करीबी रिश्तेदारों द्वारा सरोगेसी अपनाए जाने को ही कानूनी करार देने का प्रावधान इस बिल में है.
पिछले कुछ साल से भारत को ‘सरोगेसी हब’ कहा जाने लगा था. सरोगेसी की वजह से गरीब ग्रामीण और जनजातीय महिलाओं पर शोषण हो रहा था. इस विधेयक को संसद और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद किराये की कोख का अवैध कारोबार करने के मामलों में रोक लगेगी. साथ ही सरोगेसी का अवैध कारोबार करने वाले दोषियों और इसके लिए जिम्मेदार क्लीनिक्स, अस्पतालों, डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों को सजा देने का रास्ता साफ हो जाएगा. विधेयक में राष्ट्रीय और राज्य सरोगेसी बोर्ड गठित करने की बात कही गई है. इसके अलावा सरोगेसी के नियमन के लिए अधिकारियों के नियुक्ति की जाएगी.
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