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पिछले कुछ दिनों से UAPA चर्चा में है. कश्मीरी पत्रकार मसरत जहरा पर UAPA के तहत मामले दर्ज किए गए हैं. इस कानून पर हमेशा से विवाद रहा है. एक्टिविस्ट इसे सरकार का एक ‘क्रूर हथियार’ बताते हैं. हम आपको समझा रहे हैं कि ये कानून क्या है, इस पर विवाद क्यों है और क्यों इसे ‘लोकतंत्र-विरोधी’ कहा जाता है.
Unlawful activities (prevention) act (UAPA) कानून 1967 में लाया गया था. 2019 में इसमें संशोधन किया गया. जिसके बाद संस्थाओं ही नहीं व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा. इतना ही नहीं किसी पर शक होने से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा. फिलहाल सिर्फ संगठनों को ही आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता था. खास बात ये है कि इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है. आतंकी का टैग हटवाने के लिए भी कोर्ट के बजाय सरकार की बनाई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा. बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है.
इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था. पिछले कुछ सालों में आतंकी गतिविधियों से संबंधी TADA और POTA जैसे कानून खत्म कर दिए गए, लेकिन UAPA मौजूद रहा.
UAPA कानून के प्रावधानों का दायरा बहुत बड़ा है. इसी वजह से इसका इस्तेमाल अपराधियों के साथ-साथ लेखकों, आतंक संबंधी मामलों के वकील और एक्टिविस्ट्स पर भी हो सकता है.
यही बात गैरकानूनी संगठनों, आतंकवादी गैंग और संगठनों की सदस्यता को लेकर है. आतंकी संगठन वो होते हैं, जिन्हें सरकार घोषित करती है. इसका सदस्य पाए जाने पर आजीवन कारावास मिल सकता है. लेकिन कानून में 'सदस्यता' की कोई परिभाषा नहीं है. इसी बिनाह पर कई एक्टिविस्टों पर इस कानून के तहत केस दर्ज हुआ है.
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Published: 22 Apr 2020,06:25 PM IST