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बोडो समझौते का जश्न मनाने PM पहुंचे असम, जानिए कितना अहम ये फैसला?

बोडो समझौता हो गया लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या अलग बोडा राज्य की मांग खत्म हो गई है

दीपक के मंडल
कुंजी
Updated:
बोडो समझौते के दौरान अलग-अलग गुट के प्रतिनिधियों के साथ गृह मंत्री अमित शाह 
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बोडो समझौते के दौरान अलग-अलग गुट के प्रतिनिधियों के साथ गृह मंत्री अमित शाह 
(फाइल फोटो : PTI)

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार ( 7 फरवरी, 2020) को असम में कोकराझार के दौरे पर हैं. यहां वह बोडो समझौते पर हस्ताक्षर होने का जश्न मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं. 27 जनवरी, 2020 को भारत सरकार, असम सरकार और प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड यानी NDFB के बीच एक शांति समझौता हुआ. इससे असम और पूर्वोत्तर में बोडो उग्रवाद की समस्या के खत्म होने की उम्मीद बंध गई है.

इसे नरेंद्र मोदी सरकार की एक बड़ी सफलता माना जा रहा है. आइए जानते हैं कि क्या है बोडो समझौता. क्या इससे असम के बोडो बहुल इलाके में स्थायी शांति कायम हो पाएगी? और क्या इससे बोडो लोगों के अलग राज्य की मांग खत्म हो गई है?

क्या है बोडो मुद्दा ?

असम के नोटिफाइड शेड्यूल जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है. बोडो-कचारी के व्यापक समुदाय के तहत आने वाले बोडो असम की आबादी के पांच-छह फीसदी हैं.

दरअसल अन्य जातीय समुदायों की तरह ही बोडो अपनी उप जातीय पहचान और संस्कृति की पहचान की मांग करते रहे हैं. अलग बोडो राज्य के लिए पहली संगठित मांग 1967-68 में उठी थी. 1985 में जब असम मूवमेंट की वजह से असम समझौता हुआ तो बोडो लोगों को लगा कि उनकी अस्मिता, संस्कृति और पहचान को खतरा है. क्योंकि असम समझौता असमिया पहचान की बात कर रहा था. इसके साथ ही 1987 उपेंद्र नाथ ब्रहमा के नेतृत्व में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन यानी ABSU ने अलग राज्य की मांग तेज कर दी. अलग राज्य की मांग के साथ ही सशस्त्र संघर्ष शुरू हो गया.

अक्टूबर 1986 में रंजन दायमारी के नेतृत्व में बोडो सिक्योरिटी फोर्स का गठन हुआ. बाद में इसका नाम नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंड ऑफ बोडोलैंड यानी NDFB रखा गया, जो दो गुटों में बंट गया. बाद में इसके कई गुट हुए और उन्होंने सशस्त्र संघर्ष जारी रखा. अमित शाह के मुताबिक इस संघर्ष में अब तक 4000 लोगों की मौत हो चुकी है.

बोडो समझौता क्या है?

गृह मंत्री अमित शाह के मुताबिक सरकार का मुख्य रूप से एनडीएफबी के चार गुटों के साथ समझौता हुआ है. ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट प्रमोद बोरो के मुताबिक समझौते का सबसे अहम बिंदु है सशस्त्र संघर्ष का खात्मा. बोरो के मुताबिक सशस्त्र गुटों का एक साथ आना और समझौते पर दस्तख्त करना एक बड़ी बात है.

समझौते में BTAD के लिए क्या प्रावधान हैं?

बोडो आंदोलनकारियों से दो समझौतों के बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल यानी BTC बनी थी. इसके तहत बोडोलैंड टेरिटोरियल ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट BTAD बना था. 27 जनवरी को समझौते के बाद इसका नाम बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन यानी BTR कर दिया गया. BTR में कोकराझार, चिरांग, बाकसा और उदलगुरी जिले शामिल हैं. यह असम के कुल क्षेत्र का 11 फीसदी इलाका है. यहां असम की कुल आबादी की दस फीसदी रहती है. नए समझौते में BTAD के इलाके में बदलाव करने और इसके बाहर आने वाले बोडो लोगों के लिए प्रावधान हैं. असम सरकार के मुताबिक इससे बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन यानी BTR में बोडो लोगों की आबादी बढ़ेगी और गैर बोडो लोगों की आबादी घटेगी. इससे जहां की भी आपसी संघर्ष हो रहे हैं उसमें कमी आएगी.

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क्या अलग बोडो राज्य की मांग अब खत्म हो गई है?

लगभग 50 साल तक असम को 50:50 बांटने का आंदोलन चलाने के बाद ABSU ने समझौता कर लिया. समझौते के बाद असम सरकार ने दावा किया कि इस व्यापक समझौते से बोडो लोगों की अलग राज्य की मांग खत्म हो गई है. लेकिन ABSU ने इससे इनकार किया है. इसके प्रेसिडेंट प्रमोद बोरो ने कहा है कि यह सरकार के रवैये पर निर्भर करेगा कि वह समझौते के वादों को किस हद तक पूरी करती है. बोरो का कहना है कि इस समझौते का मकसद बोडोलैंड इलाके में स्थायी शांति कायम करना है.

अब ABSU का क्या रोल होगा?

बोरो के मुताबिक ABSU का मुख्य एजेंडे एजुकेशन सिस्टम को सुधारने का होगा. छात्र संगठन इस पर पूरा फोकस करेगा. लेकिन इसके साथ ही संगठन आर्थिक मुद्दों खास कर रोजगार के मामलों पर ज्यादा ध्यान देगा. इस समझौते से बोडो लोगों की अलग पहचान, संस्कृति और जमीन और राजनीतिक अधिकार हासिल करने का मुद्दा नहीं भटकेगा. अगर ये मकसद हासिल हो जाएं तो कोई भी शख्स अब आगे आंदोलन करने नहीं उतरेगा. बोडोलैंड ऑटोनॉमस रीजन में अब बोडो और गैर बोडो दोनों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे.

उग्रवादियों का क्या होगा?

समझौते में जिन लोगों ने हस्ताक्षर किए थे उनमें NDFB रंजन दायमारी गुट के रंजन दायमारी भी शामिल हैं. NDFB (प्रोग्रेसिव) और NDFB (सोंगबिजीत) गुट भी इसमें शामिल हैं.रंजन दायमारी और नौ अन्य लोगों को 2008 में असम में एक बम विस्फोट में 90 लोगों की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा दी गई थी. समझौते में कहा गया है जो लोग संगीन अपराध में शामिल नहीं है उनके खिलाफ केस हटा लिया जाएगा. वहीं संगीन अपराधों के मामले में केस दर केस समीक्षा की जाएगी.

जिन उग्रवादियों ने सरेंडर कर दिया है उन्हें अनुदान दिया जाएगा. वे अपना रोजगार कर सकेंगे. इसके लिए फंड और वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी. ट्रेनिंग में सफल होने पर वाजिब सरकारी नौकरी भी मिल सकती है.

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Published: 07 Feb 2020,11:30 AM IST

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