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महाराष्ट्र सरकार की ओर से मांगें मान लेने के बाद नासिक से 180 किलोमीटर पैदल मार्च कर मुंबई पहुंचे किसानों ने अपना आंदोलन खत्म कर दिया है. इन मांगों में सरकार की कर्ज माफी के दायरे के बाहर रह गए किसानों को शामिल करना और बॉलवॉर्म की मार से पीड़ित किसानों को मुआवजा देना शामिल है. सरकार ने वनाधिकार कानून के तहत किसानों कों जमीन का हक भी देगी.
किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक उनकी फसल की ऊंची कीमत भी दिलाई जाएगी. महाराष्ट्र में किसानों का यह पहला आंदोलन नहीं था. पिछले साल भी किसानों ने कर्ज माफी और अपनी फसलों की ज्यादा कीमत के सवाल पर आंदोलन छेड़ा था. इसके बाद सरकार ने कर्ज माफी की योजना घोषित की थी. आइए समझते हैं, महाराष्ट्र में बार-बार क्यों खड़े होते हैं किसान आंदोलन. सरकार से क्या चाहते हैं किसान और क्या हैं उनकी परेशानियों का हल.
महाराष्ट्र के 51.2 फीसदी लोगों की जीविका खेती-बाड़ी और इससे जुड़ी सहायक गतिविधियों पर निर्भर है. कृषि के नजरिये से यह यूपी के बाद देश का सबसे अहम राज्य है. महाराष्ट्र गन्ने और कपास का दूसरा बड़ा उत्पादक राज्य है. दलहन का यह तीसरा बड़ा उत्पादक राज्य है. इसके अलावा राज्य टमाटर, प्याज, ज्वार, बाजरा, अंगूर, काजू, अनार का भी बड़ा उत्पादक है. लेकिन महाराष्ट्र की एक बड़ी कृषि समस्या है पानी की कमी. राज्य के मराठवाड़ा और विदर्भ में पानी की भारी कमी है और इसकी वजह से किसानों की पैदावार बारिश पर निर्भर है. इसके अलावा महाराष्ट्र में सिंचित क्षेत्र भी काफी कम है. इन इलाकों में भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है. इस वजह से भी किसानों की फसल मारी जाती है.
किसानों की खुदकुशी के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे रहा है. एक बेहद चर्चित अध्ययन में 1997-2006 के बीच देश में खुदकुशी करने वाला हर पांचवां किसान महाराष्ट्र का था. 2006 में देश में खुदकुशी करने वाला हर चौथा किसान इस राज्य का था. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक 1995 से 2015 के बीच राज्य में 70,000 किसानों ने आत्महत्या की थी. जबकि पूरे देश में इस दौरान 3 लाख किसानों ने खुदकुशी की थी. राज्य में विदर्भ के किसानों में खुदकुशी की दर सबसे ज्यादा रही है.
कपास जैसी नकदी फसल के लिए लिए गए कर्ज को न चुकाने पर बड़ी तादाद में किसानों ने खुदकुशी है. कपास पर बॉलवॉर्म यानी गुलाबी इल्ली के हमले की वजह से बड़ी तादाद में किसानों की फसल बर्बाद हुई है. इसने किसानों को बेहद बुरी हालत में पहुंचा दिया है.
किसानों की मौजूदा दिक्कत है फसलों की सही कीमत न मिलना. पीएम नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव अभियानों में किसानों की उनकी पैदावार की लागत का डेढ़ गुना कीमत देने का वादा किया था. दिग्गज कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन की अगुआई में बने आयोग की भी यही सिफारिशें थीं. लेकिन ये वादा पूरा नहीं हुआ. इसके बाद नोटबंदी और फिर जीएसटी की वजह से किसानों को कई फसल सीजनों में भारी उठाना पड़ा.
इस बीच, किसानों ने कर्ज माफी की मांग की. किसानों के असंतोष को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल जून में 34,022 करोड़ रुपये की कर्ज माफी का ऐलान किया था. लेकिन कर्ज माफी की यह योजना तकनीकी दिक्कतों में फंस गई. इस वजह से कर्ज माफी के दायरे से काफी किसान बाहर हो गए. 89 लाख किसानों की मदद के लिए कर्ज माफी योजना के दायरे में 56 लाख किसान ही रह गए.
इस साल फरवरी तक 34,022 करोड़ रुपये में से कर्ज माफी के मद में सिर्फ 12,381 करोड़ रुपये ही बांटे जा सके. जबकि इस बीच खेती-किसानी की लागतें बढ़ती गईं और किसानों पर बोझ भारी हो गया. पिछले साल से लेकर अब तक राज्य में रह-रह कर उठ रहे किसान आंदोलन इन्हीं त्रासदियों के सबूत हैं.
सीपीएम के किसान संगठन ऑल इंडिया किसान सभा की अगुवाई में नासिक से मुंबई की 180 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने वाले किसानों की हालत महाराष्ट्र के आम किसानों से भी बुरी है. आखिर ये कौन लोग थे, जिन्होंने खून से लथपथ पैरों से अपनी मांग के लिए इतनी लंबी यात्रा निकाली. इन इलाकों में बड़ी तादाद में उन आदिवासी इलाकों के किसान शामिल थे, जो वनाधिकार कानून के तहत अपनी जमीन पर हक मांग रहे थे. कई बरसों से ये आदिवासी किसान अपनी जमीन पर खेती करते आ रहे हैं लेकिन इन पर इनका कोई हक नहीं है. वन अधिकारी जब-तब इन्हें जमीनों से बेदखल कर देते हैं.
महाराष्ट्र के गढ़िचिरौली जिले में वनाधिकार कानून ठीक ढंग से लागू हुआ है और वहां आदिवासी किसान सामुदायिक खेती करते हैं. लेकिन वहां वन क्षेत्र ज्यादा हैं और सामुदायिक खेती से काम चल जाता हैं. नासिक के किसान जमीन पर व्यक्तिगत मालिकाना हक की मांग कर रहे हैं. हालांकि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों से इन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि ये धान की एक ही फसल पैदा करते हैं. इनके लिए और भी दूसरे कदम उठाने होंगे.
सिर्फ स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक किसानों को फसल की लागत से डेढ़ गुना कीमत मुहैया कराना ही समस्या का हल नहीं है. महाराष्ट्र में सिंचाई का क्षेत्र बढ़ाना बड़ी चुनौती है. राज्य का बड़ा इलाका सूखाग्रस्त है और यहां खेती के लिए पानी की सप्लाई बड़ा मुद्दा है.
नकदी फसलों की वजह से भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है. किसानों को उनकी फसल की बेहतर कीमत दिलाने के लिए कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर भी दुरुस्त करना होगा. इसके अलावा औद्योगिक निवेश बढ़ाना होगा ताकि ग्रामीण इलाकों के लोगों को इंडस्ट्री में काम मिले और खेती पर आबादी का अतिरिक्त बोझ कम हो. इससे छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या भी हल होगी. यह महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश के किसानों की समस्या है. सरकार किसानों को सिर्फ वोट बैंक न समझे और कर्ज माफी जैसे कदमों में उनकी समस्याओं के समाधान न ढूंढ़ें.
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