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बौद्दों और मुस्लिमों के बीच हिंसा की वजह से श्रीलंका एक बार फिर सुर्खियों में है. कैंडी में रोडरेज की एक घटना के बाद भड़की हिंसा में एक सिंहली बौद्ध और एक मुस्लिम युवक की हत्या कर दी गई. बौद्धों ने मुस्लिमों की कई दुकानों, घरों और मस्जिदों में आग लगा दी. हालात इतने खराब हो गए हैं कि श्रीलंका सरकार को पूरे देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी. देश इससे पहले 40 साल तक इमरजेंसी झेलता रहा है. श्रीलंका में बौद्धों और मुस्लिमों की असली वजह क्या है. क्या मुसलमानों के खिलाफ एक सोचा-समझा अभियान चलाया जा रहा है. आइए जानते हैं इन 5 कार्डों के जरिये
श्रीलंका में मुस्लिम पूरी आबादी के 9 फीसदी हैं और ये तमिल बोलते हैं. ज्यादातर कारोबारी लोग हैं और देश के पूर्वी इलाकों में रहते हैं, जो लिट्टे के तमिल ईलम आंदोलन का गढ़ रहा है. 1990 तक मुस्लिम यह मान कर चल रहे थे अलग तमिल देश बनेगा तो उनकी आकांक्षाएं भी पूरी होंगी. हालांकि वह लिट्टे के आंदोलन के साथ नहीं थे. लेकिन श्रीलंका से भारतीय शांति सैनिकों की वापसी के बाद नए सिरे से मजबूत हुई लिट्टे ने उत्तर में अपने गढ़ जाफना और अपने अधिकार वाले दूसरे इलाकों से रातोंरात 10 लाख मुसलमानों को भगा दिया. और इस तरह मुसलमान इस देश के नए आतंरिक शरणार्थी बन गए.
श्रीलंका में सिंहली कट्टरपंथ का उभार एक बार फिर दिख रहा है. सिंहली राष्ट्रवाद को हवा देने वाले महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा कम हो गई थी. लेकिन 2016 के आखिर से इसमें फिर तेजी आ गई.
श्रीलंका में गृह युद्ध की वजह से देश के उत्तरी इलाके से विस्थापित मुस्लिमों ने जब वानी के मन्नार जिले में बने घरों और जमीन के लिए लौटने लगे तो यहां से सटे पुट्टलम और उत्तरी-मध्य प्रांत अनुराधापुर के सिंहलियों को एतराज होने लगा और उन्होंने मुस्लिमों के खिलाफ अभियान शुरू किया. मुस्लिम सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 2013 से 2015 तक मुस्लिमों के खिलाफ 538 घटनाएं हुईं.
म्यांमार में भी बौद्ध कट्टरपंथी रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हैं. वहां से बड़ी तादाद में रोहिंग्या मुस्लिम श्रीलंका आए हैं और यहां सिंहली बौद्ध उनके आने का विरोध कर रहे हैं. श्रीलंका में लिट्टे की हार के बाद सिंहली राष्ट्रवाद से प्रेरित लोगों ने मुस्लिमों और यहां तक कि ईसाइयों के खिलाफ भी नफरत भरा अभियान चलाया है.
सिंहलियों के नए कट्टर संगठन मसलन बोडु बाला सेना (बीबीएस) सिंघला रावाया, सिंहली और महासन बालाया मुस्लिमों के खिलाफ घात अभियान चलाते रहे हैं. महिंदा राजपक्षे के शासन में बीबीएस को खूब संरक्षण मिला. अब ये ग्रुप मुस्लिमों के खिलाफ सोशल मीडिया में भी नफरत फैला रहे हैं.यह संयोग हो सकता है कि 2012 में श्रीलंका में बीबीएस का गठन हुआ और इसी साल म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा शुरू हुई.
म्यांमार में रोंहिग्या मुसलमानों के खिलाफ बौद्ध अतिवाद के उभार के साथ ही श्रीलंका में मुसलमानों के खिलाफ कट्टरता बढ़ी है. दोनों जगह बौद्ध धर्म थेरावड़ा पंथ के बौद्ध ज्यादा हैं. 2014 में राष्ट्रपति चुनाव से पहले मांडले (म्यांमार) से मुस्लिम विरोधी समूह के एक कट्टर नेता अशिन विराथु को भड़काऊ भाषण देने के लिए बुलाया गया था. यह नेता अपने जहरीले भाषणों के लिए जाना जाता है. एक रैली में उसने कहा था वह बौद्धों को बचाने के लिेए बीबीसी से हाथ मिलाने को तैयार है. म्यांमार में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत से श्रीलंका में भी उनके खिलाफ अभियान को खाद-पानी मिल रहा है.
श्रीलंका की राजनीति में मुस्लिमों की स्थिति किंगमेकर की तरह है. उन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिए हमेशा सत्ताधारी पार्टी के साथ संतुलन बनाए रखने की कोशिश है. 2009 में लिट्टे के खात्म के बाद सिंहली-बौद्ध राष्ट्रवाद ने एक नए दुश्मन की जरूरत थी. मुस्लिमों के तौर पर उसे एक नया दुश्मन मिल गया है.
अगर मुसलमानों के खिलाफ वहां ध्रुवीकरण बढ़ा तो इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है. मुस्लिम तमिल हैं और तमिलों का मुद्दा आज भी श्रीलंका में जीवित है. तमिलों को संविधान में पूरी तरह जगह नहीं दी गई है. भारत चाहेगा कि वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण थम जाए और उसका असर उसकी घरेलू राजनीति में न पड़े.
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