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इन दिनों दिल्ली का ये हाल है कि आप यहां ठीक से सांस भी नहीं ले सकते.आसमान से लेकर जमीन तक जहरीली धुंध फैली हुई है. मौसम विभाग का कहना है कि ये स्मॉग है जो प्रदूषण की वजह से है. हालात कुछ ऐसे हैं कि थोड़ी दूर तक देखना भी मुश्किल हो रहा है. ऐसे हालात अमूमन जनवरी में कोहरे के कारण होते हैं. अभी नवम्बर का महीना ही शुरू हुआ है और ऐसे में अभी से ही राजधानी की फिजा सांस लेने लायक नहीं बची है. आलम यह है कि आने वाले दो से तीन दिन में दिल्ली की स्थिति और भी बिगड़ सकती है.
इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी रणनीति जिससे आप इस भीषण प्रदूषण से अपने आप को काफी हद तक बचा सकते हैं. क्योंकि दिल्ली के करीब 1 करोड़ लोग सिर्फ सरकार के भरोसे तो नहीं बैठ सकते, उन्हें अपनी सेहत के लिए खुद कोई कदम उठाना होगा.
डिस्क्लेमर: दिल्ली में साफ हवा पाना इतना आसान नहीं है. इसके लिए काफी रुपये खर्च करने पड़ेंगे. इसलिए हर कोई इन समाधानों को अपनाने में सक्षम नहीं हो सकता.
फिलहाल, सबसे पहली राय आपके लिए यही है कि 5 रुपये वाला डिस्पोजल मास्क मत लीजिए. यह आपको प्रदूषण के कणों से नहीं बचाएगा. आपको ऐसे रेसपीरेटर की जरूरत है जिसमें कार्बन फिल्टर लेयर हो और जो आपके चेहरे पर ठीक से फिट हो जाए. साथ ही उसमें ऐसे छेद होने चाहिए जो आपके सांस लेने पर बंद हो और छोड़ने पर खुल जाएं.
वोगमास्क, 3एम, एन95 और एन99 ये कुछ ऐसे मास्क हैं जिन्हें आप आजमां सकते हैं. इनमे एन95 मास्क 95% तक पार्टिक्यूलेट मैटर (पीएम 2.5) फिल्टर करेगा, जबकि एन99 मास्क 99% तक पार्टिक्यूलेट मैटर फिल्टर करेगा.
इन सभी मास्क की कीमत 70 रुपये से लेकर 400 रुपये तक है. साथ ही ये मास्क अब ऑनलाइन भी उपलब्ध है.
आप जितना ही घर के बाहर रहेंगे उतना ही प्रदूषण आपके शरीर में जाएगा. जितना आप फायदा लेने के लिए व्यायाम करेंगे उससे कहीं ज्यादा तो आपका नुकसान हो जाएगा. इसलिए जबतक हालात सामान्य नहीं हो जाते बाहर निकलकर कसरत करनें का विचार अपने दिमाग से निकाल दीजिए. खासतौर पर बच्चे और बूढ़ें तो बिलकुल ऐसा न करें.
अगर आपके पास बजट है तो घर पर एयर प्यूरीफायर लगवाइए. लेकिन इन बड़े डिवाइस की बिजली का खर्चा भी आपको झेलना होगा. ये प्यूरीफायर वेक्यूम की तरह काम करते हैं. ये हवा से खतरे भरे कणों को खींचकर बाहर निकाल देता है.
फिलिप्स, यूरेका फॉर्बस, केमफिल और ब्लूएयर जैसी कंपनी के एयर प्यूरीफायर बाजार में उपलब्ध हैं. जिनकी कीमत 10,000 हजार रुपये से लेकर 75,000 रुपये तक है. इन डिवाइसों को घर में सभी जगह लगाएं. ऐसा न हो कि बेडरूम में आप साफ हवा लें और लिविंग रूम में जहरीली हवा.
दिल छोटा मत कीजिए, आपको कम खर्चे में भी दिल और फेफड़ों को साफ सुथरा रख सकते हैं. बाजार में इन दिनों 3,500 रुपये का जुगाड़ू प्यूरीफायर भी आ रहा है. जो सस्ता, टिकाऊ और कारगर भी है.
बच्चे बड़ो की तुलना में ज्यादा जल्दी जल्दी सांस लेते हैं और खतरनाक कैमिकल उनके शरीर में ज्यादा जाता है. ये जहर बच्चों के शरीर में ज्यादा दिन तक रहता है. इन्सान के फेफड़े 18 साल तक विकसित होते हैं और ऐसा खतरनाक प्रदूषण इनको काफी नुकसान पहुंचाता है.
लेकिन फिर भी बच्चों को घर से बाहर निकलना जरूरी हो और स्कूल जाना हो तो हिचकिचाइए मत. बच्चों को मास्क पहनाइए भले ही वो इसे पहनने में कितनी ही आनाकानी क्यों न करें.
दिन के मुकाबले रात में प्रदूषण का खतरा ज्यादा होता है. तापमान जितना कम और मौसम जितना ठंडा होगा, हवा में जहर की मात्रा उतनी ही बढ़ेगी. इसलिए रात में बाहर न जाएं.
ये बात तो वैज्ञानिक तौर पर भी साबित हो चुकी है कि कुछ पौधे जहरीली हवा को साफ करने में ज्यादा मददगार होते हैं. जैसे- वीपिंग फिग, पीस लिली, डेविल्स आइवी, असपैरेगस फर्न और फ्लेमिंगो फ्लॉवर. ये सारे ही पौधे इनडोर हैं, आप इन्हें घर में लगा सकते हैं. लेकिन इन पौधों को लगाने का तरीका भी है. इन पौधों को लगाने में आपको 10 मीटर सक्वायर के बीच की दूरी बना कर रखनी है. अगर आप 5-6 बड़े गमलों में इन पौधों को लगा कर आप 50% तक प्रदूषण कम कर सकते हैं.
हैप्पी नर्सरी शॉपिंग!
जाने-माने जॉन हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक स्टडी में यह बात निकलकर आई है कि लगातार तीन महीने ब्रोकली खाने से फेंफड़ों में छिपे फैले जहरीले कण साफ हो जाएंगे. इससे आपको लंबे समय में होने वाले वायु प्रदूषण के खतरों से सुरक्षा भी मिलेगी.
यही नहीं आप खट्टे फल, तुलसी की गोलियां और अदरक वाली चाय भी ले सकते हैं, इससे आपका स्वास्थ्य बना रहेगा और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी.
शहर में रहकर अगर काम नहीं चल रहा है तो आबोहवा बदलने के लिए किसी दूसरे शहर हो आइए, जहां आप बाहर निकलने से न घबराएं और आपके फेफड़ों को किसी प्रकार का खतरा न हो.
लेकिन एक बात यहां यह भी है कि हर किसी के लिए इस धुंए भरी दिल्ली से बाहर जाकर रहना इतना आसान नहीं है. इसलिए दिल्ली हमारे रहने लायक जगह बने इसका आखिरी फैसला तो नीति-निर्माताओं को ही लेना है.
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Published: 05 Nov 2016,08:07 AM IST