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Bos Indicus भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले मवेशियों की प्रजाति है. जो गर्म जलवायु में पाए जाते हैं. इन मवेशियों के दूध को Bos Indicus दूध कहा जाता है.
इसके बाद संजय ने ‘The Way We Were’ नाम का एक फार्म बनाया. जहां वो देसी गायों को पालते हैं. ऑर्गेनिक तरीके से खेती करते हैं.
संजय भल्ला के फार्म हाउस में अभी 188 से ज्यादा गाय हैं. सभी गाय गिर नस्ल की हैं. इन गायों को संजय भल्ला ने राजस्थान से मंगवाया था. गिर, भारत में पाए जाने वाले बॉस इंडिकस (ज़ेबू) मवेशियों की नस्ल जैसे थारपारकर, कंकरेज, लाल सिंधी और साहिवाल में से एक है.
दूध का प्रोटीन कंपोनेंट 80% केसिन से बना होता है. A1 और A2, गाय के दूध में पाए जाने वाले बीटा केसिन प्रोटीन के प्रकार हैं.
UK से आयात की गई जर्सी गाय के दूध में A1 और A2 दोनों तरह के बीटा केसिन प्रोटीन पाए जाते हैं. वहीं यूरोप से आयातित होल्स्टीन गाय के दूध में A1 प्रोटीन होता है. व्यावसायिक तौर पर उत्पादित ज्यादातर दूध और दुग्ध उत्पादों में A1 बीटा केसिन ही होता है.
लेकिन देसी गाय इसलिए खास हैं क्योंकि इनके दूध में A2 बीटा केसिन प्रोटीन पाया जाता है.
दिलचस्प बात ये है कि A2 ही गाय के दूध में पाया जाने वाला मूल बीटा केसिन प्रोटीन है. माना जाता है कि लगभग 8000 साल पहले, एक म्यूटेशन (बदलाव) हुआ, जिसके तहत गायों की विभिन्न प्रजातियों द्वारा उत्पादित दूध में दो प्रकार के बीटा केसिन पाया जाने लगा.
A2 बीटा केसिन प्रोटीन युक्त दूध ही इस नस्ल को, विशेष तौर पर गिर गायों को खास बनाता है.
हम कह सकते हैं कि आजकल A2 ऑर्गेनिक दूध की क्रांति आ रही है. ऑर्गेनिक स्टोर्स, विशेष वेबसाइटों और बड़े स्तर पर लगने वाले मेलों में पैक किए हुए A2 घी, मक्खन, दूध और छाछ की मांग तेजी से बढ़ रही है.
ऐसे फॉर्म की तादाद बढ़ी है, जहां देसी गायों को पाला जाता है. ये स्थानीय फॉर्म छोटे होते हैं और महंगे भी होते हैं. (सोचिए 500 ग्राम घी की कीमत 1800 रुपये से ज्यादा होती है).
70 के दशक में देश में दूध की कमी से निपटने के लिए जर्सी और होल्स्टीन नस्ल की गायों का आयात किया गया. इन गायों की देसी गाय संग क्रॉसब्रीडिंग (संकरण) कराई गई ताकि इस तरह से जन्मी नई नस्ल की गाय में दूध देने की क्षमता ज्यादा हो.
ज्यादातर देसी गाय प्रति लैक्टेशन चक्र में 1,600-2,500 किलोग्राम दूध देती हैं. होल्स्टीन फ्राइज़ियन और जर्सी प्योरब्रेड, और क्रॉसब्रेड से प्रति चक्र 4000 से 5000 किलोग्राम दूध मिलता है. इस तरह दूध उत्पादन बढ़ने से ऑपरेशन फ्लड सफल हुआ. लेकिन इस वजह से देसी गाय की अहमियत कम होने लगी.
साल 1993 में, न्यूजीलैंड के वैज्ञानिक ने एक दिलचस्प खोज की. उन्होंने पाया कि दूध, विशेष रूप से A1 दूध टाइप 1 डायबिटीज, दिल की बीमारी और कुछ न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के बढ़ते मामलों से जुड़ा हुआ था. उन्होंने एक और दिलचस्प खोज की जिसके मुताबिक A2 दूध को पचाना आसान होता है और ये हेल्दी भी होता है.
इस अध्ययन से हमारी पारंपरिक भारतीय मान्यताओं को समर्थन मिला कि देसी गाय का दूध, जिसमें लगभग 100 प्रतिशत A2 बीटा केसिन होता है, वो ज्यादा पौष्टिक है.
कई अध्ययनों का दावा है कि देसी गाय ज्यादा स्वस्थ और मजबूत होती हैं. भारतीय जलवायु और पर्यावरण के लिए हमारी देसी गाय ही अधिक उपयुक्त हैं. इनमें गर्मी सहने और बीमारियों से लड़ने की ज्यादा ताकत होती है और इन्हें बचाने की जरूरत है.
‘Way We Were' डेयरी फार्म शुरू करने वाले संजय भल्ला का कहना है कि वो गायों की देसी नस्ल को संरक्षित और सुरक्षित करना चाहते हैं. वो कहते हैं कि दूध की पौष्टिकता सिर्फ A2 प्रोटीन पर निर्भर नहीं करती, बल्कि ये भी जरूरी है कि मवेशियों को कैसे पाला गया है.
संजय भल्ला बताते हैं कि गायों को खेत में जैविक तरीकों से तैयार चारा खिलाने का फायदा होता है. इससे गाय एक दिन में 6 से 7 लीटर ज्यादा दूध देती है.
जब उनसे पूछा गया कि A2 घी इतने महंगे क्यों होते हैं, तो संजय भल्ला ने बताया कि 30 लीटर दूध से 1 किलो वसा (फैट) निकलता है. इसमें से कुछ भी बर्बाद नहीं होता. उसी वसा से घी और छाछ मिलता है.
हमने दिल्ली और मुंबई के न्यूट्रिशनिस्ट से पूछा कि क्या वो लोगों को A2 दूध के इस्तेमाल की सलाह देंगे.
न्यूट्रिशनिस्ट का कहना है कि बाजार में हमें जो दूध मिलता है उनमें कहीं न कहीं से मिलावट जरूर होती है. दूध उत्पादन की मात्रा बढ़ाने के लिए गायों को हार्मोन और एंटीबायोटिक्स के इंजेक्शन दिये जाते हैं. दूध, दुहे जाने से लेकर मार्केट तक पहुंचने के दौरान कई प्रक्रियाओं से हो कर गुजरता है, जिससे उसमें पौष्टिक तत्व सीमित हो जाते हैं.
इसलिये अगर आप दूध पीते हैं, तो जरूरी है कि वो दूध प्राकृतिक या ऑर्गेनिक हो.
दिल्ली की न्यूट्रिशनिस्ट रुपाली दत्ता भी A2 दूध के फायदे बताती हैं.
न्यूट्रिहेल्थ सिस्टम की शिखा शर्मा भी इससे सहमत हैं.
किसी भी डेयरी से दूध मंगाने या इसकी योजना बनाने से पहले, ये जानना जरूरी है कि वहां दूध उत्पादन से जुड़े कौन से मानक अपनाए जाते हैं.
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Published: 09 Jul 2018,12:49 PM IST