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MTP एक्टः आखिर क्यों 46 साल पुराने गर्भपात कानून से लड़ना जरूरी है

20 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने में क्या समस्या है ?

निकिता मिश्रा
फिट
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MTP एक्टः आखिर क्यों 46 साल पुराने गर्भपात कानून से लड़ना है जरूरी
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MTP एक्टः आखिर क्यों 46 साल पुराने गर्भपात कानून से लड़ना है जरूरी
(फोटो: iStock)

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10 साल की बलात्कार पीड़िता, जिसे 30 सप्ताह की गर्भवती माना जा रहा है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है कि क्या डॉक्टर उसका गर्भपात करा सकते हैं.

26 जुलाई को अन्य डॉक्टरों के समूह से उसकी जांच कराई गई. हर एक दिन गुजरने के साथ-साथ वह समय गंवा देती है. ऐसे भी इस मामले में पहले ही एफआईआर दर्ज कराए दो सप्ताह हो चुका है.

इस दुखद मामले ने 46 सालों से चल रही मातृत्व गर्भपात अधिनियम 1971 की खामियों के पर रोशनी डाली है. इस अधिनियम के अनुसार सिर्फ 20 हफ्ते तक के गर्भ को ही समाप्त किया जा सकता है और यह कड़ा प्रावधना अतार्किक, मनमाना और काफी पुराना है. कई शीर्ष स्त्रीरोग विशेषज्ञ मानते हैं कि इस कानून को आंशिक तौर पर नहीं बल्कि पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए.

20 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने में क्या समस्या है ?

वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन के मुताबिक भारत में हर साल 26 मिलियन बच्चे पैदा होता है (फोटो: द क्विंट)

साल 1971 में जब गर्भपात अधिनियम बनाया गया, तो उस समय विकसित हो रहे भ्रूण की उच्च स्तरीय तस्वीर देने वाला कोई अल्ट्रासाउंड या भ्रूण की निगरानी निरीक्षण करने वाला यंत्र नहीं था. लेकिन, आज प्रसवपूर्व जांच से उसकी ऊंचाई, वजन, दिमाग का आकार, डाऊन सिंड्रोम, हृदय संबंधी जन्मजात परेशानी, किडनी संबंधी समस्याएं आदि की जानकारी मिल जाती है.

समस्या यह है कि इसमें से अधिकतर असामान्यता की जानकारी 20 से 24 सप्ताह के बीच ही अल्ट्रासाउंड के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है जबकि यह समय वर्तमान में गर्भपात के लिए दी गई कानूनी समय सीमा से अधिक है.

किडनी और ब्रेन संबंधी कई दोषों का पता 20 हफ्तों के बहुत बाद होता है. कई बार तो रिपोर्ट आने में ही 2 से तीन हफ्ता लग जाता है और इसके बाद गर्भपात के लिए कोई रास्ता नहीं बचता है.
डॉ. दुरु शाह, स्त्री रोग विशेषज्ञ, निदेशक, गायनी वर्ल्ड

क्या 24 हफ्तों के बाद गर्भपात कराने से मां का स्वास्थ्य प्रभावित होता है?

पहले महीने में भी गर्भपात कराना जोखिम का काम है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भपात में किस मेडिकल प्रक्रिया का पालन किया जाता है. अगर आप आईसीयू सुविधा के साथ एक पूरी तरह से प्रशिक्षित डॉक्टर की देखरेख में गर्भपात कराते हैं, तो यह जोखिम बहुत ही कम हो जाता है.
डॉ. फिरूजा पारेख, प्रमुख, असिस्टेड रिप्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स विभाग, जसलोक अस्पताल

डॉ. पारेख कहती हैं कि निर्धारित समय सीमा के बाद गर्भपात विभिन्न मामलों में अलग-अलग होता है, जिसका फैसला डॉक्टर के पैनल द्वारा किया जाता है क्योंकि एक गर्भवती महिला को, जो अंततः करना चाहिए होता है वह है अपने अधिकार के लिए कोर्ट के चक्कर लगाना और पूरे देश की नजर उस पर होती है.

स्रोत: वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन (फोटो: द क्विंट)
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9 साल पहले मुंबई की एक दंपति हरेश और निकेता मेहता ने कोर्ट से 26 सप्ताह के गर्भ को खत्म करने का आदेश मांगा था क्योंकि भ्रूण को जन्मजात हृदय संबंधी परेशानी थी और उनके मामले को देशभर की मीडिया ने जगह दी थी.

पहली बार 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को खत्म करने की नैतिकता के ऊपर परिचर्चा हुई और नैतिकता के आधार पर जानबूझकर एक असामान्य बच्चे को दुनिया में लाया जा रहा था, जिसके लिए 40 साल से चल रहे कानून को चुनौती दी गई थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने दंपति की याचिका को मंजूरी ही नहीं दी, क्योंकि मेडिकल विशेषज्ञों ने स्पष्ट तौर पर नहीं कहा कि बच्चा गंभीर विकलांगता का शिकार हो सकता है. हालांकि, प्रेग्नेंसी मिसकैरेज के माध्यम से खत्म हो गया, लेकिन इस मामले ने पुरातन कानून में संशोधन की आवश्यकता को उजागर कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2016 में एक ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसमें एक बलात्कार पीड़िता के 24 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति दी गई क्योंकि भ्रूण एंसीफैली रोग से पीड़ित था, जो जन्मजात दोष है, जिसमें बच्चा ब्रेन और स्कल के एक बड़े भाग के बिना ही विकसित होता है.

लेकिन, इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने एक बलात्कार पीड़ित एचआईवी से ग्रसित गर्भवती महिला के 26 सप्ताह के भ्रूण को खत्म करने की इजाजत नहीं दी, क्योंकि इससे उस महिला के जीवन को खतरा हो सकता था.

कहां है गर्भपात कानून में प्रस्तावित संशोधन?

2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी बिल का प्रारूप तैयार किया था (फोटो: iStock)

मशहूर निकेता मेहता मामले के 6 साल बाद 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 2014 का प्रारूप तैयार किया, जिसमें विशेष परिस्थितियों में 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को समाप्त करने का प्रावधान है.

इस प्रारूप कानून के अनुसार हेल्थकेयर प्रदाता द्वारा अगर इस बात का विश्वास दिला दिया जाए कि इससे मां या बच्चे के जीवन को खतरा है तो 20 से 24 सप्ताह के भ्रूण को खत्म किया जा सकता है या फिर यदि यह भ्रूण बलात्कार के कारण हुआ है, तो भी इसे समाप्त किया जा सकता है.

इस कानून पर विचार करने में 46 साल से अधिक का समय लग गया लेकिन अन्य स्वास्थ्य बिलों की तरह यह भी पिछले तीन सालों से ज्यादा समय से संसद में लटका हुआ है.

46 साल पुराने कानून के बारे में स्त्री रोग विशेषज्ञ क्या अनुभव करते हैं?

समय के साथ कानून में सुधार की आवश्यकता होती है. (फोटो: द क्विंट)
अजन्मे शिशु के जेनेटिक दोष के मामले में निर्णय लेने के लिए तीन से चार सप्ताह के अतिरिक्त समय की आवश्यकता होती है. (फोटो: द क्विंट)

जेनेटिक असामान्यता की पहचान के लिए 20 सप्ताह बहुत कम समय होता है. भारत में अवैध गर्भपात के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह कानून महिलाओं को अनचाहे गर्भ को जोखिम वाले तरीके से गर्भपात कराने से नहीं रोक पाता है.

ऐसे में सरकार महिलाओं को अपनी जान जोखिम में डालने से रोकने वाले इस कानून पर अब ज्यादा दिन टिकी नहीं रह सकेगी.

देर से गर्भपात कराने की आलोचना करने वाले गर्भावस्था की मेडिकल समाप्ति की समीक्षा की बात कह सकते हैं क्योंकि यह कानून सरकार का अनावश्यक हस्तक्षेप है. मैं समझती हूं कि वे लोग विभिन्न तरीके से पिछले 46 सालों से चली आ रही इस कानून की समीक्षा में अपनी भूमिका निभा सकते हैं.

ये भी पढ़ें: एसिड पीड़ित को तुरंत फर्स्ट एड कैसे दें?जानिए तरीके

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Published: 27 Jul 2017,09:17 PM IST

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