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घबराहट ऐसी आम समस्या है, जिसका सामना बच्चों के साथ बड़े भी करते हैं. करीब 20 फीसदी बच्चों में घबराहट या इसके दूसरे लक्षण दिखाई देते हैं. इनमें मामूली डर जैसे जोकर या कुत्तों से डरना या अधिक सामान्य किस्म की घबराहट जैसे हमेशा ये सोचना कि कुछ गलत होने वाला है, शामिल है.
घबराहट की वजह बाहरी या आंतरिक भी हो सकती है. स्कूल में अच्छा करने की चाहत महसूस होना, अपने साथियों के साथ मेल खाना, माता-पिता की लड़ाई या तलाक की बात चलना, शहर या स्कूल में बदलाव, पूरी तरह से व्यस्त दिनचर्या, डरावनी फिल्म या कोई किताब. ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनसे बच्चों में घबराहट के साथ ही तनाव बढ़ सकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार अब माता-पिता भी पहले से कहीं अधिक तनावग्रस्त रहते हैं. हो सकता है यह दुनिया के आर्थिक या राजनीतिक वातावरण के कारण हो. लेकिन बच्चों पर भी निश्चित रूप से इसका प्रभाव पड़ता है.
हालांकि ये चिंता जायज है, एक बच्चा यह नहीं समझ सकता है कि वह कहां या किस रास्ते से गुजर रहा है. और वह अपने माता-पिता के अधिक रक्षात्मक व्यवहार को अपनी कमजोरी और अक्षमता के रूप में देख सकता है.
अधिकतर मामलों में बच्चों में डर या घबराहट उम्र के साथ खत्म हो जाती है. एक-दो साल का बच्चा जो किसी अन्य बच्चे के साथ मेलजोल में अलगाव की घबराहट और गंभीर असहजता दर्शाता है. वह हमेशा इस तरह से नहीं रहेगा. हो सकता है वह बड़ी या बड़ा हो कर बहिर्मुखी हो जाए और वो नए लोगों से बात करना और मेलजोल पसंद करने लगे.
लेकिन, जब सौभाग्य से यह सच है, घबराहट के लक्षण को अभी भी इस उम्मीद से नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि यह खत्म हो जाएगा. इस पर ध्यान देने की जरूरत है, शायद यह परेशानी के बढ़ने की तुलना में कुछ अधिक गंभीर होने का संकेत हो.
शुरुआत में घबराहट की पहचान नहीं कर पाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि घबराहट वास्तव में घबराहट जैसी दिखती ही नहीं है. हर बच्चे में व्यावहारिक और शारीरिक लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं.
हालांकि व्यवहार या स्वभाव में किसी भी प्रकार का महत्वपूर्ण बदलाव इसकी सबसे अधिक जानकारी देता है.
हो सकता है कि बच्चा बिल्कुल ठीक हो. या हो सकता है कि कुछ शुरुआती समस्या का सामना कर रहा हो. लेकिन सबसे बेहतर है कि इस बारे में बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे विशेषज्ञ की राय ले ली जाए.
जब आपको यह महसूस हो कि बच्चे का तनाव का स्तर सामान्य रूप से लगातार उसके दैनिक जीवन पर पड़ रहा है. तब आपको यह समझ लेना चाहिए कि यह मदद लेने का सही समय है.
मनोविज्ञानी घबराए हुए बच्चे की नकारात्मक सोच को लक्षित तालमेल बिठाने वाली सोच में बदल सकता है. कुछ मामलों में दवाई की भी जरूरत पड़ सकती है.
(प्राची जैन एक साइकोलोजिस्ट, ट्रेनर, ऑप्टिमिस्ट, रीडर और रेड वेल्वेट्स की लवर हैं.)
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Published: 28 Aug 2018,11:41 AM IST