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मानसून आपके लिए साल का सबसे पसंदीदा महीना हो सकता है लेकिन यह न भूलें कि बारिश अपने साथ कई संक्रामक बीमारियां जैसे डेंगू, मलेरिया, डायरिया और चिकनगुनिया आदि लेकर आती है.
आयुर्वेद कहता है कि मानसून पित्त को बिगाड़ देता है, जिसके कारण पाचन शक्ति मंद पड़ जाती है. हवा में फैली आद्रता स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं जैसे अपच, संक्रमण, बाल का झड़ना और त्वचा संबंधी रोगों आदि का कारण बनती है.
खुशहाल और स्वस्थ्य मानसून चाहते हैं? यहां आयुर्वेद के आधार पर बताया जा रहा है कि इस मौसम में क्या करें और क्या न करें.
पत्तेदार साग खाना सामान्यतः अच्छा आइडिया है लेकिन आयुर्वेद के डॉक्टर कहते हैं कि मानसून के समय इसे न खाएं क्योंकि नमी वाला मौसम साग के ऊपर कीड़े पनपने के लिए सबसे अनुकूल हो जाता है.
आयुर्वेद के अनुसार अधिक तेल मसाले वाला खाना अपच, सूजन और नमक अवरोधन का कारण बन सकता है. मानसून के समय खट्टा और अम्लीय खाने को प्रतिरोधक बनाकर रखें. आप चटनी बहुत पसंद करते हैं लेकिन इसके लिए आकाश के साफ होने यानी मानसून छटने का इंतजार करें. इस समय उबला हुआ और अच्छी तरह से पकाया हुआ खाना जैसे इडली आदि का इस्तेमाल करें.
डॉ. शर्मा क्विंट से कहती हैं, “आप रोज त्रिफला का सेवन करें क्योंकि यह शरीर को टॉक्सीफाइ (विषरहित) करता है, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है और त्वचा को फिर से युवा कर देता है.
आयुर्वेद के डॉक्टर कहते हैं कि कठिन व्यायाम पित्त दोष (शरीर पर अतरिक्त भार डालकर) को बढ़ा सकता है. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि आप व्यायाम न करें. जिम को छोड़ दें और हल्के व्यायाम जैसे जॉगिंग, स्वीमिंग और योग आदि करें.
आयुर्वेद के डॉक्टर कहते हैं कि पंचकर्म रिजुवेनेशन थेरेपी के लिए मॉनसून सबसे बढ़िया समय है. डॉक्टर कहते हैं कि इस दौरान शरीर हर्बल तेल और थेरेपी को ग्रहण करने के लिए सबसे अच्छा होता है क्योंकि मानसून के समय वातावरण धूलकणों से मुक्त, नमीयुक्त और ठंडा होता है और इसलिए यह शरीर के स्वास्थ्य और सुधार के लिए बेहतर होता है.
पंचकर्म एक थेरापेटिक प्रक्रिया है, जो शरीर को डिटॉक्सीफाइ (तेल और मसाज के माध्यम से) करता है, शरीर की अशुद्धता को साफ करता है और शारीरिक व मानसिक ताजगी प्रदान करता है.
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