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स्ट्रोक दुनिया भर में मौत और विकलांगता की बड़ी वजहों में से एक है. लेकिन ये पूरे हालात का सिर्फ एक हिस्सा है. कभी-कभी स्ट्रोक के बाद सबसे कठिन अकेलेपन का एहसास होता है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक हर साल 1.5 करोड़ लोग स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं.
इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की साल 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में स्ट्रोक के मामले बहुत ज्यादा हैं.
इससे भी बुरी बात ये है कि स्ट्रोक, इसके रिस्क फैक्टर्स और लक्षणों को लेकर जागरुकता की भी काफी कमी है.
स्ट्रोक, जिसे ब्रेन अटैक भी कहते हैं, तब होता है जब मस्तिष्क तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाने वाली ब्लड वैसल (रक्त वाहिकाएं) ब्लॉक हो जाती हैं या फट जाती हैं. ऐसे में दिमाग की कोशिकाएं फंक्शन नहीं कर पातीं या नष्ट होने लगती हैं. इस तरह से उन कोशिकाओं से नियंत्रित होने वाला शरीर का हिस्सा प्रभावित होता है.
हालांकि स्ट्रोक किसी को भी, कहीं भी और किसी भी उम्र में पड़ सकता है.
मस्तिष्क दो तरह के स्ट्रोक, इस्कैमिक और हेमोरेजिक से प्रभावित होता है. स्ट्रोक के 80 फीसदी मामले इस्कैमिक होते हैं.
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल के मुताबिक स्ट्रोक (सेरेब्रो वैस्कुलर एक्सीडेंट) के कारण होने वाली विकलांगता अस्थायी या स्थायी हो सकती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि मस्तिष्क में ब्लड फ्लो कितना है और उससे कौन सा हिस्सा प्रभावित हो रहा है.
अगर आपको लगता है कि आपके सामने किसी को स्ट्रोक अटैक पड़ा है, तो इसकी पहचान के लिए F.A.S.T पर ध्यान दें.
डॉक्टर्स कहते हैं कि इलाज में देरी होने पर लाखों न्यूरॉन्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और मस्तिष्क के अधिकतर कार्य प्रभावित होते हैं. इसलिए रोगी को समय पर हॉस्पिटल ले जाना जरूरी होता है क्योंकि इलाज के लिए कई मेडिकल डिवाइसेज और सुविधाओं की जरूरत होती है.
मैक्स हेल्थकेयर में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉ मनोज लिखते हैं कि स्ट्रोक की वजह से रोगी की जान जा सकती है या फिर वो स्थाई तौर पर विकलांग हो सकता है. इसलिए स्ट्रोक पड़ने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है.
1. मरीज को सोने ना दें
ये जरूरी है कि स्ट्रोक के दौरान मरीज को सोने ना दिया जाए क्योंकि ये जानलेवा साबित हो सकता है.
2. मरीज को खुद से हॉस्पिटल ना ले जाएं
ये सलाह दी जाती है कि स्ट्रोक पड़ने पर मरीज के लिए तुरंत एंबुलेंस की व्यवस्था की जानी चाहिए. मरीज को खुद ड्राइव ना करने दिया जाए.
3. मरीज को कुछ भी खाने-पीने को ना दें
मरीज को कुछ खाने-पीने के लिए नहीं देना चाहिए क्योंकि स्ट्रोक के दौरान शरीर की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, इसलिए चोकिंग का खतरा बढ़ जाता है.
4. खुद से कोई दवा ना दें
किसी को ब्रेन स्ट्रोक पड़ने पर उसे खुद से कोई दवा ना दें. आमतौर पर लोगों को लगता है कि एस्पिरिन देने से मरीज को आराम मिलता है बल्कि ऐसा नहीं होता, अगर स्ट्रोक रक्त वाहिकाओं से फटने से हुआ है, तो एस्पिरिन की वजह से हालत और खराब हो सकती है.
इसके लक्षणों को पहचान कर तुरंत चिकित्सीय सहायता के जरिए स्ट्रोक के कारण मौत या अक्षमता की आशंका कम की जा सकती है.
मैक्स हेल्थकेयर में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की डॉ डॉ विन्नी सूद इस लेख में बताती हैं, स्ट्रोक के कुछ जोखिम कारकों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, जैसे:
ऐसे रिस्क फैक्टर जिन पर कंट्रोल संभव है
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक स्मोकिंग छोड़कर, शराब का सेवन सीमित कर, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल पर काबू पाकर, डायबिटीज मैनेज कर, कमर की साइज और वजन पर ध्यान देकर, हेल्दी डाइट अपनाकर और रेगुलर एक्सरसाइज कर स्ट्रोक से बचा जा सकता है.
एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल 18 लाख से ज्यादा स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं. इनमें से लगभग 15 फीसद मामले 30 और 40 साल से ऊपर के लोगों को प्रभावित करते हैं.
नोएडा के फोर्टिस अस्पताल के न्यूरो सर्जन और ब्रेन स्ट्रोक विशेषज्ञ डॉ गुप्ता के मुताबिक ज्यादा ठंड में होने वाली मौतों का मुख्य कारण ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक होता है. उनके अनुसार सर्दियों में शरीर का ब्लड प्रेशर बढ़ता है, जिसके कारण रक्त धमनियों में क्लॉटिंग होने से स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है.
इस मौसम में रक्त गाढ़ा हो जाता है और उसमें लसीलापन बढ़ जाता है, रक्त की पतली नलिकाएं संकरी हो जाती हैं, जिससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है.
डॉ गुप्ता सर्दियों में अधिक मात्रा में पानी और तरल पदार्थ लेने की सलाह देते हैं.
(इनपुट: आईएएनएस, स्ट्रोक एसोसिएशन)
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Published: 26 Oct 2018,11:12 AM IST