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भारत में हर आठ में से एक महिला ब्रेस्ट कैंसर की चपेट में है. विशेषज्ञों का कहना है कि स्तन कैंसर इस बीमारी के सभी प्रकारों में सबसे आम है और भारत में इससे पीड़ित महिलाओं की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है.
नीति बाग स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ सज्जन राजपुरोहित का कहना है कि शरीर के किसी हिस्से में कोशिकाओं की असामान्य और अनियंत्रित वृद्धि को कैंसर कहा जाता है. लगातार बढ़ते रहने से इस टिश्यू के टुकड़े खून के रास्ते शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचते हैं और नई जगह पर बढ़ने लगते हैं. इसे मेटास्टेसिस कहा जाता है.
डॉ राजपुरोहित के मुताबिक ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जानने के लिए शरीर की रचना के बारे में जानना बहुत जरूरी है. स्तन शरीर का एक अहम अंग है. महिलाओं में स्तन का मुख्य काम अपने दुग्ध उत्पादक ऊतकों (टिश्यू) के माध्यम से दूध बनाना है. ये टिश्यू सूक्ष्म वाहिनियों (डक्ट) के जरिए निप्पल से जुड़े होते हैं. इसके अलावा इनके चारों ओर कुछ दूसरे टिश्यू, फाइब्रस मैटेरियल, फैट, नाड़ियां, रक्त वाहिकाएं और कुछ लिंफेटिक चैनल होते हैं, जो स्तन की संरचना को पूरा करते हैं.
इन लक्षणों में से एक या एक से ज्यादा लक्षण दिखने पर तुरंत पूरा जांच करा लेनी चाहिए. जल्दी पता लगने से बीमारी को बेहद कम इलाज और कम जटिलताओं के साथ ठीक किया जा सकता है.
स्तन कैंसर का असल कारण अब भी पता नहीं चल सका है. हालांकि कुछ रिस्क फैक्टर स्पष्ट हैं, जिनमें स्तन कैंसर होने की आशंका रहती है और इन रिस्क फैक्टर वाली महिलाओं को लक्षणों पर लगातार ध्यान देते रहना चाहिए.
पारिवारिक इतिहास का रिस्क फैक्टर सबसे महत्वपूर्ण है. स्तन कैंसर पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ता है.
दो जीन बीआरसीए1 और बीआरसीए2 इस बीमारी को आगे की पीढ़ी में ले जाते हैं और इनकी जांच से ये पता लगाया जा सकता है कि किसी महिला में पारिवारिक इतिहास के कारण स्तन कैंसर होने का खतरा है नहीं.
50 साल से ज्यादा की उम्र की महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा ज्यादा रहता है.
कोकेशियान (मूलत: यूरोप के और पश्चिमी एशिया व भारत के कुछ हिस्सों के गोरे लोग) और यहूदी महिलाओं में अफ्रीकी-अमेरिकी महिलाओं की तुलना में स्तन कैंसर की आशंका ज्यादा रहती है.
स्त्री हार्मोन एस्ट्रोजन का ज्यादा स्राव स्तन कैंसर होने की आशंका बढ़ा देता है.
जिन महिलाओं में मासिक धर्म से जुड़े विभिन्न पड़ाव में कुछ असामान्य बात रही हो, उन्हें स्तन कैंसर को लेकर सतर्क रहना चाहिए.
मोटापा और शराब का सेवन भी महिलाओं में स्तन कैंसर होने का खतरा बढ़ा देता है.
स्टेज 0 से शुरू होकर अलग-अलग स्टेज बीमारी की गंभीरता को दशार्ते हैं.
स्टेज 0 : दूध बनाने वाले टिश्यू या डक्ट में बना कैंसर वहीं तक सीमित हो और शरीर के किसी दूसरे हिस्से, यहां तक कि स्तन के बाकी हिस्सों तक भी नहीं पहुंचा हो.
स्टेज 1 : टिश्यू का धीरे-धीरे विस्तार होने लगता है और ये आसपास के हेल्जी टिश्यू को प्रभावित करने लगता है. ये स्तन के फैटी टिश्यू तक फैला हो सकता है और स्तन के कुछ टिश्यू नजदीकी लिंफ नोड में भी पहुंच सकते हैं.
स्टेज 2 : इस स्टेज का कैंसर उल्लेखनीय रूप से बढ़ता है या अन्य हिस्सों तक फैलता है. हो सकता है ये बढ़कर दूसरे हिस्सों तक फैल चुका हो.
स्टेज 3 : कैंसर हड्डियों या दूसरे अंगों तक फैल चुका हो सकता है, साथ ही बाहों के नीचे 9 से 10 लिंफ नोड में और कॉलर बोन में इसका छोटा हिस्सा फैल चुका हो, जो इसके इलाज को मुश्किल बनाता है.
स्टेज 4 : कैंसर लिवर, फेफड़े, हड्डी और यहां तक कि दिमाग में भी फैल चुका होता है.
बीमारी को शुरुआती स्तर पर पहचानने के लिए ये सर्वाधिक प्रभावी तरीकों में से है. यह न्यूनतम इलाज के साथ कैंसर को नियंत्रित करने में मदद करता है.
सभी महिलाओं को स्तन की आकृति, आकार, रंग, ऊंचाई और सख्ती में होने वाले बदलाव को सही तरह से समझने की जानकारी होनी चाहिए. किसी भी तरह का स्राव होने, स्तन के आसपास की त्वचा और निप्पल पर धारियां, निशान पड़ने या सूजन जैसी हर स्थिति पर ध्यान दें. खड़े होकर और लेटकर स्तनों का सही से परीक्षण करना चाहिए.
हाई रिस्क वाली श्रेणी में आने वाली महिलाओं को थोड़ा कम उम्र से ही हर साल स्क्रीनिंग मैमोग्राम करवाना शुरू कर देना चाहिए.
डॉ सज्जन राजपुरोहित ने बताया कि जैसा हर कैंसर में होता है, स्तन कैंसर में भी इलाज इसी आधार पर तय होता है कि बीमारी का पता किस स्टेज पर चला है. इलाज में कीमोथेरेपी, रेडिएशन और सर्जरी होती है.
अगर आप हाई रिस्क फैक्टर में हैं, तो लक्षणों की जांच करते रहें. बीमारी का जल्दी पता चलने से सर्वाधिक रिकवरी की उम्मीद रहती है.
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Published: 23 Feb 2019,06:00 PM IST