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(हर साल 1-7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इसका मकसद नवजात शिशु के लिए मां के दूध का महत्व याद दिलाना और स्तनपान के लिए नई माताओं को जागरूक करना होता है.)
ध्यान दें: इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि स्तनपान कराने वाली मां क्या खाती है और क्या नहीं, ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे शिशु कभी ना रोए.
अगर आप किसी भी वजह से अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करा पा रही है तो ऐसा नहीं है कि आपकी ममता में किसी भी तरह की कमी है. लेकिन अगर आप अपने नवजात बच्चे को स्तनपान कराती हैं, तो यकीन मानिए कि पूरा परिवार, यहां तक कि आपके पड़ोसी भी ये बताएंगे कि आपको क्या खाना चाहिए और क्या नहीं.
बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान को लेकर मां को कई तरह की सलाह दी जाती है. ज्यादातर लोग कहते हैं कि ऐसे समय में मां को मसालेदार और तेज फ्लेवर के भोजन से पूरी तरह से परहेज करना चाहिए, नहीं तो स्तनपान की वजह से बच्चे को सूजन, चिड़चिड़ाहट और गैस जैसी समस्या होती है, लेकिन मेडिकल रिसर्च में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है.
तो क्या स्तनपान के दौरान एक परफेक्ट डाइट बनाए रखने की आवश्यकता है?
इस सवाल का संक्षिप्त जवाब है, नहीं. लेकिन आपको खुद की बेहतरी के लिये स्तनपान कराने के विज्ञान को समझने की जरूरत है.
स्तनपान के दौरान मां द्वारा खाया गया भोजन उनके शरीर में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट और वसा में टूट जाता है और सीधे रक्त प्रवाह में प्रवेश करता है. अगर प्रेगनेंसी के दौरान आपने सामान्य भारतीय खाना खाया है, तो गर्भ में एम्निओटिक फ्लूड के माध्यम से आपका बच्चा मिर्ची, गरम मसाला, हल्दी इत्यादि के स्वाद से पहले से ही वाकिफ हो जाता है. यह कोई नकारात्मक बात नहीं है. यह शिशु के टेस्ट बड को प्रभावित करता है, और इससे उन्हें अलग-अलग तरह के खाद्य पदार्थों के स्वाद को स्वीकार करने में आसानी होती है.
शिशु को स्तनपान कराने वाली मां जितने अलग-अलग तरह के फ्लेवर का खाना खाती हैं, वो सभी फ्लेवर स्तन ग्रंथियों (मैमरी ग्लैंड) से स्तनपान के जरिये शिशु तक पहुंचते हैं. इसलिये, मां की डाइट को सीमित करने के बजाए ज्यादा से ज्यादा फ्लेवर को शामिल करना चाहिए, ताकि शिशु को अलग-अलग तरह के स्वाद की पहचान हो सके.
खैर, कई साक्ष्य यह दिखाते हैं कि शुरुआत में ही शिशु को मूंगफली के स्वाद से पहचान करा दी जाए, तो बाद में चलकर इससे एलर्जी होने खतरा बहुत कम रहता है. वास्तव में, अगर बच्चे पहले तीन से 11 महीने के वक्त में मूंगफली के स्वाद से वाकिफ हो जाते हैं तो बच्चों में मूंगफली से होने वाली एलर्जी में लगभग 80% की कटौती देखी गई है.
इसे एक क्रांतिकारी शोध कह सकते हैं, जो सदियों से चली आ रही इस परंपरागत सलाह को खारिज करती है कि तीन साल की उम्र तक बच्चों को पूरी तरह से मूंगफली से परहेज कराना चाहिए.
मैं मां के दूध की एक बड़ी प्रचारक हूं.
शिशु के जन्म के बाद स्तनपान कराने वाली मां को हर तरफ से कई तरह की सलाह दी जाती है कि उनको क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, किन चीजों से पूरी तरह से परहेज करना चाहिए आदि. कुछ महीनों तक उनकी डाइट में ऐसी चीजें शामिल कर दी जाती है, जो महिलाओं को कई बार परेशान करती है.
आपको परहेज की लंबी लिस्ट बना कर खुद की इच्छाओं को मारने की जरूरत नहीं है. हां, संतुलित भोजन पर जरूर ध्यान दें लेकिन समय-समय पर अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करने में कोई दिक्कत नहीं है. हालांकि, एक मां होने के नाते अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा कुछ निश्चित प्रकार के भोजन के प्रति संवेदनशील है, तो फूड एलर्जी से बचाने के लिए बाल रोग विशेषज्ञ से सलाह लें या जांच कराएं.
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Published: 03 Aug 2018,01:36 PM IST