advertisement
यह कल्पना भी मुश्किल है कि मेरे दुबले-पतले, कमजोर से दादाजी और दुनिया के सबसे महान, दमदार मुक्केबाजों में से एक मोहम्मद अली के बीच कोई समानता भी थी, लेकिन ऐसा था.
मेरे दादाजी और मोहम्मद अली दोनों को पार्किंसन बीमारी (Parkinson disease) थी और मैंने देखा कि मेरे दादाजी ने बीमारी को उतनी ही अच्छी तरह टक्कर दी, जितनी मुहम्मद अली रिंग में दूसरे बॉक्सर को देते थे.
मेरे बचपन की यादें जहां तक जाती हैं, मेरे दादाजी उसका हिस्सा हैं. वह छोटे कद के थे, मगर मुझे याद है कि वह हमेशा ऊर्जा और जोश से भरे रहते थे, बेहद अनुशासित और पूरी तरह आत्मनिर्भर... जब तक जिंदा रहे.
40 साल की उम्र पार करने के बाद उनको डायबिटीज (diabetes) का पता चला था. बताते हैं कि इसके एक साइड इफेक्ट के तौर पर उनके हाथों में हल्का कंपन रहने लगा था.
इससे उनका हौसला कम नहीं हुआ. वह नियमित रूप से अपने इंसुलिन शॉट्स लेते थे, अपनी डाइट को कंट्रोल किया, एक्सरसाइज को जारी रखा और जिंदगी की राह में आगे बढ़ते रहे.
हालांकि यह बीमारी की सिर्फ शुरुआत थी. इसके बाद से धीरे-धीरे उनकी हालत बिगड़ती गई.
समय बीतने के साथ कुछ दशकों तक कई गलत आकलन और दवाओं के तजुर्बे किए जाने के बाद उनको पार्किंसन बीमारी का पता चला था.
पार्किंसंस फाउंडेशन (Parkinson's Foundation) के अनुसार, पार्किंसन के लक्षण कई तरह के हो सकते हैं, जिससे अक्सर इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है. आमतौर पर किन्हीं भी दो लोगों में एक ही तरह के लक्षण नहीं होते.
मुझे लगता है कि जब आपके किसी अजीज को शरीर को कमजोर करने वाली बीमारी चपेट में लेती है, तो किसी के लिए भी लाचारी से देखते रहना सबसे कठिन काम है. उनके जैसा खुशदिल, बुद्धिमान, समझदार, जोशीला इंसान धीरे-धीरे घटता जा रहा था और अंत में वह उस व्यक्तित्व की परछाईं भर रह गए, जैसे वो थे.
पार्किंसन और बाद में डिमेंशिया ( Dementia) ने मेरे दादाजी के साथ ऐसा ही किया.
उन्होंने हर कदम पर इसका डटकर मुकाबला किया.
उन्होंने रोजमर्रा के हर काम को फिर से सीखा. जिद कर अपने इंसुलिन इंजेक्शन खुद लेने पर जोर दिया, और लिफाफे पर हाथ से पता लिखते थे, जब तक कि हाथ कलम पकड़ सकते थे.
शायद यही वजह है कि उनकी कमजोरी ने हमें इतना ज्यादा दुखी किया.
हम इसके लिए तैयार नहीं थे– अपने मजबूत इरादों वाले दादाजी को हर दिन अपने ही शरीर से छोटी-छोटी लड़ाइयां हारते देखना. मेरे माता-पिता और मेरी दादी ने हर तरह से उनका साथ दिया, जिसमें ज्यादातर उन कामों में उनकी मदद करना शामिल था जो वह नहीं कर पाते थे, जैसे कि उन्हें अस्पताल ले जाना और उन्हें उनकी जरूरी दवा दिलाना.
लेकिन आज पीछे मुड़कर देखती हूं, तो सोचती हूं काश हम और बेहतर जानते होते.
काश, हमें पता होता कि उन्हें शारीरिक मदद और दवा के अलावा भी कुछ और चाहिए था.
मैं सोचती हूं कि काश मेरी दादी (जो उनके अंतिम समय तक उनकी देखभाल करती रहीं) को किसी भी चीज से बढ़कर उनके भावनात्मक उतार-चढ़ावों को समझ पाने के लिए ज्यादा सार्थक मदद मिली होती, जिसकी हम में से किसी को उस समय समझ नहीं थी.
पार्किंसंस डिजीज एंड मूवमेंट डिजास्टर सोसायटी (Parkinson's Disease and Movement Disorder Society) के साथ पिछले 7 सालों से काम कर रही क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट तेजाली कुंटे कहती हैं, “पार्किंसन सिर्फ उस शख्स पर असर नहीं डालती जिसे हुई है. यह उस शख्स पर भी असर डालती है, जो उस शख्स की देखभाल कर रहा है, क्योंकि वे एक साथ इस सफर को तय कर रहे हैं.”
वह कहती हैं, “यह एक अकेला सफर हो सकता है. और यह न केवल मरीज, बल्कि देखभाल करने वाले की संवेदनाओं पर भी गहरा असर डाल सकता है.”
“कंपकपी या चलने-बोलने में मुश्किल जैसे लक्षण मरीज को खुद के प्रति असहज बना सकते हैं और पार्किंसन का पता चलने के बाद आत्मविश्वास में कमी या कमतरी का अहसास पैदा कर सकता है.” यह कहना है तेजाली का, जो मरीजों और तीमारदारों की मदद के लिए 13 राज्यों में फैले अखिल भारतीय संगठन पीडीएमडीएस (PDMDS) से जुड़े साइकोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों के नेटवर्क हिस्सा हैं.
इस संस्था का मकसद न सिर्फ पार्किंसंस के मरीजों, बल्कि उनकी देखभाल करने वालों की जिंदगी में सुधार लाने में मुफ्त मदद करना है.
पार्किंसन में दवा का निश्चित रूप से बहुत महत्व है, लेकिन यह बीमारी को और बढ़ने से रोकने के लिए काफी नहीं है.
तेजाली कुंटे का कहना है कि पार्किंसन के शिकार लोगों को फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, काउंसलिंग, डाइट जैसी कई स्तर की थेरेपी की जरूरत हो सकती है.
एक देखभाल करने वाले के रूप में मरीज में मामूली बदलावों पर नजर रखना और यह जानना कि उन्हें किस तरह की मदद की जरूरत है, एक लंबी प्रक्रिया है.
वह बताती हैं, महामारी के दौरान PDMDS ने सपोर्ट सिस्टम में देखभाल करने वालों की गैर मौजूदगी को देखते हुए अपनी पहुंच का विस्तार किया.
वह आगे कहती हैं, “हमारे पास देखभाल करने वालों के लिए खुद की देखभाल को लेकर रिसोर्स, काउंसलिंग और ग्रुप सेशन भी हैं.”
फिट से बात करते हुए तेजाली कुंटे कुछ चीजें बताती हैं, जो देखभाल करने वालों को किसी अजीज, जिसे हाल ही में बीमारी का पता चला है, की देखभाल का जिम्मा हाथ में लेने से पहले पता होनी चाहिए.
तुलना न करें
लंबे दौर की तैयारी रखें
वह कहती हैं, “देखभाल करने वाले को खुद को तैयार करना चाहिए और समझना चाहिए कि यह एक लंबा चलने वाला मामला है क्योंकि पार्किंसन एक लगातार गंभीर होती जाने वाली बीमारी है. ऐसा नहीं है कि आपको केवल एक-आध महीने के लिए किसी की देखभाल करनी है.”
सच को स्वीकार करना जरूरी है
तेजाली कहती हैं, “सच को कुबूल करना बहुत जरूरी है. एक देखभाल करने वाले के रूप में भी इससे मदद मिलती है. अगर आपके करीबी इस बीमारी को स्वीकार कर लेते हैं, तो उनके रोजमर्रा के कामकाज जारी रखने में मदद कर सकता है.”
उनके कामकाज पर रोक न लगाएं
“इससे वह दोनों ही अकेलेपन और अवसाद का शिकार हो सकते हैं. मुझे नहीं लगता कि पार्किंसन में किसी को रोजमर्रा की कामकाजी जिंदगी जीने से रोकना चाहिए.”
पार्किंसंस डॉट ओआरजी (Parkinsons.org) के अनुसार एक्सरसाइज न सिर्फ पार्किंसंस डिजीज के कुछ लक्षणों से निपटने में मदद कर सकती है बल्कि न्यूरोप्रोटेक्शन (neuroprotection) भी प्रदान कर सकती है.
ईमानदारी रखें
देखभाल करते करते थक कर चूर महसूस करना ठीक है, और जरूरी है कि आप जिस शख्स की देखभाल कर रहे हैं, उसे नरमी लेकिन ईमानदारी से बात करें.
मदद मांगने में हिचकिचाएं नहीं
तेजाली कहती हैं, “एक सपोर्ट सिस्टम का होना (यहां तक कि देखभाल करने वाले के लिए भी) बहुत जरूरी है, क्योंकि यह ऐसी बीमारी है, जिसमें लोगों की एक टीम की मदद की जरूरत होती है.”
खासतौर से पार्किंसन का शिकार लोगों को ग्रुप थेरेपी सेशन कम अकेलापन और हालात को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते हैं.
वह आगे कहती हैं, “मुझे लगता है कि इस तरह के ग्रुप सेशन सच में उन्हें आत्मविश्वास देते हैं, जिससे वह अपने परिवार, रिश्तेदारों, सहकर्मियों और दोस्तों के साथ तालमेल करने में मददगार बनाता है.”
धीरे-धीरे वह अपना खुद का सपोर्ट नेटवर्क बनाने लगते हैं.
तेजाली कहती हैं, “पार्किंसन के शिकार लोगों के लिए सेशन के अलावा हमारे पास देखभाल करने वालों के लिए भी अलग सेशन हैं. उनमें से बहुत से लोगों ने बताया है कि उन्होंने किस तरह अब एक आपसी सपोर्ट नेटवर्क भी बनाया है जिससे उन्हें अपने अकेलेपन से निपटने में मदद मिली.”
(अगर आप या आपके किसी जानने वाले को पार्किंसंस बीमारी है और उसे मदद की जरूरत है, तो आप https://www.parkinsonssocietyindia.com पर संपर्क कर सकते हैं)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)