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10 नवंबर को हर साल विश्व टीकाकरण दिवस मनाया जाता है, आइये जानते हैं जुलाई 2018 में भारत में टीकाकरण पे आई WHO की खास रिपोर्ट से जुड़ी कुछ बातें..
अगर कोई भारतीय शिशु गरीब परिवार का है, उसकी मां कम पढ़ी लिखी है और वो भारत के किसी खास इलाके में रहता है तो बहुत हद तक इसकी आशंका है कि बच्चे को टीका नहीं लगा होगा.
जुलाई 2018 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ‘एक्सप्लोरेशन्स ऑफ इनइक्वैलिटी: चाइल्डहुड इम्मयूनाइजेशन’ के अनुसार किसी अमीर घर में पैदा हुए भारतीय शिशु को डीपीटी यानी डिप्थीरिया, काली खांसी और टेटनस के टीका लगने की संभावना किसी गरीब घर में जन्मे शिशु की तुलना में 2.6 गुना ज्यादा है.
इस रिसर्च का मुख्य उद्देश्य ये जानना था कि क्या शिशुओं के टीकाकरण इस बात पर निर्भर करता है कि उनके घर की सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है, वो किस घर में जन्म लेते हैं या उनके माता-पिता किस हिस्से में रहते हैं.
ये वो देश हैं जहां शिशुओं के टीकाकरण को विश्व स्वास्थ्य संगठन सबसे ज्यादा प्राथमिकता देता है.
92 पेज की इस रिपोर्ट में भारत के टीकाकरण अभियान से जुड़ी कई खास बातें बताई गईं हैं. उनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
इस रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक बातें भी कही गईं हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट की अहमियत इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि भारत में पैदा होने वाले हर पांच बच्चों में से एक की मौत पांच वर्ष की आयु से पहले ही ऐसी बीमारी से हो जाती है, जिन्हें टीकों के इस्तेमाल से बचाया जा सकता है. टीकाकरण अब तक के सबसे किफायती और असरदार उपायों में से है और इनकी मदद से हर साल लाखों बच्चों की जान बचाई जा सकती है.
इस रिपोर्ट के आने के बाद यह सवाल फिर से उठने लगा है कि क्या मिलेनियम डेवलेपमेंट गोल्स (एमडीजी) के अनुरूप 2020 तक 90 फीसदी टीकाकरण का घोषित लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा? पांच साल तक की उम्र के तकरीबन 60 हजार बच्चे भारत में हर साल सिर्फ उन बीमारियों के कारण मर जाते हैं, जिनसे टीकाकरण के जरिये बचा जा सकता है.
ये दर्दनाक सच्चाई और भी दुख देती है कि भारत में सबसे ज्यादा टीकों का निर्माण होता है और यहीं से दुनिया भर में निर्यात होता है. टीकाकरण के मामले में हम नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से भी पीछे हैं.
भारत में टीकाकरण कार्यक्रम
भारत में टीकाकरण की शुरुआत 1978 से हुई और 1985 में इस अभियान का नाम यूनिवर्सल इम्मयूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) यानी सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम रख दिया गया.
इसके अंतर्गत टीके के जरिये रोके जा सकने वाले 12 रोगों के लिए गर्भवती स्त्रियों और शिशुओं का टीकाकरण होता है. लेकिन, कार्यक्रम की प्रगति अपेक्षित गति से नहीं हुई है.
इसी वजह से मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत की गई.
भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2014 में मिशन इंद्रधनुष लॉन्च किया. इसका मुख्य मकसद ये है कि दो वर्ष तक के सभी बच्चे और गर्भवती महिलाओं का पूर्ण टीकाकरण हो जाए. इस मिशन को 2020 तक पूरा करना था. लेकिन अक्तूबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य मंत्रालय से कहा कि प्रयासों में तेजी लाई जाये और 2014 में शुरू किये गये मिशन इंद्रधनुष के तहत 90 फीसदी टीकाकरण का लक्ष्य 2020 से दो साल पहले 2018 में पूरा कर लिया जाये. इसे इंटेन्सिव मिशन इंद्रधनुष (आईएमआई) कार्यक्रम कहा जाता है.
लेकिन जिस रफ्तार से काम चल रहा है, उससे मिशन इंद्रधनुष का लक्ष्य 2018 तक पूरा होना बहुत मुश्किल नज़र आता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी जुलाई 2018 की रिपोर्ट में भारत में टीकाकरण को लेकर कई चुनौतियों का भी जिक्र किया.
उनमें से सबसे प्रमुख हैं-
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख डॉक्टर केके अग्रवाल ने क्विंट से बात करते हुए कहा -
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत 1995 में अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता था और 2018 में भी भारत अपने जीडीपी का केवल 4.7 प्रतिशत हेल्थ सेक्टर पर खर्च करता है.
इसी साल विश्व टीकाकरण सप्ताह के दौरान दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रीजनल डायरेक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा था कि 90 फीसदी आबादी को टीकाकरण के दायरे में लाने के लिए सबसे जरूरी है कि प्रत्येक सदस्य देश इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाएं और टीकाकरण कार्यक्रमों को मजबूत करने के लिए उच्च स्तरीय राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाएं.
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