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टीकाकरण मामले में कहां खड़ा है भारत?

टीकाकरण के मामले में भारत नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से भी पीछे है...

फ़ातिमा फ़रहीन
फिट
Updated:
किसी अमीर घर में पैदा हुए भारतीय शिशु को डीपीटी यानी डिप्थीरिया, काली खांसी और टेटनस के टीका लगने की संभावना किसी गरीब घर में जन्मे शिशु की तुलना में 2.6 गुना ज्यादा है.
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किसी अमीर घर में पैदा हुए भारतीय शिशु को डीपीटी यानी डिप्थीरिया, काली खांसी और टेटनस के टीका लगने की संभावना किसी गरीब घर में जन्मे शिशु की तुलना में 2.6 गुना ज्यादा है.
(फोटो:iStock)

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10 नवंबर को हर साल विश्व टीकाकरण दिवस मनाया जाता है, आइये जानते हैं जुलाई 2018 में भारत में टीकाकरण पे आई WHO की खास रिपोर्ट से जुड़ी कुछ बातें..

अगर कोई भारतीय शिशु गरीब परिवार का है, उसकी मां कम पढ़ी लिखी है और वो भारत के किसी खास इलाके में रहता है तो बहुत हद तक इसकी आशंका है कि बच्चे को टीका नहीं लगा होगा.

जुलाई 2018 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ‘एक्सप्लोरेशन्स ऑफ इनइक्वैलिटी: चाइल्डहुड इम्मयूनाइजेशन’ के अनुसार किसी अमीर घर में पैदा हुए भारतीय शिशु को डीपीटी यानी डिप्थीरिया, काली खांसी और टेटनस के टीका लगने की संभावना किसी गरीब घर में जन्मे शिशु की तुलना में 2.6 गुना ज्यादा है.

इस रिसर्च का मुख्य उद्देश्य ये जानना था कि क्या शिशुओं के टीकाकरण इस बात पर निर्भर करता है कि उनके घर की सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है, वो किस घर में जन्म लेते हैं या उनके माता-पिता किस हिस्से में रहते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 10 देशों से जमा किए गए आंकड़ों के अध्ययन के बाद ये रिपोर्ट जारी की है. इनमें अफगानिस्तान, चाड, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथोपिया, इंडोनेशिया, केन्या,नाइजीरिया, युगांडा, पाकिस्तान और भारत को शामिल किया गया.

ये वो देश हैं जहां शिशुओं के टीकाकरण को विश्व स्वास्थ्य संगठन सबसे ज्यादा प्राथमिकता देता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के आंकड़ों के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की है.

92 पेज की इस रिपोर्ट में भारत के टीकाकरण अभियान से जुड़ी कई खास बातें बताई गईं हैं. उनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  • अगर नवजात शिशु की मां उच्च शिक्षा हासिल कर चुकी है, उनकी उम्र 20 से 49 वर्ष है, और वो भारत के सबसे अमीर 20 फीसदी लोगों में से है, तो आंकड़े बताते हैं कि ऐसे शिशु को टीका लगाए जाने की संभावना 5.3 गुना ज्यादा है, उस शिशु की तुलना में जिसकी मां अनपढ़ है, मां की उम्र 19 से कम है और जो भारत के सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों में शामिल है.
  • अगर सिर्फ आमदनी की बात की जाए, तो अमीर और गरीब शिशुओं के टीकाकरण की दर में 16 फीसदी का अंतर है. सबसे गरीब 20 फीसदी शिशुओं में टीकाकरण का दर 70 फीसदी है जबकि सबसे अमीर 20 फीसदी शिशुओं में टीकाकरण की दर 86 फीसदी है.
  • उसी तरह शिशु की मां शिक्षित है या नहीं, इस आधार पर भी टीकाकरण में 18 फीसदी का फासला है.
  • भारत में कुल 29 राज्य और सात केंद्र प्रशासित क्षेत्र हैं. नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में सबसे कम केवल 53 फीसदी शिशुओं को टीका दिया जा सका है, जबकि चंडीगढ़, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ समेत नौ ऐसे इलाके हैं जहां 90 फीसदी शिशुओं को टीका दिया गया है.

इस रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक बातें भी कही गईं हैं.

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट के अनुसार परिवार का प्रमुख पुरुष है या महिला, शिशुओं के टीकाकरण पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है.
  • शिशु लड़का है या लड़की दोनों को टीका दिए जाने की दर में कोई फर्क नहीं है. यानी लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है.
  • मां की जाति का भी कोई खास असर नहीं पड़ता है. अगर शिशु की मां अनुसूचित जाति (एससी) की है, ओबीसी है या किसी दूसरी जाति की है तो शिशुओं के टीकाकरण की दर 80 फीसदी है. और अगर शिशु की मां अनुसूचित जनजाति (एसटी) से आती है, तो 74 फीसदी शिशुओं को टीका दिया गया है.
  • शहरी और ग्रामीण इलाकों के आधार पर भी देखा जाए, तो टीकाकरण की दर में कोई खास फर्क नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों के 78 फीसदी शिशुओं को टीका दिया गया है जबकि शहरी क्षेत्रों के 81 फीसदी शिशुओं को टीका दिया गया है. इसके अलावा गांवों में रहने वाले शिशुओं को टीका दिए जाने की संभावना शहरों में रहने वाले शिशुओं के मुकाबले ज्यादा है.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट की अहमियत इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि भारत में पैदा होने वाले हर पांच बच्चों में से एक की मौत पांच वर्ष की आयु से पहले ही ऐसी बीमारी से हो जाती है, जिन्हें टीकों के इस्तेमाल से बचाया जा सकता है. टीकाकरण अब तक के सबसे किफायती और असरदार उपायों में से है और इनकी मदद से हर साल लाखों बच्चों की जान बचाई जा सकती है.

भारत टीकाकरण की कमी से सबसे ज्यादा बाल मृत्यु दर वाले देशों में शुमार किया जाता है.

इस रिपोर्ट के आने के बाद यह सवाल फिर से उठने लगा है कि क्या मिलेनियम डेवलेपमेंट गोल्स (एमडीजी) के अनुरूप 2020 तक 90 फीसदी टीकाकरण का घोषित लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा? पांच साल तक की उम्र के तकरीबन 60 हजार बच्चे भारत में हर साल सिर्फ उन बीमारियों के कारण मर जाते हैं, जिनसे टीकाकरण के जरिये बचा जा सकता है.

ये दर्दनाक सच्चाई और भी दुख देती है कि भारत में सबसे ज्यादा टीकों का निर्माण होता है और यहीं से दुनिया भर में निर्यात होता है. टीकाकरण के मामले में हम नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से भी पीछे हैं.

भारत में टीकाकरण कार्यक्रम

भारत में टीकाकरण की शुरुआत 1978 से हुई और 1985 में इस अभियान का नाम यूनिवर्सल इम्मयूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) यानी सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम रख दिया गया.

इसके अंतर्गत टीके के जरिये रोके जा सकने वाले 12 रोगों के लिए गर्भवती स्त्रियों और शिशुओं का टीकाकरण होता है. लेकिन, कार्यक्रम की प्रगति अपेक्षित गति से नहीं हुई है.

इसी वजह से मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत की गई.

भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2014 में मिशन इंद्रधनुष लॉन्च किया. इसका मुख्य मकसद ये है कि दो वर्ष तक के सभी बच्चे और गर्भवती महिलाओं का पूर्ण टीकाकरण हो जाए. इस मिशन को 2020 तक पूरा करना था. लेकिन अक्तूबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य मंत्रालय से कहा कि प्रयासों में तेजी लाई जाये और 2014 में शुरू किये गये मिशन इंद्रधनुष के तहत 90 फीसदी टीकाकरण का लक्ष्य 2020 से दो साल पहले 2018 में पूरा कर लिया जाये. इसे इंटेन्सिव मिशन इंद्रधनुष (आईएमआई) कार्यक्रम कहा जाता है.

लेकिन जिस रफ्तार से काम चल रहा है, उससे मिशन इंद्रधनुष का लक्ष्य 2018 तक पूरा होना बहुत मुश्किल नज़र आता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी जुलाई 2018 की रिपोर्ट में भारत में टीकाकरण को लेकर कई चुनौतियों का भी जिक्र किया.

उनमें से सबसे प्रमुख हैं-

  • स्वास्थ्य सेवा की जानकारी की कमी
  • निगरानी और मूल्यांकन के सही सिस्टम की कमी
  • मैनेजमेंट, रिसर्च और ऑपरेशन, हर लेवल पर लोगों की कमी

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख डॉक्टर केके अग्रवाल ने क्विंट से बात करते हुए कहा -

बच्चों के टीकाकरण में असमानता का सबसे बड़ा कारण लोगों में अशिक्षा है. जिस तरह पोलियो को लेकर लोगों में गलतफहमी फैला दी जाती थी कि इससे नपुंसकता हो जाएगी. उसी तरह अन्य टीके की अहमियत को लेकर लोग जागरूक नहीं हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत 1995 में अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता था और 2018 में भी भारत अपने जीडीपी का केवल 4.7 प्रतिशत हेल्थ सेक्टर पर खर्च करता है.

इसी साल विश्व टीकाकरण सप्ताह के दौरान दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रीजनल डायरेक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा था कि 90 फीसदी आबादी को टीकाकरण के दायरे में लाने के लिए सबसे जरूरी है कि प्रत्येक सदस्य देश इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाएं और टीकाकरण कार्यक्रमों को मजबूत करने के लिए उच्च स्तरीय राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाएं.

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Published: 30 Jul 2018,06:43 PM IST

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