advertisement
पिछले 34 साल में भारत की अर्थव्यवस्था के विस्तार और विकास के बीच राज अय्यर की जिंदगी में गति थी. गैर-लाभकारी और सरकारी एजेंसियों के साथ सलाहकार के रूप में काम करते हुए वह कम से कम महीने में 14 दिन यात्रा करते थे.
11 साल पहले उनका पूरा जीवन बदल गया, जब उन्हें सांस लेने में बार-बार तकलीफ महसूस होने लगी और अंततः उन्हें क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) का पता चला, जिसने उनके फेफड़ों और सांस लेने की क्षमता को कमजोर कर दिया था.
अय्यर कहते हैं, "मुझे पता था कि मेरे लक्षण एक श्वसन रोग के थे, लेकिन मुझे नहीं पता था कि ये सीओपीडी था. मैं निश्चित रूप से नहीं जानता कि यह कितना बुरा है या यह लाइलाज है."
आज, अय्यर 69 वर्ष के हैं और उनकी जिंदगी बेंगलुरु के पूर्वी पाई लेआउट में उनके घर के एक कमरे में सिमट सी गई है, जहां वह अपने प्राथमिक देखभाल करने वालों- अपने 34 वर्षीय बेटे और 27 वर्षीय बहू के साथ रहते हैं, जिनका जीवन, जैसा कि हम बाद में बताते हैं, उनकी बीमारी से परिचालित हैं.
अय्यर की बहू और किंडर गार्टेन शिक्षिका अंतरा कार्तिकेयन कहती हैं, " 2012 में जब मेरी शादी हुई थी, तो उनकी हालत उतनी बुरी नहीं थी और उन्हें लगातार ऑक्सीजन की जरूरत नहीं थी."
जैसे-जैसे सीओपीडी में बढ़ोतरी हुई, अय्यर को ऑक्सीजन सपोर्ट लेना पड़ा, कई बार अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा और इसका कारण सांस की तकलीफ के कारण कार्बन डाइऑक्साइड का उच्च स्तर होना था, जो शरीर के लिए विषाक्त है और जमा हो जाता है क्योंकि सीओपीडी फेफड़ों की कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने की क्षमता को प्रभावित करता है. शरीर की हड्डियां कमजोर होने के कारण अय्यर कई बार गिर जाते थे.
अय्यर के कमरे में उनके लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम की व्यवस्था की गई है. एक "BiPAP मशीन", जो एक श्वासयंत्र है, जो उसकी श्वास को स्थिर करती है.
यात्रा करते समय साथ ले जाने के लिए एक पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर. एक बड़ा ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, एक मशीन जो हवा से नाइट्रोजन की स्क्रबिंग करती है और उसे 7-मीटर लंबी प्लास्टिक ट्यूब के जरिए शुद्ध ऑक्सीजन की एक धारा देती है, जो उसे घर में चारों ओर घूमने की अनुमति देती है और भारत की आईटी राजधानी में बिजली की कटौती होने पर भी जीवनदायिनी गैस को बहते रहने के लिए, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर एक इन्वर्टर से जुड़ा होता है.
पिछले 26 साल से 2016 तक ( जिस वर्ष का नवीनतम डेटा उपलब्ध है) एक लाइलाज और प्रगतिशील बीमारी, सीओपीडी भारत में मौत के प्रमुख कारणों की सूची में आठवें स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच गई है. 2016 में सड़क दुर्घटनाओं या आत्महत्याओं की तुलना में ज्यादा लोग सीओपीडी से पीड़ित हुए हैं. 2016 में डायबिटीज, मलेरिया, टीबी और स्तन कैंसर की तुलना में अधिक लोगों की मौत COPD के कारण हुई है. केवल हृदय रोग से मरने वाले भारतीयों की संख्या सीओपीडी से ज्यादा है.
COPD हर साल लगभग दस लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2019 में इस श्रृंखला के पहले आलेख में बताया है. दूसरे आलेख में भारत में सीओपीडी में योगदान देने वाले जलाने वाले पारंपरिक चूल्हे, लकड़ी और गाय-गोबर के बारे में बताया गया है. इस तीसरे आलेख में, हम आपके लिए एक राष्ट्र की जहरीली हवा, एक खतरनाक आदत और धीरे-धीरे, पहले से अधिक भारतीयों को मारने वाली बीमारी के बारे में विस्तार से बताएंगे.
तंबाकू धूम्रपान दुनिया भर में सीओपीडी का प्राथमिक कारण है और यह भारत में सभी मामलों में चौथे कारण के तौर पर जिम्मेदार है. लेकिन वायु प्रदूषण ( बायोमास जलने के कारण परिवेश और घरेलू प्रदूषण सहित ) भारत में COPD का प्राथमिक कारण है और सभी मामलों के आधे (53 फीसदी) से अधिक के लिए जिम्मेदार है.
पिछले 27 साल में, भारत में परिवेशीय प्रदूषण में 12.5 फीसदी की वृद्धि हुई है, 1990 में 80 μg / m3 (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से 2017 में 90 μg / m3 हुआ है, जबकि चीन ने इसी अवधि में 58 μg / m3 से 53 μg / m3 तक अपने परिवेशीय कण प्रदूषण को कम किया है.
ये "जनसंख्या भारित वार्षिक साधन" हैं, जो सूक्ष्म कणों, या तो धूल या धुएं को मापते हैं, जो फेफड़ों के अंतरतम को भेदते हैं. देश भर में औसत, ये डेटा अपनी आबादी के अनुपात में क्षेत्रों को वजन देते हैं, ताकि अधिक वजन उन क्षेत्रों को दिया जाए जहां अधिक लोग रहते हैं. लेकिन ये औसत विषाक्त हवा की स्थानीय सांद्रता का मुखौटा हैं, जो औसत से कई गुना अधिक हो सकता है.
इसके अलावा, 2018 विश्व स्वास्थ्य संगठन के तथ्यों के अनुसार 26.6 करोड़ से अधिक भारतीय तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं, और जबकि तंबाकू से मरने का सबसे आम तरीका कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (48 फीसदी) से है, अगला सांस की क्रोनिक बीमारियां (23 फीसदी) हैं, जिसमें सीओपीडी शामिल है.
हालांकि, पिछले 12 साल से 2010 तक, भारत में 15 से 69 वर्ष की आयु के पुरुषों में किसी भी धूम्रपान का अनुपात में 27 फीसदी की गिरावट हुई है, सिगरेट स्मोकिंग उस आयु वर्ग में दो गुना और 15-29 आयु वर्ग में चार गुना बढ़ा है, जैसा कि जर्नल, बीएमजे ग्लोबल हेल्थ के 2016 के पेपर से पता चलता है.
अय्यर ने 17 साल की उम्र में धूम्रपान करना शुरू कर दिया था और सीओपीडी का पता चलने के एक साल पहले तक नहीं छोड़ा था.
भारत में सीओपीडी की वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारक इसकी बढ़ती आयु वाली जनसंख्या है, जैसा कि इस बात के सबूत हैं कि बढ़ती उम्र के साथ संवेदनशीलता बढ़ जाती है.
पिछले 21 वर्षों से 2011 तक, 60 वर्ष से अधिक आयु के भारतीयों की संख्या 93 फीसदी बढ़ी है, 5.37 करोड़ से 10.38 करोड़ तक. 2001 से 2011 के बीच बुजुर्ग आबादी में दशकीय वृद्धि 35.5 फीसदी था जबकि सामान्य जनसंख्या में 17.7 फीसदी की वृद्धि थी.
जैसा कि देश की आबादी की आयु और वायु प्रदूषण बढ़ता है, COPD के भारत में तेजी से बढ़ने की आशंका है, जैसा कि विशेषज्ञों ने इंडियास्पेंड को बताया है.
पिछले 26 वर्षों से 2016 तक, भारत के कुल रोग भार में सीओपीडी की हिस्सेदारी में 54 फीसदी वृद्धि हुई, जैसा कि सीओपीडी मृत्यु के आठवें-प्रमुख कारण से दूसरे स्थान पर पहुंच गया है. यह जानकारी, एक थिंक टैंक पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) और सरकार द्वारा संचालित प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क, इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च द्वारा 2017 इंडिया: हेल्थ ऑफ नेश्नस स्टेट्स रिपोर्ट में सामने आई है. सीओपीडी के इस वृद्धि के भीतर, चिकित्सा की बारीकियां हैं जो बताती हैं कि बीमारी को लेकर समझ क्यों खराब है, यहां तक कि डॉक्टरों द्वारा भी इसे क्यों खराब तरीके से प्रबंधित किया जाता है, जिससे यह और अधिक भारतीयों की मौत का कारण बन रहा है.
2006 में जब अय्यर को सांस लेने में पहली बार तकलीफ हुई और लगातार खांसी और थकान महसूस हुई, तो वह एक कार्डियोलॉजिस्ट के पास गए, जिन्हें संदेह था कि ये सांस और दिल से जुड़ी बीमारी है. डॉक्टर ने दोनों के लिए दवाइयां निर्धारित कीं। उधर लक्षणों के बदतर होने के बावजूद, अय्यर ने काम करना और एक शहर से दूसरे शहर का दौरा जारी रखा.
दो साल बाद, जब एक दिन वह अकेले थे, उनका ब्लड शुगर लेवल अचानक गिर गया. उन्होंने अपने ड्राइवर से अस्पताल ले जाने को कहा. बाद में, कई परीक्षणों के बाद, सीओपीडी के रूप में उनकी स्थिति का सही निदान किया गया था. निदान के लिए दो साल नहीं लगने चाहिए क्योंकि अय्यर 17 साल की उम्र से धूम्रपान करते थे, जैसा कि हमने पहले बताया है, वह एक दिन में 60 सिगरेट 40 साल से ले रहे थे.
जैसा कि अय्यर के मामले में, एक क्लासिक सीओपीडी लक्षण सांस की तकलीफ है, हालांकि अन्य लक्षणों में थकान, खांसी और छाती की जकड़न शामिल हो सकती है. मरीजों को सांस की कमी महसूस होती है क्योंकि फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने वाली नलिकाओं में सूजन हो जाती है.
किसी भी तरह से, फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड को निष्कासित नहीं करते हैं या ऑक्सीजन को अवशोषित नहीं करते हैं. यह विशेष रूप से बुजुर्ग रोगियों के लिए मुश्किल है.
बेंगलुरु के भगवान महावीर जैन अस्पताल में जैन इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन के निदेशक, एचबी चंद्रशेखर कहते हैं, “25 साल की उम्र में, हमारे फेफड़े अपनी इष्टतम क्षमता (हर सांस के साथ चार से छह लीटर हवा लेना) पर होते हैं, तब से, यह धीरे-धीरे प्रति वर्ष लगभग 25-30 मिलीलीटर घटता है."
उन्होंने आगे बताया, "धूम्रपान करने वालों में यह दो या तीन गुना तेजी से होता है, इसलिए हर साल लगभग 80-90 मिलीलीटर गिरावट होती है."
उन्होंने कहा कि जब तक धूम्रपान करने वाला व्यक्ति 45 वर्ष की आयु तक पहुंच जाता है, तब तक फेफड़े की क्षमता 75 वर्ष की उम्र के बराबर हो जाती है. अय्यर का जब निदान किया गया था तो वह 58 साल के थे.
अय्यर की मां और दोस्तों ने उन्हें धूम्रपान छोड़ने के लिए कहा था. 2007 में, उन्होंने आखिरकार किया. एक साल बाद, उन्हें सीओपीडी का पता चला. तब तक, वह बीमारी का दूसरा चरण आ गया था.
सलाहकार चिकित्सक, पल्मोनोलॉजिस्ट और क्रिटिकल-केयर-मेडिसिन विशेषज्ञ, रजनी भट, जिन्होंने अय्यर का आठ साल तक इलाज किया, कहती हैं, "आमतौर पर मरीज सीओपीडी में खराब फेफड़ों के संक्रमण के कारण आते हैं. वे कहते हैं कि वे इससे पहले पूरी तरह से सामान्य थे, लेकिन तथ्य यह है कि उनके फेफड़े की कार्यक्षमता कुछ समय से गिरावट पर होती है, लेकिन उन्हें यह केवल बाद में उम्र बढ़ने के कारण महसूस होता है."
अगर जल्दी पकड़ा जाता है, तो ( आदर्श रूप से पूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य जांच में ) जिसमें फेफड़े के कार्य परीक्षण शामिल होते हैं, सीओपीडी का इलाज किया जा सकता है और इनहेलर्स के माध्यम से प्रबंधित किया जा सकता है.
अधिकांश भारतीय डॉक्टरों द्वारा सीओपीडी का शीघ्र निदान नहीं किए जाने के कई कारण हैं:
बेंगलुरु के नारायण हेल्थ में पल्मोनोलॉजी एंड इंटरनल मेडिसिन के कंसल्टेंट बी. वी. मुरली मोहन कहते हैं, " अपने अध्ययन में, हमने पाया कि 25 फीसदी रोगियों को मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (दिल के दौरे) में एक अंतर्निहित फेफड़ों की बीमारी थी, जिसकी उनको कोई जानकारी नहीं थी."
भारत के नंबर एक मौत के कारण ( कार्डियोवैस्कुलर रोग ) की सामान्य जागरुकता के विपरीत सीओपीडी शायद ही कभी लोकप्रिय मीडिया में लिखा जाता है.
पीएचएफआई के अध्यक्ष श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, "सीओपीडी को पाठक या दर्शक की रुचि का नहीं माना जाता है." उन्होंने आगे कहा, प्राथमिक देखभाल में खराब निदान और अन्य श्वसन रोगों के साथ भ्रम और रोगियों द्वारा "कम आत्म रेफरल" के साथ, सीओपीडी एक गलत समझा गया रोग है.
अय्यर ने देखा है कि किस तरह धीरे-धीरे COPD उनके जीवन पर हावी हुआ है.
2008 में स्टेज दो से, उनके भीतर की बीमारी चरण चार तक बढ़ गई है, जिसका मतलब है कि यह अब बहुत गंभीर चरण में है, जहां अस्पताल में अक्सर भर्ती होना पड़ता है और फेफड़ों का कार्य सीमित है.
पिछले चार वर्षों में, उन्हें 10 बार अस्पताल में भर्ती कराया गया है. भर्ती का कारण ज्यादातर फेफड़े में संक्रमण या रक्त में कम ऑक्सीजन संतृप्ति रहा है.
2019 में, अय्यर केवल जनवरी में अस्पताल में भर्ती हुए हैं.
अय्यर ने कहा, " वे कहते हैं, अगर आप छह महीने से अधिक समय से अस्पताल में भर्ती नहीं हैं, तो आप अच्छा कर रहे हैं." वह घर पर अपनी बीमारी का प्रबंधन करने, अपनी BiPAP मशीन को समायोजित करने, अपने नेबुलाइजर को चलाने में माहिर हो गए हैं, जो गहरे धुंध में भी श्वांस नलियों को खोलने में अय्यर की मदद करते हैं और उन्हें अस्पताल जाने से बचाते हैं.
अय्यर के डॉक्टर भट ने कहा, "ज्यादातर मरीज, विशेष रूप से महिलाएं, अपने बच्चों और परिवार (और) पर बोझ नहीं डालना चाहतीं, इसलिए डॉक्टर को दिखाने में देरी करती हैं. ये समझदारी नहीं, मूर्खता है, चूंकि नियमित फॉलो-अप से रोगियों को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है."
चूंकि भारत में अधिकांश सीओपीडी के मामलों का पता देर से चलता है और मामला चरण 2 या उससे आगे चला जाता है, इसलिए उन्हें अक्सर अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, खासकर सर्दियों में ऐसी जरूरत होती है.
सीओपीडी के प्रबंधन पर अय्यर हर महीने 10,000-15,000 रुपये के बीच खर्च करते हैं, लेकिन आमतौर पर एक सप्ताह तक चलने वाले प्रत्येक अस्पताल का खर्च 60,000-100,000 रुपये के बीच हो सकता है.
मेडिकल पैराफर्नेलिया के अलावा जिनसे उन्हें जीवित रहने में मदद मिलती है, वह है उनके बिस्तर के सामने लगा हुआ एक ब्लैकबोर्ड--- जिस पर बहू अंतरा कार्तिकेयन ने दवाओं की एक लिस्ट लिखी है, जिसे उसे हर दिन और आपातकालीन स्थिति में लेने की आवश्यकता होती है.
अपनी शोध बैकग्राउंड को देखते हुए ( उनके पास सोशल एंथ्रोपोलॉजी में मास्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री है ) अय्यर ने रोग के मैकेनिज्म का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया है और उपचार और दवाओं पर आसानी से उत्तर दिए हैं.
अय्यर कहते हैं, "सीओपीडी का इलाज करने के लिए, डॉक्टरों ने स्टेरॉयड निर्धारित किया, जो डायबिटीज और ऑस्टियोपोरोसिस को जन्म देता है क्योंकि सीओपीडी आपको बेदम बनाता है, आप कम सक्रिय होते हैं, जो हड्डियों और मांसपेशियों को कमजोर करता है."
अय्यर की डॉक्टर भट कहती हैं, “इनहेलर्स इन दुष्प्रभावों का कारण नहीं है; केवल मौखिक स्टेरॉयड है. अय्यर को अपने एक्ससेर्बेशन के लिए ओरल स्टेरॉयड लेना पड़ता है और उन्हें लंबे समय तक उन्हें लेना पड़ता है. हालांकि, अगर उन्होंने ये दवाईयां नहीं ली होती तो वे जीवित नहीं होते."
फिर भी, सीओपीडी का जल्द पता लगाया जा सकता है, और मरीज बेहतर गुणवत्ता वाले जीवन की उम्मीद कर सकते हैं.
ओपीडी के लिए दवा की तुलना एक हस्तक्षेप जो, बेहतर नहीं तो प्रभावी रूप से काम करता है, वह पल्मनेरी रीहबिलटेशन है, जिसमें चिकित्सा पर्यवेक्षण, पोषण संबंधी परामर्श और सांस लेने की तकनीक के तहत पुरानी फेफड़ों के रोगियों के लिए व्यायाम का 12 हफ्ते का कार्यक्रम शामिल है.
व्यायाम एक मरीज की सांस लेने की क्षमता में सुधार करता है, जो काम करने की मांसपेशियों के कारण होता है जो कि अनुपयोग के कारण काम करने की स्थिति में नहीं रहता है. भगवान महावीर जैन अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट एच.बी. चन्द्रशेखर, जिन्होंने 2012 में बेंगलुरु का पहला और भारत का सबसे पहला, पल्मनेरी रीहबिलटैशन सेंटर स्थापित किया गया था, कहा, यह मरीजों को ‘सशक्त’ करता है और उन्हें आत्मविश्वास देता है, ताकि वे स्वतंत्र हो सकें.
चंद्रशेखर कहते हैं, “व्यायाम, अस्पताल में भर्ती होने की संभावना को कम कर देता है, लक्षणों में सुधार करता है और मृत्यु दर को भी कम कर सकता है." उन्होंने कहा कि ज्यादातर मरीज रिहैब में जाने से हिचकते हैं, क्योंकि वे इसे अनावश्यक मानते हैं, और ज्यादातर अस्पतालों में ऐसा कोई केंद्र नहीं होता है, क्योंकि यह उतना पैसा नहीं लाता है, जितना अस्पताल के बेड लाते हैं.
बेंगलुरु में रहने से संभवतः अय्यर के स्वास्थ्य पर अधिक असर पड़ा. पल्मोनोलॉजिस्ट ने बताया कि कैसे बेंगलुरु का अनूठा मौसम और भौगोलिक परिस्थितियां इसके निवासियों को विशेष रूप से श्वसन संबंधी बीमारी का शिकार बनाती हैं.
जबकि वायु प्रदूषण नई दिल्ली या दूसरे उत्तरी शहरों में उतना अधिक नहीं है ( जिनमें से 15, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से 20 के बीच हैं ) बेंगलुरु की समुद्र तल से ऊंचाई 3,020 फीट या 920 मीटर है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रदूषक न बढ़ें, जैसा कि वे गर्म मौसम में होते हैं, लेकिन जमीन के करीब रहते हैं.
भट ने कहा, " सड़क के दोनों ओर पेड़ों की कतारें शहर की जान हैं, जो सांस लेने वाले क्षेत्र के प्रदूषकों को भी फंसाते हैं लेकिन और शहर की उच्च पराग सांद्रता, निवासियों को एलर्जी, अस्थमा और सीओपीडी का शिकार बनाता है."
जब 2008 में अय्यर को पहली बार पल्मनेरी रीहबिलटेशन की सिफारिश की गई थी, तो उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया. 2015 में जब उनकी हालत बिगड़ी, तो वे महावीर जैन अस्पताल गए और रीहबिलटैशन स्वीकार किया.
वह ऑक्सीजन के सहारे व्हीलचेयर पर अस्पताल गए; धीरे-धीरे उन्होंने व्हीलचेयर और निरंतर ऑक्सीजन सपोर्ट से खुद को हटा दिया. 2015 में, वह बेहतर महसूस कर रहे थे और अधिक काम करने में शारीरिक रूप से सक्षम थे.
अय्यर ने बताया कि बीमा कंपनियां पल्मनेरी रीहबिलटेशन को कवर नहीं करती हैं. "वे सीओपीडी को कवर करने और पैसे का भुगतान करने के लिए तैयार हैं, अगर आप बीमा का दावा करते हैं. लेकिन (वे) रीहबिलटेशन के लिए भुगतान नहीं करेंगे."
इसकी लागत हर हफ्ते 1,000 रुपये है, जिसके दौरान तीन एक घंटे के सत्र हैं. अय्यर ने एक साल के लिए रीहैब सत्रों का भुगतान किया और इसे जारी रखा. हालांकि, गिरने और चोट लगने के बाद, वह 2017 के बाद रीहबिलटेशन जारी रखने में सक्षम नहीं थे, जिससे उनकी हालत खराब हो गई. उनके परिवार पर एक बड़ा बोझ स्पष्ट है.
सीओपीडी ने अय्यर के परिवार के जीवन को बदल दिया है.
उदाहरण के लिए, उनके बेटे और बहू एक ही समय में शहर से बाहर नहीं जा सकते.
बहू अंतरा कार्तिकेयन रीटेल मैनेजर थी और लंबे समय तक घर से बाहर रहती थी, लेकिन वह अकेले अय्यर में चिंतित रहती हैं.
अंतरा कार्तिकेयन ने कहा, "मेरी चिंता का विषय ये था कि अगर वह यात्रा करते हैं और गिरते हैं, तो क्या होगा. वह अपने दम पर नहीं उठ सकते. वह हमें कैसे बुलाएंगे? ”
उन्होंने कहा कि एक किंडरगार्टन शिक्षक बनने का उसका फैसला एक व्यक्तिगत पसंद थी क्योंकि वह दोपहर तक घर लौट सकती थी. उन्होंने और उनके पति ने अपनी चार साल की बेटी, तान्या की देखभाल के लिए सहायिका काम पर रखी है और अगर अंतरा काम पर बाहर हैं तो अय्यर को सहायता के लिए वह मौजूद रहेंगी.
सीओपीडी केवल फेफड़ों को प्रभावित नहीं करता है, बल्कि सूजन के कारण व्यापक प्रणालीगत क्षति का कारण बनता है. इस बीमारी ने अय्यर को गैस्ट्राइटिस, डायबिटीज, एडिमा, नींद में खलल, चिंता और अवसाद तक पहुंचा दिया है और इससे उबरने के लिए वे संगीत में डूबे रहते हैं. किताबें पढ़ते हैं, फिल्में देखते हैं और मेडिटेशन करते हैं.
ये चार आर्टिकल की सीरीज में से तीसरा आर्टिकल है. आप पहले भाग को यहां और दूसरे भाग को यहां पढ़ सकते हैं.
इस आर्टिकल की रिपोर्टिंग पर गैर संचारी रोगों पर आरईआरसी लिली मीडिया फैलोशिप प्रोग्राम की ओर से सहयोग मिला था
यह आर्टिकल यहां हेल्थचेक पर पहली बार प्रकाशित हुआ था और इसके बाद इंडियास्पेंड पर. इसे मंजूरी के साथ दोबारा पब्लिश किया गया है.
(यदवार विशेष संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 20 Jul 2019,02:49 PM IST