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COVAXIN 81% प्रभावी, जानें कोरोना के खिलाफ कैसे है कारगर

कोरोना के खिलाफ भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ के तीसरे फेज का ट्रायल

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कोवैक्सीन ने फेज 3 क्लीनिकल ट्रायल में 81% की अंतरिम वैक्सीन प्रभावकारिता प्रदर्शित की है.
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कोवैक्सीन ने फेज 3 क्लीनिकल ट्रायल में 81% की अंतरिम वैक्सीन प्रभावकारिता प्रदर्शित की है.
(फोटो: फिट हिंदी)

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भारत बायोटेक ने 3 मार्च, 2021 को अपनी कोरोना वैक्सीन COVAXIN के पहले अंतरिम विश्लेषण की घोषणा की है. कोवैक्सीन ने फेज 3 क्लीनिकल ट्रायल में 81% की अंतरिम वैक्सीन प्रभावकारिता प्रदर्शित की है.

भारत में 16 जनवरी, 2021 से शुरू हुए टीकाकरण अभियान के लिए कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को भी इमरजेंसी यूज की मंजूरी दी गई. हालांकि जब ये मंजूरी दी गई थी, तब तीसरे फेज के नतीजे सामने न आने के कारण इस पर कई सवाल उठाए गए थे.

कोवैक्सीन के अंतरिम ट्रायल नतीजों पर मुंबई में इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट और ‘The Coronavirus: What You Need to Know About the Global Pandemic’ के लेखक डॉ स्वप्निल पारिख फिट से बातचीत में कहते हैं, "यह अच्छी खबर है कि COVAXIN के फेज 3 ट्रायल के अंतरिम विश्लेषण से पता चलता है कि टीका प्रभावशाली है. हमें इस डेटा के प्री-प्रिंट की प्रतीक्षा करने की जरूरत है, लेकिन यह हमारे देश के लिए बहुत अच्छी खबर है."

भारत बायोटेक की 'कोवैक्सीन' के बारे में क्या-क्या पता है? सभी जरूरी सवालों के जवाब यहां जानिए.

क्या है कोवैक्सीन और इसे कैसे विकसित किया गया है?

Covaxin भारत की अपनी पहली स्वदेशी कोरोना वैक्सीन है, जिसका विकास हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV), पुणे के सहयोग से किया है.

इस वैक्सीन के लिए SARS-CoV-2 का स्ट्रेन NIV, पुणे में आइसोलेट कर भारत बायोटेक भेजा गया. हैदराबाद में भारत बायोटेक की हाई कंटेनमेंट फैसिलिटी में इनएक्टिवेटेड वैक्सीन तैयार की गई.

इनएक्टिवेटेड वैक्सीन बीमारी करने वाले पैथोजन यानी रोगाणु को मारकर या इनएक्टिव करके तैयार की जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ये वैक्सीन वायरस या बैक्टीरिया को मारकर बनाई जाती हैं, इसलिए ये बीमारी नहीं कर सकतीं.

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कोवैक्सीन के फेज 3 ट्रायल में कितने पार्टिसिपेंट्स को शामिल किया गया?

भारत बायोटेक ने कहा कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के सहयोग से तीसरे फेज के क्लीनिकल ट्रायल में 25,800 पार्टिसिपेंट्स को शामिल किया गया.

फेज 3 स्टडी में 18-98 वर्ष की आयु के बीच 25,800 प्रतिभागियों को शामिल किया गया, जिसमें 60 से अधिक उम्र के 2,433 और कोमॉर्बिडिटी वाले 4,500 प्रतिभागी रहे.

कोवैक्सीन की एफिकेसी कितनी पाई गई है?

पहला अंतरिम विश्लेषण 43 मामलों पर आधारित है, जिनमें से COVID-19 के 36 मामले प्लेसिबो ग्रुप में देखे गए और 7 मामले कोवैक्सीन वाले ग्रुप के थे. इस तरह वैक्सीन की एफिकेसी 80.6% आई है.

ये क्लीनिकल ट्रायल फाइनल एनालिसिस के लिए कोरोना के 130 कन्फर्म मामले होने तक जारी रहेगा.

नेशनल इंस्टीट्यूट वायरोलॉजी की एनालिसिस के मुताबिक वैक्सीन वायरस के यूके स्ट्रेन के खिलाफ भी कारगर है.

ये कितना सुरक्षित है?

कंपनी ने कहा कि अंतरिम विश्लेषण में सेफ्टी डेटाबेस का प्रलीमनरी रिव्यू शामिल है, जिससे पता चलता है कि सीवियर, सीरियस और मेडिकली अटेंडेड एडवर्स इवेंट निम्न स्तर पर हुईं और वैक्सीन और प्लेसेबो ग्रुप के बीच संतुलित थी.

सबसे कॉमन एडवर्स इवेंट था वैक्सीन लगवाने की जगह दर्द था, और रिव्यू के मुताबिक, ये तुरंत ठीक हो गया था.

कोवैक्सीन के क्या फायदे हैं?

कोवैक्सीन 2°C से 8°C तापमान पर स्टेबल रह सकती है. इसलिए इसका डिस्ट्रिब्यूशन देश में पहले से मौजूद सप्लाई चेन के जरिए हो सकता है. इसके लिए किसी कोल्ड चेन की जरूरत नहीं. इस तरह इसे सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी सप्लाई किया जा सकता है.

भारत के लिए इसके क्या मायने हैं?

डॉ स्वप्निल पारिख कहते हैं, “इसका मतलब है कि भारत में एक और प्रभावकारी टीका है. अगर 2021 में भारत बायोटेक करोड़ों डोज के मैन्यूफैक्चरिंग लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम होता है, तो यह न केवल भारत, बल्कि कई देशों के लिए फायदेमंद होगा.”

इससे भारत के वैक्सीन अभियान में और तेजी लाने में मदद मिलेगी.

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Published: 04 Mar 2021,11:45 AM IST

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