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दीपा करमाकर ने FIG आर्टिस्टिक जिम्नास्टिक्स वर्ल्ड चैलेंज कप में गोल्ड मेडल जीता है. 2016 के रियो ओलंपिक में दीपा भले ही मेडल नहीं जीत पाई थीं, लेकिन उनके प्रदर्शन से पूरा देश ये जान गया कि वो भविष्य में इतिहास रचने वाली हैं. पिछले साल ही दीपा प्रैक्टिस के दौरान घायल हो गई थीं. उनके घुटने में चोट लगी थी. दीपा एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट (ACL) इंजरी का शिकार हुई थीं. इस वजह से उन्हें सर्जरी करानी पड़ी थी और कुछ दिनों तक आराम करना पड़ा था. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि ये आखिर किस तरह की चोट है.
एसीएल (एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट) वो ऊतक है, जो घुटने में पिंडली की हड्डी को जांघ की हड्डी से जोड़कर स्थिरता देता है. ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर रमणीक महाजन बताते हैं कि एसीएल की वजह से ही हम चलते हुए, दौड़ते और सीढ़ियां चढ़ते-उतरते वक्त गिरते नहीं हैं. जब इस लिगामेंट में कोई चोट लगती है, तो इसे एसीएल इंजरी कहते हैं.
घुटने में लगने वाली चोटों में एसीएल इंजरी बहुत ही आम है. ये चोट ज्यादातर बास्केटबॉल, सॉकर, फुटबॉल, स्कीइंग और टेनिस जैसे खेलों के दौरान लगती है. इनमें तेजी से भागना, मुड़ना, रुकना, कूदना और उछलना पड़ता है. इसके अलावा, उम्र बढ़ने के साथ इसके होने की आशंका भी बढ़ जाती है.
लिगामेंट में लगने वाली चोटों को आम भाषा में हम मोच या मरोड़ कह देते हैं. इनकी गंभीरता के आधार पर इसे तीन ग्रेड में बांटा गया है.
ज्यादातर लिगामेंट इंजरी ग्रेड 2 और ग्रेड 3 लेवल की होती है. वहीं डॉक्टर रमणीक बताते हैं कि घुटनों के सर्जन इसे कम्प्लीट और इन्कम्प्लीट टीयर कहते हैं.
अगर आपकी भी एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट चोटिल है, तो इससे पूरी तरह ठीक होने के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बताया जाता है. हालांकि ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपको कितनी चोट लगी है और आपका एक्टिविटी लेवल क्या है. जैसे खिलाड़ियों को इस चोट के लिए सर्जरी ही करानी पड़ती है, ताकि वो गेम में वापसी कर सकें.
घुटने में लगी किसी भी चोट को नजरअंदाज करने की बजाए तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए. सबसे पहले डॉक्टर आपकी तकलीफ के बारे में पूछ सकते हैं. चोटिल घुटने की दूसरे घुटने से तुलना की जा सकती है. एक्स-रे और एमआरआई (Magnetic resonance imaging) स्कैन भी किया जा सकता है.
इसका इलाज कुछ फिजिकल थेरेपी और सर्जरी से होता है. हालांकि पूरी तरह से टूटे लिंगामेंट को सर्जरी से ही ठीक किया जा सकता है. जो लोग खेलकूद जैसी एक्टिविटीज से दूर रहते हैं और जिन्हें ज्यादा भागदौड़ न करनी हो, उनके लिए डॉक्टर सिर्फ फिजिकल थेरेपी की ही सलाह देते हैं. जैसे घुटने को सहारा देने के लिए ब्रेस दिया जा सकता है. सूजन कम होने पर कुछ व्यायाम कराए जा सकते हैं, जिनसे उनकी मांसपेशियों और पैर को मजबूती मिले.
अगर मरीज को फिजिकल थेरेपी से आराम नहीं मिलता और उसकी लाइफ बहुत भागदौड़ वाली हो, तो ऑर्थोस्कोपिक सर्जरी की जाती है, जिसमें फिर से एसीएल बनाना शामिल है.
जिस तरह कार का टायर पंचर होने पर स्टेपनी निकाली जाती है, उसी तरह हमारे शरीर में कुछ टेंडन पाए जाते हैं. इन्हीं टेंडन को निकाल कर एसीएल की जगह अटैच कर दिया जाता है.
डॉ. रमणीक बताते हैं कि एसीएल इंजरी में फिजियोथेरेपी बहुत जरूरी होती है. साथ ही अगर एसीएल इंजरी होने पर भी कोई अपनी एक्टिव लाइफस्टाइल जारी रखता है, तो घुटना बार-बार रोटेट होता है. इससे उसके नीचे कुशन का काम करने वाले मेनिस्कस को भी नुकसान पहुंच सकता है. अगर अपनी मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए एक्सरसाइज नहीं कर रहे हैं और ऑपरेशन नहीं करा रहे हैं, तो ऑर्थराइटिस होने का खतरा होता है. इसीलिए एसीएल इंजरी की सर्जरी करा लेनी चाहिए, अगर आपकी लाइफस्टाइल एक्टिव है.
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Published: 09 Jul 2018,08:49 PM IST