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क्या आपने कभी बिना सोचे-समझे ही खूब सारे स्नैक्स या चॉकलेट खाए हैं? वह भी ऐसे समय जब आपको भूख भी ना लगी हो. आप इस बात को जान रहे हों कि आपको भूख नहीं है और आप बिना कैलोरी के काम चला सकते हैं. इसके बावजूद आप खाए जा रहे हों. क्या ये ऐसा नहीं है कि आप खुद को कंट्रोल ही नहीं कर पा रहे हों? कई बार ऐसा हो सकता है- इसे ही 'इमोशनल ईटिंग' कहते हैं.
इमोशनल ईटिंग को आमतौर पर ‘नकारात्मक भावनाओं को शांत करने के लिए जरूरत से ज्यादा खाने’ के तौर पर परिभाषित किया जाता है. इसलिए हम कह सकते हैं कि यह जरूरी तौर पर एक मैलाडैप्टिव स्ट्रैटजी है, जो नकारात्मक और परेशान करने वाले विचारों और भावनाओं जिसमें गुस्सा, डर, थकान और यहां तक कि उदासी शामिल है, को दबाती है. मैलाडैप्टिव स्ट्रैटजी से आशय एक ऐसी रणनीति से है, जिसमें हम प्रतिकूल स्थिति से बाहर निकलने की अस्थायी कोशिश करते हैं. यह कोशिश समस्या को जड़ से खत्म नहीं करती है.
करियर, रिलेशनशिप, परिवार या हेल्थ से जुड़ी भावनात्मक परेशानियों के कारण हो सकता है हम बहुत अधिक खाना शुरू कर दें. जो अंततः हमें ओवरइटिंग, वजन बढ़ने के दुष्चक्र में फंसा दे और आखिर में हमें अपने शरीर से ही डर लगने लगे.
इमोशनल ईटिंग के मामले में इसे नियंत्रित करना थोड़ा मुश्किल होता है. इसके मुख्य कारणों में से एक यह है कि ये अक्सर अनजाने में शुरू होता है.
ऐसा हो सकता है कि आपका पेट भर गया हो फिर भी आप अपनी थाली में बचे भोजन को खा रहे हों. या हो सकता है कि फिल्म देखने के दौरान आपने सारा पॉपकॉर्न खा लिया हो, लेकिन आपको पता ही न चले कि आप कितना पॉपकॉर्न खा चुके हैं.
हाल ही में एक दोस्त ने मूंगफली खाने की आदत लगने के बारे में शिकायत की – जिसे वह नापसंद करती थी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मूंगफली उसके सामने होती है.
रिसर्च के अनुसार अधिक शुगर और वसा वाला भोजन हमें अस्थायी रूप से संतुष्टि देता है. इसलिए लिए ‘बहुत’ अच्छा लगने का अनुभव हमें इस तरह के भोजन की आदत लगा देता है, जिससे पीछा छुड़ाना मुश्किल होता है.
ये तरीका हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है. विडंबना यह भी है कि जब किसी को अपने शरीर से नफरत या घृणा हो जाती है, तो वो भी 'इमोशनल ईटिंग' की तरफ बढ़ जाता है क्योंकि वह उस चीज का सामना नहीं करना चाहता, जो वह महसूस कर रहा है. या वह ऐसे कदम नहीं उठाना चाहता है, जिससे उसके मन में आए नकारात्मक विचार खत्म हो जाएं. संक्षेप में, यह खराब होने के बावजूद एक टालने वाली तकनीक है.
इमोशनल ईटिंग के बारे में जो बात ध्यान रखने वाली है, वो यह है कि वास्तव में इसका आपकी भूख से कुछ लेना-देना नहीं है. यह भूख नहीं है, जिसके कारण लोग खाते हैं बल्कि यह खाने की लालसा (क्रेविंग) है, जो आपको अस्थायी रूप से अच्छा महसूस कराती है. ऐसा हमारे शरीर में शुगर रिलीज होने के कारण होता है. यही वजह है कि हम बिना सोचे-समझे खाने लगते हैं क्योंकि आप अपने पेट की संतुष्टि के लिए नहीं खा रहे होते हैं. इसलिए यह कहना मुश्किल होगा कि कितना भोजन खाना पर्याप्त है.
फोकस आपकी भूख पर नहीं बल्कि आपकी भावनाओं पर होता है.
यह आपके हेल्दी होने के प्रयासों को बेकार कर सकता है और वास्तव में आपको भावनात्मक रूप से अस्वस्थ कर सकता है. हालांकि इसमें हम सब के लिए अच्छी खबर ये है कि हम इस बात की पहचान कर सकते हैं और इस पर हम कंट्रोल भी कर सकते हैं.
(प्राची जैन एक साइकोलॉजिस्ट, ट्रेनर, ऑप्टिमिस्ट, रीडर और रेड वेल्वेट्स लवर हैं.)
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Published: 22 Nov 2018,11:15 AM IST