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देश भर में फरवरी से लगभग सभी बोर्ड के एग्जाम शुरू हो जाएंगे. जिन स्टूडेंट को इस बार 10वीं या 12वीं का एग्जाम देना है, वो कुछ ज्यादा ही दबाव महसूस कर रहे होंगे और एग्जाम की डेट नजदीक आते-आते ये दबाव कब स्ट्रेस बन जाए, इसका पता भी नहीं चलता.
आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड डॉ रचना खन्ना सिंह के मुताबिक एग्जाम का स्ट्रेस होना कॉमन है, ये गुड स्ट्रेस का हिस्सा है क्योंकि कुछ पैरामीटर होने चाहिए ताकि हम जिंदगी में आगे बढ़ सकें.
आजकल बढ़ते कॉम्पिटिशन और आगे की पढ़ाई के लिए हाई मेरिट की मांग ने बोर्ड एग्जाम को न सिर्फ स्टूडेंट बल्कि पैरेंट्स के लिए भी हद से ज्यादा तनावपूर्ण बना दिया है. किसी भी एग्जाम में फेल होने या उम्मीद के मुताबिक नंबर्स न ला पाने के डर और निराशा से हर साल हजारों स्टूडेंट सुसाइड करते हैं.
डॉ रचना के मुताबिक पिछले एक दशक से एग्जाम स्ट्रेस से निपटना स्टूडेंट के लिए काफी कठिन साबित हो रहा है.
डॉ रचना बताती हैं कि एग्जाम में घबराहट होना आम है, लेकिन कई स्टूडेंट एग्जाम से पहले इतना बेचैन हो जाते हैं कि पढ़ी हुई चीजें भूलने लगते हैं, जो पढ़ा है, उसे एग्जाम में लिख नहीं पाते हैं. स्ट्रेस हावी हो जाने पर बच्चों को उल्टी, बेहोशी जैसी दिक्कतें तक होने लगती हैं.
मैक्स हेल्थकेयर में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ आशिमा श्रीवास्तव एग्जाम से जुड़े स्ट्रेस की ये वजहें बताती हैं:
डॉ रचना खन्ना सिंह के मुताबिक बच्चों में एग्जामिनेशन का स्ट्रेस कभी-कभी पैरेंट्स के दबाव से होता है, लेकिन अक्सर बच्चों को खुद ही बहुत स्ट्रेस हो जाता है. स्टूडेंट को ये समझना चाहिए कि असल समस्या शुरुआत से पढ़ाई नहीं करना है.
एग्जाम स्ट्रेस से निपटने के लिए बच्चों को सकारात्मक माहौल की जरूरत होती है. ऐसे में पैरेंट्स को ऐसा माहौल बनाने की जरूरत होती है.
डॉ सिंह कहती हैं कि पैरेंट्स को सपोर्टिव होना ही चाहिए. अपने बच्चे से उतनी ही उम्मीद करें, जितनी उसकी योग्यता है.
फोर्टिस हेल्थकेयर में साइकियाट्रिस्ट और फोर्टिस मेंटल हेल्थ काउंसिल के चेयरपर्सन डॉ समीर पारिख ने पैरेंट्स के लिए कुछ टिप्स सुझाए हैं ताकि उनका बच्चा बेहतर परफॉर्म कर सके.
दूसरी सबसे जरूरी चीज डाइट है. ये ध्यान देना चाहिए कि बच्चा रेगुलर इंटरवल पर खाना खा रहा है या नहीं. उसे ज्यादा चाय या कॉफी नहीं देना चाहिए.
डॉ सिंह के मुताबिक एग्जामिनेशन स्ट्रेस से जूझ रहे स्टूडेंट के लिए एंटी एंग्जाइटी काउंसलिंग सबसे अच्छा तरीका होता है. दवाई वगैरह नहीं देने की कोशिश की जाती है. एंग्जाइटी बहुत ज्यादा हाई हो, तभी कोई दवा दी जाती है. इसके अलावा स्ट्रेस और एंग्जाइटी रिलीज करने और एकाग्रता बढ़ाने की कई एक्सरसाइज भी हैं.
डॉ पारिख के मुताबिक बच्चों को समझाना चाहिए कि वे पढ़ाई की चिंता करने की बजाए उसे एन्जॉए करें. बच्चे का कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए पैरेंट्स को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
याद रखें कि अगर आपका बच्चा लगातार टेंशन में रह रहा है और चिड़चिड़ा हो रहा है, दबाव से निपट नहीं पा रहा है, तो आपको उसे किसी एक्सपर्ट के पास जरूर ले जाना चाहिए.
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Published: 27 Dec 2018,01:38 PM IST