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(अक्टूबर माह को स्तन कैंसर के प्रति जागरुकता माह के तौर पर घोषित किया गया है. ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं को होने वाला सबसे प्रमुख कैंसर है. इसके कारण भारत में हर साल करीब एक लाख महिलाओं की मौत होती है.)
अगर आप एक महिला हैं और आप भारत में पली-बढ़ी हैं, तो इसकी पूरी संभावना है कि अपने स्तनों के साथ आपका रिश्ता काफी उलझा हुआ हो. बहुत छोटी उम्र से ही हमें अपने स्तनों को छिपाने और उन पर शर्मिंदगी महसूस करने की आदत डलवा दी जाती है.
युवावस्था से पहले ही ब्रा को लेकर ट्रेनिंग शुरू हो जाती है, उन्हें लोगों की नजरों से छिपाना सिखा दिया जाता और जल्द ही यह ऐसी आदत बन जाती है कि वयस्क होने तक सेफ्टी पिन, स्कार्फ और दुपट्टा कपड़ों की अलमारी का जरूरी हिस्सा बन जाते हैं.
मानव शरीर का एक हिस्सा होने से बहुत दूर, स्तनों को सेक्स से इतना ज्यादा जोड़ दिया गया है कि हम इस बात को भूल ही जाते हैं कि स्तन भी शरीर के बाकी हिस्सों की तरह ही बीमारी के प्रति संवेदनशील होते हैं.
अक्टूबर स्तन कैंसर जागरुकता माह है. इस दौरान उस बीमारी की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश की जाती है, जो भारत में महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है. हर साल ब्रेस्ट कैंसर के करीब 1.4 लाख नये मामले सामने आते हैं. बहुत सी अन्य महिलाओं की तरह, मैं भी इस तथ्य से अनजान थी.
ईमानदारी से कहूं, तो मैंने विज्ञापन देखा, पिंक रिबन मूवमेंट के बारे में सुना और उन पोस्ट को पढ़ा, जिनमें कहा गया: “अगर आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं जो स्तन कैंसर से प्रभावित हुआ है, तो कृपया इस लिंक को शेयर करें”, लेकिन सच कहूं तो मैंने शायद ही कभी स्तन कैंसर के बारे में सोचा. मेरा मतलब है कि मेरी उम्र में वैसे भी यह किसी को नहीं होता है! सही कहा ना?
35 साल, 8 महीने और 7 दिन- यह वही उम्र है जिस दिन डॉक्टर ने मुझे बताया कि मुझे स्तन कैंसर है. एक लंबी कहानी को संक्षिप्त करते हुए बता दूं, साल 2016 के नवंबर में मुझे अपने स्तन में एक गांठ महसूस हुई, लेकिन उस समय अल्ट्रासाउंड और मैमोग्राम से पता चला कि चिंता की कोई बात नहीं है.
फिर भी, मैं कुछ गड़बड़ है, के एहसास से बाहर नहीं निकल पा रही थी. मुझे महसूस हो रहा था कि कुछ सही नहीं है.
बस यही था. यह कहना भी बात को बहुत हल्का करके कहना होगा कि यह खबर सुनते ही मेरे सिर पर आसमान टूट पड़ा.
बीमारी का पता चलने के कुछ दिनों के भीतर ही, मैं 6 घंटे लंबी सर्जरी से गुजरी. मैंने उस दिन अपने डर को गच्चा दिया, ‘वंडर वूमन’ के साउंडट्रैक को सुनते हुए अपने डर को एक नकाब से ढक लिया और एक महाकाव्यात्मक युद्ध में हैल्मेट पहने और भारी हथियारों से लैस सफेद रक्त कोशिकाओं की बटालियन द्वारा ट्यूमर से भिड़ने की कल्पना करने लगी (अपने बचाव के लिए, मेरे पास बहुत सक्रिय कल्पनाशक्ति है).
जब मैं सर्जरी से जागी, तो मैंने अपने सर्जन से पूछा कि क्या अब मैं कैंसर-मुक्त हो गई हूं. लेकिन ऐसी मेरी किस्मत कहां! चूंकि कैंसर मुख्य रूप से स्वस्थ कोशिकाओं के छुट्टा आवारा हो जाने का मामला है, इसलिए डॉक्टरों के पास यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि वे एक और आरामदायक नया ठिकाना बनाने के लिए अब कहां घूम रही होंगी.
कीमोथेरेपी में विशिष्ट दवाओं का इस्तेमाल शामिल होता है, जो शरीर में तेजी से विभाजित हो रही कोशिकाओं के विकास को रोकने के लिए काम करती है.
सवालों से भरी डायरी से लैस, ऑन्कोलॉजिस्ट के साथ मेरी पहली मुलाकात कुछ इस तरह रही.
हालांकि, मुझे सांत्वना दी गई कि हर किसी को एक ही तरह के, एक ही जैसे साइड इफेक्ट नहीं झेलने पड़ते. खोखले साहस से भरी, मैंने खुद को आश्वस्त किया कि मैं उन मजबूत महिलाओं में से एक हूं, जो कीमो से निपट सकती हूं.
कीमो के शुरुआती सत्रों में मुझे “रेड डेविल” नाम की एक दवा दी गई. नाम के अनुरूप यह लाल रंग की थी, बेहद जहरीली और एकदम बुरी.
रेड डेविल के साथ अपने पहले राउंड के दौरान, एक नर्स ने मेरी मदद करते हुए कहा कि अगर इस दौरान मुझे एलर्जी के किसी संकेत का अनुभव हो, जैसे उल्टी, चकत्ते या सांस लेने में कठिनाई, तो मैं उसे सावधान कर दूं. अगर पैनिक अटैक के लिए इतना ही काफी नहीं है, तो फिर शायद मुझे नहीं पता कि पैनिक अटैक क्या होता है.
शुक्र है, मैंने इन साइड इफेक्ट में से किसी का अनुभव नहीं किया लेकिन रेड डेविल का खौफ मेरे में मन में अब तक कायम है!
मैं कीमो के 16 राउंड से गुजरी. अगर मैंने कुछ सीखा, तो वो ये है कि कीमो उतना ही भयानक है, जितना इसके बारे में लोग कहते हैं.
लेकिन जैसा कि जीवन में अधिकांश चीजों के साथ होता है, आप समय के साथ इसके अभ्यस्त हो जाते हैं और आप दवाओं की आदत बना लेते हैं, जो इतनी जहरीली होती है कि वैधानिक चेतावनी (मजाक नहीं!) के साथ आती हैं.
मेरी सर्जरी के लगभग तीन महीने बीतने के बाद भी कई बार ये यकीन करना मुश्किल होता था कि यह सब हकीकत में हो रहा है.
मेरे स्तन कैंसर से पीड़ित होने की खबर मुझ पर और मेरे परिवार पर सुनामी आने जैसी थी.
कुछ हफ्तों बाद, जो कोई भी मेरी बात सुनने को तैयार होता, मैं उससे पूछती... मैं क्यों? मैं जवान हूं, सेहतमंद हूं, शारीरिक रूप से फिट हूं और स्मोकिंग नहीं करती, मैंने क्या गलती की? लेकिन हकीकत यह थी कि ऐसी सिर्फ मैं ही नहीं थी.
भारत में महिलाओं के लिए स्तन कैंसर एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों में से एक के रूप में तेजी से उभर रहा है. जिन डॉक्टरों और सर्जन से मैं मिली, उन्होंने इसका जिक्र एक महामारी या वायरस के रूप में किया.
कुछ लेख जो मैंने पढ़े, उनमें बढ़ते शहरीकरण, पश्चिमी खानपान, एक्सरसाइज की कमी और बढ़ते पर्यावरणीय प्रदूषण को इसका कारण बताया गया.
मैं वास्तव में इसके कारण को कभी नहीं जान सकती, लेकिन इलाज के दौरान मैं बहुत सी महिलाओं से मिली. संपूर्ण और सक्रिय जीवन, परिवार, करियर और महत्वाकांक्षा वाली महिलाएं- मेरी ही तरह अंधेरे में थीं. मैं उनकी कहानियों, हौसले और हिम्मत से अचंभित और प्रेरित हुई.
विश्व में कैंसर की किस्मों में स्तन कैंसर पर काफी शोध हुए हैं.
भारत में, देखभाल और इलाज की सुविधा विश्व स्तर की है, लेकिन अभी भी अच्छे परिणाम के लिए शुरुआत में ही पहचान कर पाना बहुत जरूरी है. अफसोस की बात है कि, इस बीमारी के बारे में बहुत कम जागरुकता है क्योंकि भला या बुरा, स्तन अभी भी एक वर्जित विषय है.
भारत में जिस रफ्तार से स्तन कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, ये काफी गंभीर समस्या है.
आज के भारत की लाखों अन्य महिलाओं की तरह, मैंने भी यह बात बड़ी कीमत चुका कर जानी. स्तन कैंसर गंभीर बीमारी है, अगर समय पर पता नहीं चलता है और जल्दी इलाज नहीं किया जाता है, तो जीवन खतरे में पड़ सकता है. स्तन कैंसर के इलाज में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान लंबा सफर तय कर चुका है और एक या दो दशक पहले के मुकाबले जीवित रहने की दर अब अधिक है.
कई बार जब मैं आइने में देखती और उस औरत को पहचान नहीं पाती, जो दूसरी तरफ से मुझे देख रही होती. उन दिनों में, मैं खुद को याद दिलाती कि ये थोड़े समय के लिए है और जल्द ही मेरा इलाज पूरा हो जाएगा और मुझे उम्मीद है कि उस दिन, मैं कैंसर-मुक्त हो जाऊंगी.
मेरे इलाज के शुरुआती दिनों में, कई लोगों ने मुझे कहा कि मुझे “सकारात्मक” और “मजबूत” बनना चाहिए. वे लोग नहीं जानते कि मैंने तब क्या किया.
इसलिए, अगर आप या किसी को भी इस बीमारी ने प्रभावित किया है, तो कृपया इस ब्लॉग को साझा करें और इस खामोश बीमारी के बारे में जागरुकता फैलाने में मदद करें, जो भारत में लाखों महिलाओं को प्रभावित करती है और अगर आपने पहले से कोई जांच नहीं कराया है, तो कृपया आज ही ब्रेस्ट एग्जाम, अल्ट्रासाउंड या मैमोग्राम करा लें.
(ये आर्टिकल सबसे पहले 10.10.2017 को क्विंट फिट अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया था.)
(मंदाकिनी सूरी नई दिल्ली में रहती और काम करती हैं. वह भारत में सामाजिक विकास के मुद्दों की एक उत्साही पर्यवेक्षक और लेखक हैं. स्तन कैंसर के इलाज के दौर से गुजरने के बाद उन्हें उम्मीद है कि वह इस बीमारी के बारे में अपने लेखन से जागरुकता बढ़ा सकती हैं. अपने खाली समय में वह कुकिंग, डांसिंग और यात्रा करना पसंद करती हैं.)
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Published: 08 Oct 2018,12:58 PM IST