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डेड डोनर से यूटरस ट्रांसप्लांट के जरिए दुनिया में आई पहली बच्ची

पहली बार डेड डोनर से मिले यूटरस ट्रांसप्लांट के बाद एक महिला ने स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है.

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जो महिलाएं यूटरस में किसी प्रॉब्लम की वजह से बच्चे को जन्म नहीं दे सकतीं, उनके लिए एक नई उम्मीद जगी है.
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जो महिलाएं यूटरस में किसी प्रॉब्लम की वजह से बच्चे को जन्म नहीं दे सकतीं, उनके लिए एक नई उम्मीद जगी है.
(फोटो: AP)

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मेडिकल हिस्ट्री में पहली बार एक डेड ऑर्गन डोनर से मिले यूटरस (गर्भाशय) ट्रांसप्लांट के बाद एक महिला ने स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है.

‘लांसेट' जर्नल में पब्लिश की गई एक स्टडी के मुताबिक ये सफल ऑपरेशन सितंबर 2016 में ब्राजील के साओ पाउलो में किया गया था. इससे ये पता चलता है कि इस तरह का ट्रांसप्लांट संभव है और इससे ऐसी महिलाओं को मदद मिल सकती है, जो गर्भाशय में किसी दिक्कत के कारण मां नहीं बन सकती हैं.

मेडिकल जर्नल में बताया गया है कि बच्ची का जन्म दिसंबर 2017 में हुआ. 

अभी तक गर्भाशय की समस्या की शिकार महिलाओं के लिए बच्चा गोद लेना या सरोगेट मां की सेवाएं लेना ही विकल्प था.

जिंदा डोनर से मिले गर्भाशय के जरिए बच्चे का सफलतापूर्वक जन्म कराने की पहली घटना 2014 में स्वीडन में हुई थी. इसके बाद से 10 और बच्चों का इस तरह से जन्म कराया गया है. हालांकि, संभावित जीवित दाताओं की तुलना में ट्रांसप्लांट की चाह रखने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है.

इसलिए डॉक्टर्स ये पता लगाना चाहते थे कि क्या किसी मृत महिला के यूटरस का इस्तेमाल करके इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है या नहीं.
10 घंटे से अधिक समय तक चला था ऑपरेशन(फोटो: AP)

बुधवार को इस सफलता की जानकारी दिए जाने से पहले अमेरिका, चेक गणराज्य और तुर्की में 10 प्रयास किए गए.

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मेडिकल हिस्ट्री में मील का पत्थर

बांझपन (इनफर्टिलिटी) से 10-15% कपल्स प्रभावित होते हैं. इनमें से 500 महिलाओं में 1 महिला गर्भाशय की समस्या से पीड़ित रहती है.

साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के अस्पताल में पढ़ाने वाले डॉक्टर डानी एजेनबर्ग कहते हैं, ‘‘हमारे नतीजे गर्भाशय की समस्या की वजह से संतान पैदा कर पाने में अक्षम महिलाओं के लिए नए विकल्प का सबूत देते हैं.'' उन्होंने इस प्रक्रिया को ‘मेडिकल हिस्ट्री में मील का पत्थर' बताया.

डोनर से यूटरस प्राप्त करने वाली 32 साल की महिला एक किस्म के सिंड्रोम की वजह से बिना यूटरस के पैदा हुई थी. उसके यूटरस ट्रांसप्लांट के चार महीने पहले इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन से आठ फर्टिलाइज्ड एग्स मिले, जिन्हें फ्रीज करके संरक्षित रखा गया.

यूटरस डोनेट करने वाली महिला 45 साल की थी. जिसकी स्ट्रोक से मौत हुई थी. उस महिला का गर्भाशय ऑपरेशन के जरिए निकाल कर दूसरी महिला में ट्रांसप्लांट किया गया.

ये ऑपरेशन 10 घंटे से अधिक समय तक चला. ऑपरेशन करने वाली टीम ने डोनर के यूटरस को उस महिला की धमनी, शिराओं, लिगमंट और वेजाइनल कैनाल से जोड़ा.

महिला का शरीर नए अंग को अस्वीकार न कर दे, इसके लिए उसे पांच अलग-अलग तरह की दवाएं दी गईं. पांच महीने बाद शरीर में नए यूटरस के रिजेक्शन का कोई संकेत नहीं मिला. महिला का अल्ट्रासाउंड नॉर्मल रहा और उसे नियमित रूप से माहवारी आती रही.

सात महीने बाद फर्टिलाइज्ड एग्स को इंप्लांट किया गया. इसके दस दिन बाद डॉक्टर्स ने खुशखबरी दी कि महिला प्रेग्नेंट है.
मां और बच्ची दोनों स्वस्थ हैं.(फोटो: AP)

किडनी में मामूली संक्रमण के अलावा 32 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के दौरान सब कुछ नॉर्मल रहा. करीब 36 हफ्ते के बाद ऑपरेशन के जरिए महिला ने एक बच्ची को जन्म दिया. जन्म के समय बच्ची का वजन ढाई किलोग्राम था. किडनी में इंफेक्शन का एंटीबायोटिक के जरिए इलाज किया गया. तीन दिन बाद मां और बच्ची को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई.

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फर्टिलिटी सोसाइटीज के अध्यक्ष रिचर्ड केनेडी ने इस घोषणा का स्वागत किया, लेकिन इसको लेकर आगाह भी किया. उन्होंने कहा, ‘‘गर्भाशय का प्रतिरोपण नई तकनीक है और इसे प्रयोगात्मक रूप में लिया जाना चाहिए.''

(इनपुट-एपी)

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