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Gym Safety Tips: जिम में ‘वर्क आउट’ की जो धारणा है, उसके मुताबिक किसी को तब तक कसरत करना होता है जब तक वह बिल्कुल थक कर चूर न हो जाए. ‘वर्क आउट’ शब्द का अर्थ ही यही है. अपनी पूर्व स्वीकृत क्षमताओं को चुनौती देते हुए, उन्हें पीछे धकेलते हुए, दीवारों को तोड़ते हुए लगातार मेहनत करते जाना. इसके विपरीत आयुर्वेद कहता है, 'व्यायाम अपनी दैहिक क्षमता के हिसाब से और उम्र के आधार पर करना चाहिए.'
यदि आप रोज़ 10 कि.मी. चल सकते हैं तो आयुर्वेद के हिसाब से आपको सिर्फ 5 कि.मी. चलना चाहिए. फिर आपकी क्षमता जब 12 कि.मी. हो जाए तो आप छह कि.मी. चलना शुरू कर सकते हैं. देह पर हमला कर देने का दस्तूर नहीं है. ऐसा नहीं कि सेहत बनाने के चक्कर में उसे बिगाड़ने में ही लग जाएं.
जिम में कसरत करते हुए पिछले कुछ दिनों में कई लोगों की मौत हुई. कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव समेत फिल्म और टीवी की दुनिया के कई सिलेब्रिटीज असमय चले गए. उसके बाद भी जिम में ट्रेनर और अन्य मशहूर लोगों के मरने की खबरें आईं. टीवी एक्टर सिद्धांत सूर्यवंशी भी पिछले हफ्ते जिम सेशन के बाद चल बसे और हाल ही में नासिक में एक युवक की जिम में मौत हुई. हैदराबाद में तो एक नवयुवक पर डमबेल गिर गए और उसकी मौत हो गई. इस पर विचार करना जरूरी है कि, जिस काम को लोग अपनी बेहतरी के लिए, अच्छे स्वास्थ्य के लिए करते हैं, वही काम जानलेवा कैसे बन जाता है.
धरती पर इंसान हजारों सालों से रहा है पर जिम और मशीनों की मदद से कसरत करना बहुत हाल में ही शुरू हुआ है. मानव देह को इस तरह की कसरत की अभी आदत नहीं पड़ी. पहले शिकार, खेती वगैरह के काम करते हुए, एक जगह से दूसरी जगह जाते समय ही इतनी मेहनत हो जाया करती थी, कि अलग से व्यायाम करने की धारणा ही नहीं थी. जिम में या मशीनों पर अलग से व्यायाम करने की धारणा शुरू हुई औद्योगीकरण की एक और रुग्ण संतति के रूप में. दफ्तर में और घरों में काम करने वाले एक ही तरह की गतिविधि करते हुए या बैठे-बैठे काम करते हैं.
इसे सेडेंट्री जीवन शैली कहते हैं. ऐसे लोगों को अलग से कसरत की जरूरत पड़ती है. जिम में तरह तरह की मशीनों के बीच खुद को झोंक देने से देह की लय अचानक बदल जाती है और उसके दुष्प्रभाव भी होते हैं.
जिम में आप क्या करते हैं, उससे ज्यादा जरूरी है यह देखना कि जिम जाने से पहले और जिम से लौट कर आप का जीवन कैसा होता है. क्या बाकी समय आप बैठ कर ही बिताते हैं? क्या आप बाकी समय जंक फ़ूड वगैरह खाते हैं? या फिर कोई ऐसा नशा करते हैं जो आपके शरीर को भीतर से कमजोर कर रहा है? शराब पीने, स्मोकिंग करने और जिम में अचानक मौत होने का संबंध है. शराब और निकोटिन धमनियों को सख्त बनाते हैं. जिम में कसरत से दिल की धड़कने तेजी से बढ़ती हैं. पहले से सिकुड़ी हुई धमनियों के लिए य जबरदस्त कसरत ऐसा आक्रमण होता है जिसे कभी कभी वे बर्दाश्त नहीं कर पातीं. दिल ऐसे में बैठ जाता है.
फिल्मों में काम करने वाले एक्टर्स जिम में जाने के लिए अक्सर लोगों को प्रेरित करते हैं. अक्सर मैंने पढ़ा है कि फलां सुपर स्टार रात को दो बजे भी जिम में कसरत करता है. उसकी पूरी जीवन शैली जाने बगैर उसके जीवन के एक ही पहलू का अनुकरण करना किसी साधारण इंसान के लिए घातक हो सकता है. फिल्म के एक्टर्स को अलग तरह के दबावों में काम करना पड़ता है. किसी फिल्म के लिए दस किलो वजन कम करना होता है और किसी फिल्म के लिए बारह किलो वजन घटाना पड़ता है. उनकी कमाई और शोहरत इससे जुड़ी होती है. उनकी देखा देखी न चलें.
कोई भी कसरत अचानक शुरू नहीं कर देनी चाहिए. यदि आप ट्रेडमिल पर दौड़ रहे हैं, तो जरूरी है कि पहले वार्म अप करें. देह का तापमान थोडा बढ़ने दें. इसके बाद ही कोई ज्यादा जबरदस्त व्यायाम में लगें. अक्सर लोग इसे भूल जाते हैं. सीधे मशीनों पर कूद पड़ते हैं.
बेहतर होगा कि, जिम में जाने से पहले हल्का ब्रेकफास्ट कर लें. जिम ज्वाइन करने से पहले जिम के किसी अनुभवी ट्रेनर और प्रबंधकों को अपनी मेडिकल कंडीशन के बारे विस्तार से बताएं, कोई बात छिपाएं नहीं. खास कर यदि आपको ब्लड प्रेशर या दिल से संबंधित कोई बीमारी हो. जिन्हें मधुमेह की बीमारी हो उन्हें साथ में कोई कैंडी या मीठी चीज जेब में रखनी चाहिए. शुगर लेवल अचानक कम हो जाए तो हाइपोग्लाइसीमिया का शिकार होने के बहुत गंभीर खतरे हैं. व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है और उसे स्ट्रोक भी हो सकता है.
सबसे जरूरी है कि अपनी देह के साथ बातचीत करना सीखना चाहिए. उसे सुनना समझना चाहिए. देह क्लांत हो जाए, ज्यादा थक जाए, कोई नई और अजीब हरकत दिखाई दे तो तुरंत सजग हो जाना चाहिए. मन के हिसाब से नहीं चलना चाहिए. देह ज्यादा सच बोलती है. यदि वह तरोताजा महसूस करती है तो कसरत करें. यदि वह थकी है तो विश्राम करें. मन की जिद झूठी होती है. देह हमेशा सच कहती है. इसका ध्यान रखना जरूरी है.
जिम में ओवरट्रेनिंग सिंड्रोम एक सामान्य बात होती है. यदि दो सत्रों के बीच पर्याप्त विश्राम न किया जाए तो इससे मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है. वे टूटती हैं और इसलिए जिम में ट्रेनर अक्सर सप्लीमेंट लेने का सुझाव देते हैं. इन सप्लीमेंट का एक विराट बाजार है और इनमें ऐसे रसायन भी हो सकते हैं, जिसने आपको फायदा कम और नुकसान अधिक हो सकता है. उन्हें सोच समझ कर किसी डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए. ऐसा नहीं है कि जिम के फायदे नहीं हैं. यदि मशीने अच्छी हालत में हों, और ट्रेनर समझदार हो. कुछ लोगों की मौत को लेकर कोई गलत छवि भी नहीं बना लेनी चाहिए जिम को लेकर, पर सावधानी की जरूरत तो है ही.
देह के प्रति रहमदिल बने रहें. उसे आलसी तो न बनने दें, पर उस पर अनावश्यक बोझ भी न डालें. वह खुद आपको बताएगी कि आपको उसकी सेहत के लिए कब और कितनी कसरत करनी है. देह ही अपनी प्रज्ञा होती है. दूसरों की देखा देखी कुछ करने की आदत मन की होती है. देह को सुनें, उसकी प्रज्ञा पर भरोसा रखें. वह अचानक बगैर किसी गंभीर कारण के, धोखा नहीं देगी.
समय बदले, उम्र बढे, तो रोज टहलना बहुत ही अच्छा व्यायाम है. बस टहलने की गति कम या ज्यादा करते रहें. चालीस की उम्र के बाद, हफ्ते में चार दिन, चालीस मिनट टहलने पर सभी सेहत विशेषज्ञ और चिकित्सा विज्ञान सहमत हैं. इसके लिए न ही किसी मशीन की दरकार है और न ही किसी ट्रेनर की. बस बढ़िया जूते हों, और लंबी सड़क और जब कुछ न हो, तो घर की बालकनी या छत ही इस काम के लिए काफी है.
बस समय और गति पर ध्यान रखा जाए.
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