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Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कैसे चलती है ‘खुशियों की क्लास’?

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कैसे चलती है ‘खुशियों की क्लास’?

आखिर इन क्लासेज में होता क्या है?  इस वीडियो के जरिए खुद अटेंड कीजिए हैप्पिनेस क्लास.

रोशीना ज़ेहरा
फिट
Updated:
ये खुशियों की क्लास है
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ये खुशियों की क्लास है
(फोटो: फिट)

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दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने 2 जुलाई, 2018 को आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मौजूदगी में अपने हैप्पीनेस कार्यक्रम का उद्घाटन किया.

टीचर्स को तीन दिन के ओरिएंटेशन के बाद 15 जुलाई से 'खुशियों की क्लास' शुरू की गई. इसके तहत दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए एक 'हैप्पीनेस पीरियड' का प्लान तैयार किया गया है.

एक्टिविटी पर आधारित इस करिकुलम की कोई औपचारिक परीक्षा नहीं कराई जाएगी.

इस पाठ्यक्रम को चार हिस्सों में बांटा गया है:

  1. माइंडफुलनेस
  2. कहानी सुनाना
  3. कोई एक्टिविटी जैसे चित्रकारी
  4. पूरे हफ्ते बच्चों ने माइंडफुलनेस से क्या सीखा, ये अनुभव जाहिर करना.

लेकिन आखिर ये क्लासेज चलती कैसे हैं? ये जानने के लिए मैंने खुद एक क्लास अटेंड की.

इस क्लास में एक माइंडफुलनेस एक्सरसाइज कराई गई, जिसमें स्टूडेंट को अपनी आंख बंद करके आसपास की आवाज पर ध्यान केंद्रित करना था. इस एक्सरसाइज के बाद उन्हें नैतिक शिक्षा देने वाली एक कहानी सुनाई गई.

सच कहूं तो सरकारी स्कूल के बारे में मेरे दिमाग में टूटे फर्नीचर और कमजोर प्रशासन की तस्वीरें आती हैं, लेकिन मुझे ये देखकर ताज्जुब हुआ कि ये स्कूल न ही सिर्फ अच्छी हालत में है बल्कि यहां हैप्पीनेस क्लास भी बहुत अच्छी तरह चल रही है.

अभी ये साफ नहीं है कि दिल्ली के कितने सरकारी स्कूल अच्छे से चल रहे हैं, खासकर हैप्पीनेस क्लास, लेकिन अगर एक भी सरकारी स्कूल इस लेवल तक पहुंचता है, तो ये अपने आप में एक बड़ी बात होगी.
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हैप्पीनेस क्लास की जरूरत क्यों है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 13 से 15 की उम्र में हर 4 में से 1 बच्चा डिप्रेशन से जूझता है. सस्टैनबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क डेटा के मुताबिक साल 2018 के वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में 156 देशों में भारत 133वें पायदान पर था.

हम बच्चों को चिंता से चल रही दुनिया में ला रहे हैं. लैंसेट की 2012 में आई एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में किशोरों की आत्महत्या दर दुनिया भर में सबसे ज्यादा है.

इसलिए बच्चों को ऐसा माहौल देने की जरूरत है, जहां उनका सामाजिक और भावनात्मक विकास हो सके.
अतिशि मर्लेना, पूर्व शिक्षा सलाहकार 

पूर्व शिक्षा सलाहकार अतिशि मर्लेना कहती हैं, शिक्षा बस बच्चों के नंबर्स तक सीमित नहीं हो सकती है. शिक्षा इस बारे में भी है कि स्कूल से बच्चे बेहतर इंसान बन कर निकलें.

खुशियों के इस करिकुलम में अपार भावनाएं नजर आ रही हैं, लेकिन ये वक्त ही बताएगा कि ये कितना सफल और असरदार होगा.

एडिटर: प्रशांत चौहान

कैमरा: अतहर

सहायक: सुमित बडोला

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Published: 16 Oct 2018,07:50 AM IST

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