अत्याधिक लीड होने के आधार पर मैगी को प्रतिबंधित करने के बाद अब फूड सेफटी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) कैफीन की अधिकता वाले पेय को भी प्रतिबंधित कर सकता है.

एफएसएसआई ‘कंजप्शन पैटर्न ऑफ कैफिनेटेड/ एनर्जी ड्रिंक्स’ नामक अपने शोध में कैफीन युक्त पेय पर अध्ययन शुरू कर चुका है. कैफीनु युक्त पेय को पानी पर आधारित अल्कोहल रहित पेय की श्रेणी में रखा जाता है और इसमें इसकी सीमा 140 एमजी प्रति लीटर से 320 एमजी प्रति लीटर तक ही निर्धारित है.

ऐसे कई अल्कोहल रहित पेय हैं जिनमें कैफीन, गुआराना, ग्लूरोनोलैक्टोन, टॉराइन, जिनसेंग, इनोसिटोल, कार्निटिनिया, बी विटामिन्स का इस्तेमाल होता है

कोला की भी होगी जांच?

  • एफएसएसएआई अब पेय पदार्थों में कैफीन की मात्रा पर जांच कर रहा है.
  • यह संस्था अलग उपभोक्ताओं के अलग-अलग समूहों और सेवन से संबंधित अध्ययन करेगी.
  • यह शोध कोला व अन्य अल्कोहल रहित पेयों का तुलनात्मक अध्ययन भी करेगा.
  • इन पेयों के फायदों और नुकसान पर भी अध्ययन होगा.

खाद्य नियामक का बढ़ता जाल

एफएसएसएआई अपने शोध में 15 साल से 45 साल की आयु वाले युवाओं के अलग-अलग समूहों जैसे छात्र, युवा कर्मी, प्रबंधक आदि को शामिल कर रहा है. इसमें दोनों लिंग के लोग भाग लेंगे.

शोध का उद्देश्य अल्कोहल रहित पेय में कैफीन की मात्रा के अलावा, इसके सेवन संबंधी व्यवहार, गुणवत्ता, बच्चों, किशोरों और युवाओं पर इसके प्रभाव से संबंधित तथ्यों का पता लगाना है. साथ ही, इन पेयों के फायदे- नुकसान पर पहले हो चुकी आलोचना व समीक्षा के आधार पर अध्ययन होगा.

(फोटो: iStock)
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पहले भी हुए हैं कई विवाद

पहले भी कुछ पेयों पर नुकसानदायक तत्व पाए जाने के आरोप लग चुके हैं. कुछ प्रयोगशालाओं ने अपनी जांच के आधार पर ये आरोप लगाए जरूर थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने विषाक्त पदार्थों की सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए. अब एफएसएसएआई ने फिर से अल्कोहल रहित पेयों की जांच करने का मन बनाया है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कैफीन की अधिकता वाले उत्पादों का सेवन सेवन तेजी से बढ़ रहा है और इसका बड़ा उपभोक्ता वर्ग है.

कुछ शोधों में चाय, कॉफी और सॉफ्ट ड्रिंक्स में मौजूद कैफीन की मात्रा को सेहत के लिए नुकसानदायक माना गया है और एक ग्लास पेय में 80 एमजी कैफीन की मात्रा का दावा किया है. इसके अलावा, इसमें घुलनशील विटामिन जैसे नायसिन, पैथोनेटिक एसिड, विटामिन बी6 और बी12, अमीनो एसिड का इस्तेमाल होता है.

(फोटो: iStock)

स्ट्रोक का बढ़ता रिस्क

आस्ट्रेलिया के रॉयल एडीलेड हॉस्पिटल के कार्डियोवास्कुलर रिसर्च सेंटर के अगस्त, 2008 के शोध में पाया गया है कि एनर्जी ड्रिंक के सेवन से स्ट्रोक और दिल के दौरे का खतरा बढ़ता है. माना जाता है कि रेड बुल के अधिक सेवन से खून के जमने का रिस्क बढ़ रहा है.

जॉन हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन के न्यूरोसाइंटिस्ट की अध्यक्षता में 100 वैज्ञानिकों ने अमेरिकी के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को अपनी याचिका में दावा किया है कि एनर्जी ड्रिंक के अथ्याधिक सेवन से कैफीन औऱ विषैले तत्वों की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है. हालांकि एफडीए इसे सुरक्षित मानता है.

भाजपा सरकार की अध्यक्षता में एफएसएसएआई ने इस शोध का निर्णय लिया है औऱ फलों के रस को टेट्रा पैक व छाछ के सेवन पर बल दिया है. पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पेप्सी और कोका कोला जैसी कंपनियों को अपने पेय में फलों का रस मिलाने की सलाह दी थी.

उन्होंने कहा था कि लाखों लोग पेप्सी और कोका कोला खरीदते हैं. मैंने कंपनियों से बात की है कि अगर वे अपने पेय में फलों के रस का इस्तेमाल करें तो किसानों को भी फायदा होगा और उन्हें अपने फल फेंकने नहीं पड़ेंगे.

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