22 अक्टूबर को रिलीज हुई फिल्म शानदार से बहुत अधिक की उम्मीद तो पहले भी नहीं थी. डेस्टिनेशन वेडिंग पर आधारित किसी फिल्म से कुछ खास और अनूठे की उम्मीद करना वैसे भी बेमानी सा लगता है.
फिल्म में कुछ अलग है तो बस ये कि फिल्म की सुपर क्यूट हीरोइन आलिया भट्ट और उनके साथ परफेक्ट मैच नजर आने वाले शाहिद कपूर दोनों ही नींद न आने के शिकार हैं. वैसे तो नींद न आना या नींद से जुड़ी कोई और परेशानी होना एक गंभीर स्वास्थ्य-समस्या है लेकिन फिल्म में यही हेल्थ प्रॉब्लम हीरो-हीरोइन के प्यार की नींव है.
अगर आप भी शहर में रहने वाले उन 35 फीसदी लोगों में से एक है जिन्हें नींद की समस्या है, तो हो सकता है कि इस बीमारी से जुड़े कई भ्रामक तथ्य आपको भी परेशान करते हों.
जी हां, इस बीमारी को लेकर कई तरह की अफवाहें इस कदर फैली हुई हैं कि ज्यादातर लोगों को वही सच लगती हैं, जबकि पीड़ित की असली समस्या तो लोगों को पता ही नहीं होती.
यहां हम आपको ऐसी ही पांच समस्याओं के बारे में बता रहे हैं जिससे इस बीमारी का रोगी गुजरता है:
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि ये अजीबोगरीब बीमारी अव्यवस्थित लाइफस्टाइल, देर रात तक पार्टी करने और बहुत अधिक मात्रा में कैफीन लेने के कारण होती है.
नींद न आने की बीमारी से पीड़ित मरीजों को घड़ी हमेशा मुंह चिढ़ाती हुई नजर आती है. इस बीमारी से पीड़ित शख्स सेकंड-सेकंड पर घड़ी देखता है. घड़ी उसे अपनी दुश्मन लगती है.
उन लोगों से जलन होती है जिन्हें कहीं भी, कभी भी नींद आ जाती है. अनिद्रा के मरीज के लिए नींद किसी वैम्पायर की नींद की तरह हो जाती है और जब वह बिस्तर पर चैन की तलाश में पहुंचता है तो आराम नहीं मिलता.
इस बीमारी में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने अपना डिनर कब किया या फिर आपने अपने कमरे की लाइट कितनी जल्दी बंद कर ली थी.
नतीजा यह होता है कि कई बार तो दिमाग काम करना ही बंद कर देता है.
वैसे मुफ्त की सलाहें तो हर बीमारी में मिलती हैं पर अनिद्रा के मरीज को कई तरह की सलाह दी जाती है.
मसलन, फलां दवाई से तुम्हारी ये बीमारी दूर हो जाएगी. हल्का खाना खाया करो, नींद अच्छी आएगी. स्मार्ट फोन से थोड़ी दूरी बनाकर रखो आराम मिलेगा और सबसे मजेदार यह कि कई लोग लैवेंडर की खुशबू वाली तकिया लगाने तक की सलाह भी दे देते हैं.
पर यह सब कुछ बेकार साबित होता है. शरीर बुरी तरह थका होता है और दिमाग अपनी चलाने पर अड़ा रहता है.
मरीज के साथ ही घरवालों को भी एक बीमारी हो जाती है, कंफ्यूज रहने की. उन्हें ये समझ नहीं आता है कि आखिर बीमार को नींद क्यों नहीं आ रही है और अगर नींद नहीं आ रही है तो वो बेचारा काम कैसे करेगा. वे अपनी तरफ से हर कोशिश करते हैं.
मरीज को एक मुलायम सा तकिया गिफ्ट करते हैं, कुछ अच्छे और सॉफ्ट म्यूजिक कलेक्शन देते हैं पर फायदा...बिस्तर की हर सिलवट उसे पागल करने लगती है और अंधेरे कमरे में हर परछाई उसे भूत के होने का एहसास कराती है.
जिसके बाद मरीज का दिमाग रौशनी की तेजी से दौड़ने लगता है और वह ऑफिस में बचे हुए काम के बारे में सोचने लगता है.
रात होने के साथ ही इस बीमारी से जूझ रहे शख्स का दिमाग जोड़ने-घटाने में उलझ जाता है. हर रात उसे एक ही ख्याल आता है कि वो अगर अभी सोने गया तो कितने घंटे सो पाएगा. क्या जब अलार्म बजेगा तो वो समय से उठ पाएगा या नहीं.
हर रोज यही खेल खेलते, सोचते, जोड़ते-घटाते, उस राक्षस का पीछा करते नींद न आने से परेशान मरीज बिस्तर पर पहुंचता है और सारी जद्दोजहद करके आंख बंद करता है. पर इससे पहले कि सपनों वाली नींद आए सुबह का अलार्म बज जाता है...और फिर सुबह हो जाती है.
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