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नए साल की शुरुआत हो चुकी है, साल 2018 बीत चुका है और हम एक और दशक के अंत की ओर भी बढ़ रहे हैं.
यह तेजी से साफ हो रहा है कि मिले-जुले मार्केटिंग संदेशों के हमलों, लगातार नए फूड प्रोडक्ट्स और दिलचस्प इनोवेशंस की बढ़ती लिस्ट, भ्रमित और लगातार बदलती न्यूट्रिशन रिसर्च, अपने आराम और सुविधा को लेकर जबरदस्त बदलाव के बीच अपनी सेहत को (यहां तक कि अपने विवेक को भी) बचाना एक कठिन काम है. इन सबके बावजूद मैं ये कहती हूं कि सही और खराब खाने में सही चीजों को चुनने के लिए एक खास कौशल की जरूरत होती है.
यहां खाने की चीजों के चुनाव के लिए ऐसे पांच कौशल के बारे में बताया जा रहा है, जिसके जरिए साल 2019 में आपको फिट और हेल्दी रहने में मदद मिल सकती है.
सभी शुगर एक तरीके से नहीं बनाए जाते हैं. अमेरिका में (उम्मीद है कि भारत में भी जल्द ही) एक नई चीज आई है कि कंपनियों को फूड लेबल पर एडेड और नैचुरल रूप से मौजूद शुगर के बीच अंतर करने के लिए कहा गया है. यह एक अच्छी बात है, इनके बीच अंतर जानना जरूरी भी है.
फूड में मौजूद नैचुरल शुगर का हिस्सा, उतना हानिकारक नहीं होता है.
मेकैनिकल और केमिकल प्रोसेसिंग के बीच अंतर करना सीखना महत्वपूर्ण है. समस्या मेकैनिकल प्रोसेसिंग (उदाहरण के लिए किसी भोजन को पीसना और पैक करना) नहीं है, बल्कि केमिकल प्रोसेसिंग है, जिसमें आर्टिफिशियल केमिकल के प्रयोग के जरिए स्वाद में सुधार, लंबे समय तक रखने योग्य बनाने, दुर्गंध दूर करना या गंधहीन बनाना, दूसरे तत्वों की कमी को पूरा करना (जैसे फैट फ्री फूड में शुगर), ब्लीचिंग और कॉस्ट कटिंग शामिल है. प्रिजर्वेटिव्स, कलरेंट्स, फ्लेवर एडर्स और टेक्सचरेंट्स ऐसे एडिटिव्स हैं, जो परेशानी पैदा करते हैं.
हम हर समय ओमेगा 3 के महत्व के बारे में पढ़ते हैं क्योंकि ये बहुत मूल्यवान पोषक तत्व हैं. लेकिन ओमेगा 3 के बारे में सब कुछ जानने के अलावा, इसके समकक्ष ओमेगा 6 के बारे में जानना भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि दुर्भाग्य से हम सभी अनजाने में इसका बहुत अधिक मात्रा में उपभोग कर रहे हैं. यह तेजी से स्पष्ट हो रहा है कि हृदय रोग, हाइपरटेंशन, डायबिटीज, मोटापा, जल्दी बूढ़ा होना और यहां तक कि कैंसर के कुछ रूपों का एक बड़ा कारण ओमेगा -6 और ओमेगा -3 फैटी एसिड को सही अनुपात में नहीं लेना है.
इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि ओमेगा 3 के सेवन को न केवल बढ़ाया जाए, बल्कि हमारे भोजन में ओमेगा -6 फैट की मात्रा को भी कम किया जाए. ओमेगा 3 के सोर्स (वसायुक्त मछली, फ्लैक्स सीड्स, अखरोट) को बढ़ावा देने और वनस्पति तेलों के कम उपयोग, हाइड्रोजनीकृत या आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत फैट, कृत्रिम मक्खन, पैकेज्ड फूड प्रोडक्ट्स में कटौती से ओमेगा 6 की मात्रा को कम किया जा सकता है.
हमारे शरीर को हर रोज सिर्फ 500 मिलीग्राम सोडियम की आवश्यकता होती है. एक वयस्क के लिए रोजाना लगभग 2,400 मिलीग्राम तक सेवन भी स्वीकार्य है. फिर भी, हममें से ज्यादातर अक्सर आसानी से एक दिन में लगभग 3,000 - 4,000 मिलीग्राम सोडियम कंज्यूम करते हैं. यह बहुत अधिक है और इसका ज्यादातर हिस्सा हमारे द्वारा खाए जाने वाले प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स में छिपा होता है.
हम कितना कैफीन कंज्यूम करते हैं, ये भी जानना जरूरी है. अधिक कैफीन हमारे लिए बहुत बुरा हो सकता है क्योंकि इससे बार-बार पेशाब लगती है और इस तरह ये बॉडी को डिहाइड्रेट करता है.
रोजाना 4 कप से ज्यादा कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए. कॉफी और चाय दो सबसे प्रमुख स्रोत हैं, लेकिन ये चॉकलेट, कॉफी आइसक्रीम, हाई एनर्जी वाले स्पोर्ट्स ड्रिंक्स और फ्रोजन दही में भी पाया जाता है.
याद रखें कि आइस्ड टी में भी कार्बोनेटेड कोला जितनी चीनी और कैफीन हो सकता है. कई ओवर-द-काउंटर (बिना डॉक्टरी सलाह के मेडिकल स्टोर से खरीदी जाने वाली) और प्रिस्क्रिप्शन दवाओं में कैफीन होता है.
(लेखिका दिल्ली में रहने वाली एक न्यूट्रिशनिस्ट, वेट मैनेजमेंट कंसल्टेंट और हेल्थ राइटर हैं. इन्होंने दो किताबें Don’t Diet! 50 Habits of Thin People (Jaico) औरUltimate Grandmother Hacks: 50 Kickass Traditional Habits for a Fitter You (Rupa) लिखी हैं.)
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