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बच्चों की बेदाग, नरम, लचीली और दमकती त्वचा देखने लायक होती है. हम सभी का जन्म ऐसी ही शानदार त्वचा के साथ होता है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ यह अपना आकर्षण खो देती है.
शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य, तनाव, उम्र और हमारा वातावरण त्वचा के स्वास्थ्य में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. हालांकि, इन वजहों के बावजूद हम अपनी त्वचा और इस पर उम्र के असर को सकारात्मक तरीके से बेअसर कर सकते हैं.
किसी अन्य अंग की तरह त्वचा भी लाइफस्टाइल के तौर-तरीकों पर निर्भर करती है. जंक फूड, एक्सरसाइज का अभाव, नींद का अनियमित पैटर्न और तनाव स्वास्थ्य और त्वचा पर नकारात्मक असर डालते हैं. हालांकि उम्र बढ़ने को टाला नहीं जा सकता है, मगर त्वचा की ठीक से देखभाल उम्र बढ़ने के असर का मुकाबला करने में मदद कर सकती है.
त्वचा सेहत का आइना है. त्वचा में निखार लाना एक अंदरूनी काम है. अगर सेहत से समझौता किया जाता है, तो त्वचा पर ऊपर से की जाने वाली कोई भी कवायद असरदार नहीं हो सकती है.
आयुर्वेद त्वचा की सेहत के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने को कहता है. यह शारीरिक, मानसिक और पर्यावरणीय कारकों को शामिल करता है. डॉ प्रतिमा रायचुर, जो कि एक मशहूर आयुर्वेदिक स्किन केयर विशेषज्ञ हैं, अपनी पुस्तक “एब्सोल्यूट ब्यूटी: रेडिएंट स्किन एंड इनर हार्मनी थ्रू द एनशिएंट सीक्रेट ऑफ आयुर्वेद” में बताती हैं:
जब आयुर्वेदिक चिकित्सक त्वचा की समस्या देखते हैं, तो वह वह सिर्फ लक्षण को नहीं देखते, बल्कि उस व्यक्ति का निरीक्षण करते हैं, जिसे यह समस्या है.
आइए जानते हैं, आयुर्वेदिक तरीके से किस तरह त्वचा की देखभाल की जा सकती है:
आयुर्वेदिक डाइट तीन दोषों- वात, कफ और पित्त जिसे किसी भी व्यक्ति की प्रकृति के रूप में जाना जाता है, छह मौसम और छह स्वाद पर निर्भर करती है.
यह ताजा, ऑर्गेनिक और हल्के पके खाने पर जोर देता है और हर खाने में मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़वा और कसैला जायका शामिल करता है.
यह पाचन के लिए छाछ का सुझाव देता है और जलन को कम करने, लचीलेपन को बढ़ावा देने, पाचन में सुधार और इम्यून सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए घी खाने की सिफारिश करता है.
तनाव ‘पलायन और संघर्ष’ प्रतिक्रिया को ट्रिगर करता है और कॉर्टिसोल हार्मोन को बढ़ाता है. लगातार तनाव से शरीर बहुत ज्यादा कॉर्टिसोल हार्मोन रिलीज करता है जिससे त्वचा धब्बेदार, संवेदनशील हो जाती और शरीर में फुंसी और मुहांसे निकल सकते हैं.
सकारात्मक सोच सेहतमंद और ठीक रहने में मददगार होती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि खुशहाल, खुश, रहमदिल और उल्लास से भरे विचारों से सुखद भावनाएं पैदा होती हैं, जो कॉर्टिसोल को कम करती हैं और हमारे सिस्टम को शांत करने के लिए सेरोटोनिन को बढ़ावा देती हैं.
हमें अपने रूप को संवारने के लिए अपने विचारों, भावनाओं और आदतों को बदलना होगा.
नियमित रूप से ध्यान करना बेकार के विचारों को शांत करने में मदद करता है और दिमाग को आनंद व आशावाद की तरफ मोड़ता है.
आयुर्वेद को पूर्ण करने वाले विज्ञान योग शास्त्र का दावा है कि, सबसे अच्छा सौंदर्य प्रसाधन गहरी सांस है. धीमी गहरी सांस लेने के साथ लंबी सांसें छोड़ना फेफड़ों की कार्बन डाइऑक्साइड को साफ करता है जिससे ज्यादा ऑक्सीजन लेने का मौका मिलता है. यह बढ़ी हुई ऑक्सीजन त्वचा में दमक पैदा करती है.
आयुर्वेद प्राकृतिक और ऑर्गेनिक ब्यूटी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है.
आयुर्वेदिक उबटन, जड़ी-बूटियों, आटे और फलियों से बने पेस्ट, क्लींजे, एक्सफोलिएट, त्वचा पर बिना केमिकल्स लगाए प्राकृतिक रूप से पोषण देते हैं और मॉइस्चराइज करते हैं.
शरीर को ठीक रखने के लिए चलना-फिरना जरूरी है. नियमित व्यायाम से त्वचा में रक्त संचार बढ़ता है और रंगत में निखार आता है. यह लिम्फैटिक (लसीका) सिस्टम की सक्रियता बढ़ा कर लिम्फैटिक के बहाव को बढ़ाता है और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है.
हालांकि एक्सरसाइज का कोई भी रूप फायदेमंद है, फिर भी योग का समग्र दृष्टिकोण बेहद प्रभावी माना जाता है. यह शरीर, मन और आत्मा पर ध्यान देता है और इसमें नियंत्रित सांस, शरीर की विशेष गतिविधियां और ध्यान शामिल हैं.
आयुर्वेद स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में अच्छी आरामदायक नींद पर जोर देता है. आराम करने, सुस्ताने, रिजुवनेट (जीर्णोद्धार) के लिए नींद जरूरी है. डीटॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया नींद के दौरान संपन्न होती है. नियमित नींद पैटर्न से शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है.
अव्यवस्थित जीवनशैली, काम का तनाव, नाइट शिफ्ट ड्यूटी और नियमित रूप से देर रात की गतिविधियां हमारी नींद के पैटर्न के साथ ही हमारे बायोलॉजिकल तालमेल में हलचल मचा देती हैं और हम या तो ज्यादा सोते हैं या पूरी नींद नहीं ले पाते. जल्दी सोने और जल्दी जागने के आयुर्वेदिक सिद्धांत का पालन करना, आपकी सेहत के लिए जादू कर सकता है.
रोजमर्रा का रहन-सहन, पर्यावरण से सामना और प्रदूषण त्वचा पर नकारात्मक असर डालता है. रिपेयर और रिजेनरेशन की प्रक्रिया रात में नींद के दौरान होती है. अच्छी नींद कॉर्टिसोल को कम करने में मदद करती है और सेल रिप्रोडक्शन और ग्रोथ को तेज करती है.
आयुर्वेद के तरीके से हॉर्मनी (समरसता) हासिल करने के लिए सभी पहलुओं पर समग्र रूप से काम करें. आखिरकार एक विज्ञान जो सदियों से जिंदा है, गलत नहीं हो सकता.
जब हर चीज संतुलित होती है तो शरीर सेहतमंद होता है, मन शांत होता है, त्वचा दमकती है और दिल खुशी के गीत गाता है.
(नूपुर रूपा एक फ्रीलांस लेखिका हैं और मदर्स के लिए लाइफ कोच हैं. वो पर्यावरण, फूड, इतिहास, पेरेंटिंग और ट्रैवेल पर लेख लिखती हैं.)
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