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वायरल हेपेटाइटिस ऐसी बीमारी है, जिससे पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया भर में एचआईवी से 10 गुना अधिक है. इस पब्लिक हेल्थ इश्यू पर तुरंत एक्शन लेने की जरूरत है. हेपेटाइटिस (लिवर की बीमारी) पांच प्रकार के वायरस (A, B, C, D और E) से फैलता है. इसमें से हेपेटाइटिस B सबसे अधिक संक्रामक और घातक है.
इन सभी वायरस के शुरुआती लक्षण लगभग समान हैं, जो इस बीमारी के वायरस की पहचान को मुश्किल बनाता है. इसके लक्षणों में थकान, जी मिचलाना, उल्टी, पेट में दर्द, पीलिया शामिल है.
भारत में 90 फीसदी से अधिक मामलों में उपचार के समय वायरस के प्रकार की पहचान नहीं हो पाती है. डॉक्टर संक्रमण खत्म करने के लिए लक्षण के आधार पर ही इलाज का सहारा लेते हैं.
किसी भी अन्य हेपेटिक वायरस की तुलना में हेपेटाइटिस B इंफेक्शन के कारण लिवर की बीमारी से मौत की आशंका कहीं अधिक होती है. अगर इसका इलाज ना कराया जाए, तो यह गंभीर रूप ले सकता है. यह लिवर को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर सकता है. इससे लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर भी हो सकता है.
भारत में करीब पांच करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त हैं. देश में हेपेटाइटिस B के मामलों में कमी लाने की जितनी जिम्मेदारी डॉक्टरों और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की है, उतनी ही आम लोगों की भी है.
यहां हेपेटाइटिस B के बारे में कुछ बातें हैं, जिन्हें आपको जरूर जानना चाहिए. इससे आप अपने आप को हेपेटाइटिस बी से सुरक्षित रख सकेंगे.
इसलिए जैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं, वायरल के प्रकार की जांच और तीव्र व गंभीर हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) इंफेक्शन में अंतर करना महत्वपूर्ण हो जाता है, जिससे रोगी तुरंत सही तरीके का इलाज शुरू करा सके.
एचबीवी (HBV) से संक्रमित होने वाले कुल लोगों में से आधे में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यहां तक कि उन्हें संक्रमण के बारे में भी पता नहीं होता है. इसका मतलब है कि वे लोग वायरस के एक्टिव कैरियर्स होते हैं और अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं.
बाकी आधे लोगों में वायरस के संपर्क में आने के बाद लक्षण दिखाई देने में एक से चार महीने तक का समय लग सकता है. इस दौरान ये संक्रमित लोग भी एचबीवी ट्रांसमिशन साइकिल का हिस्सा हो सकते हैं. यह इस वायरस की खतरनाक खासियत है, जिससे इसको नियंत्रित करना बहुत कठिन हो जाता है.
असुक्षित सेक्स और इंफेक्टेड टैटू या एक्यूपंक्चर निडिल्स को इंफेक्शन का प्रमुख ट्रांसमिशन रूट माना जाता है. हालांकि इंफेक्शन होने की कई अन्य वजह भी हैं.
यह कई व्यक्तियों को जोखिम में डालता है. एचबीवी नियंत्रण के लिए आम लोगों के बीच और स्थानीय समुदाय में दोबारा प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों के स्टरलाइजेशन के बारे में जागरुकता फैलाने की जरूरत है.
ज्यादातर वयस्कों में HBV का acute infection होता है, जो शरीर द्वारा खत्म कर दिया जाता है और आगे chronic HBV होने की सिर्फ 5 फीसदी आशंका रहती है.
वर्तमान में हमारे पास कोई भी ऐसा एंटीवायरल नहीं है, जो हेपेटाइटिस बी को पूरी तरह से ठीक कर सके. लेकिन हमारे पास दवा है जिससे कि जिंदगी भर ओरल एंटीवायरल्स के जरिये इससे सुरक्षित रहा जा सकता है. यह वायरल के लोड को कम और बीमारी की गति को धीमा करता है.
यही कारण है कि हमें आवश्यक रूप से बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के फुल वैक्सीनेशन कवरेज पर लगातार जोर देना चाहिए. वायरस के एक्सपोजर और ट्रांसमिशन को रोकने के लिए हमें इसके खतरों के प्रति जागरुकता कार्यक्रम चलाने चाहिए.
भारत ने साल 2030 तक वायरल हेपेटाइटिस को खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके लिए सरकार ने कई इनिशिएटिव, जिनमें सबसे उल्लेखनीय इंटीग्रेटेड इनिशिएटिव फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ वायरल हेपेटाइटिस है.
जैसे-जैसे हम 2030 के अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास तेज करेंगे, हमें इस बीमारी के खतरे की पहचान करने वाले अधिक से अधिक लोगों की जरूरत होगी.
(डॉ राकेश पटेल, एमबीबीएस, एमडी- जनरल मेडिसिन, डीएम- गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, डीएनबी- जनरल मेडिसिन. डॉ. पटेल को गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट के रूप में 24 साल का अनुभव है.)
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Published: 28 Jul 2018,09:26 AM IST