उत्तर भारत में वायु प्रदूषण देश के बाकी हिस्से से तीन गुना ज्यादा है. यहां के इलाकों में यातायात, आवासीय और खेती के स्रोतों से ज्यादा प्रदूषण हो रहा है.

शिकागो यूनिवर्सिटी, अमेरिका की शोध संस्था ‘EPIC’ (Energy Policy Institute at the University of Chicago-EPIC) द्वारा तैयार ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक’ (Air Quality Life Index – AQLI) के नए विश्लेषण में प्रदूषित हवा के कारण भारत के उत्तरी क्षेत्र यानी गंगा के मैदानी इलाकों (Indo-Gangetic Plain) में रह रहे लोगों की ‘जीवन प्रत्याशा’ (Life Expectancy) करीब 7 वर्ष कम होने की आशंका जताई गई है.

इन इलाकों के वायुमंडल में ‘प्रदूषित सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों से होने वाला वायु प्रदूषण’ यानी पार्टिकुलेट पॉल्यूशन (Particulate Pollution) विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के तय दिशानिर्देशों को हासिल नहीं कर सका है.

(क्रेडिट: https://aqli.epic.uchicago.edu/)
इस स्टडी में बताया गया है कि साल 1998 से 2016 में गंगा के मैदानी इलाके में वायु प्रदूषण 72 प्रतिशत बढ़ गया, जहां भारत की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है. 

वायु प्रदूषण पूरे भारत में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाके, जहां बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे प्रमुख राज्य और केंद्र शासित प्रदेश आते हैं, में यह स्पष्ट रूप से अलग दिखता है.

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पूरे भारत में अगर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की गाइडलाइन के मुताबिक 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पर्टिकुलेट मैटर को घटाया जाए, तो मानव जीवन प्रत्याशा से जुड़ी राष्ट्रीय औसत में 4.3 साल की बढ़ोतरी होगी.

अगर भारत अपने ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (National Clean Air Program-NCAP) के लक्ष्यों को पाने में सफल रहा और वायु प्रदूषण स्तर में करीब 25 प्रतिशत की कमी को बरकरार रखने में कामयाब रहा, तो ‘एक्यूएलआई’ ये दर्शाता है कि वायु गुणवत्ता में इस सुधार से आम भारतीयों की जीवन प्रत्याशा औसतन 1.3 वर्ष बढ़ जाएगी.

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Published: 31 Oct 2019,01:36 PM IST

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