ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका (Oxford-AstraZeneca) फेज-3 वैक्सीन ट्रायल को दुनिया भर में रोक दिया गया है क्योंकि कंपनी को मरीज की सुरक्षा से जुड़ी एक महत्वपूर्ण समस्या का सामना करना पड़ा है. कंपनी से वैक्सीन की उम्मीद लगाए लोगों और वैक्सीन बेचने वालों के लिए ये एक बुरी खबर हो सकती है.

लेकिन एक वायरोलॉजिस्ट जिनसे हमने बात की, उनके मुताबिक यह ‘अच्छी खबर' है. यह महत्वपूर्ण और बहुत जरूरी डेवलपमेंट है.

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका का वैक्सीन कैंडिडेट कोरोना वैक्सीन के विकास में जुटे 200 से ज्यादा वैक्सीन कैंडिडेट्स में से सबसे ज्यादा उम्मीद जगाने वाला रहा है क्योंकि हम नोवल कोरोना वायरस की इस महामारी से उबरने का रास्ता खोज रहे हैं.

एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कैंडिडेट ह्यूमन ट्रायल के तीसरे फेज में जाने वाली सबसे पहली वैक्सीन कैंडिडेट थी.

इसके फेज 1/2 के शुरुआती नतीजे काफी हद तक उम्मीद जगाने वाले रहे हैं, ट्रायल में पार्टिसिपेंट्स में एंटीबॉडी और T सेल प्रतिक्रिया दोनों देखी गई थी.

सामान्य हालात में, किसी चल रहे ट्रायल को रोकना भी सामान्य होता है. लेकिन यह सामान्य हालात नहीं हैं. दुनिया थक चुकी है और सरकारों द्वारा नियामकों यानी रेगुलेरटरों को इस प्रक्रिया को रफ्तार देने के लिए मजबूर किए जाने और राजनीतिक कारणों से वैक्सीन के लिए समय-सीमा का ऐलान कर देने, वहीं रूस जैसे देशों में फेज 3 के नतीजे आने से पहले बाजार में वैक्सीन लाने के लिए प्रोडक्शन को देखते हुए ये घटना जरूरी रियल्टी चेक के तौर पर सामने आई है.

‘ये भरोसा बढ़ाने वाला है’

एक पार्टिसिपेंट में न्यूरोलॉजिकल लक्षण पाए जाने पर दुनिया भर में ट्रायल रोक दिया गया है, एस्ट्राजेनेका ने ट्रायल रोकने को “अतिरिक्त सावधानी में उठाया गया कदम” बताया है.

अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील कहते हैं,

दवा या वैक्सीन के सभी बड़े रैंडम ट्रायल में दवाएं कई तरह के लोगों को दी जाती हैं. इनमें से कुछ लोगों को पहले से ही ऐसी बीमारियां हो सकती हैं जिनका अभी पता नहीं चला था और उन पर दवा का उलटा असर हो सकता है. यही वजह है कि किसी दवा या वैक्सीन को मंजूरी देने से पहले ट्रायल की जरूरत होती है.

वह कहते हैं कि इस तरह के ट्रायल में यह असामान्य बात नहीं है, “अच्छी बात यह है कि इन प्रतिकूल घटनाओं को पहचानने और उन्हें सुधारने के लिए एक सिस्टम है. यह अच्छा है और ट्रायल पर भरोसा पैदा करेगा.”

बेंगलुरु में रहने वाले महामारी विज्ञानी डॉ. गिरिधर बाबू भी डॉ. जमील से सहमति जताते हुए कहते हैं, “सभी चल रहे वैक्सीन ट्रायल इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से रेगुलेट होते हैं. ट्रायल से जुड़ी हर छोटी या बड़ी घटना की एक समिति को खबर करनी होती है, जिसका नाम डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड है. ट्रायल को रोकने का अधिकार बोर्ड के पास है. इस तरह की बातें किसी वैक्सीन के ट्रायल में आम हैं.”

असल में यह एक राहत की बात है क्योंकि इसका मतलब है कि तय प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है और हम ट्रायल में जल्दबाजी नहीं कर रहे हैं.
प्रोफेसर गिरिधर आर. बाबू, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, बेंगलुरु

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी यह कहते हुए एक बहुत ही साफ बयान दिया है कि 2021 के मध्य से पहले तक लोगों के बड़े पैमाने पर टीकाकरण की उम्मीद नहीं है. WHO की प्रवक्ता मार्गरेट हैरिस कहती हैं, “इस फेज-3 ट्रायल में ज्यादा समय लगता है क्योंकि हमें यह देखने की जरूरत है कि वैक्सीन असल में कितना बचाव करती है और हमें यह भी देखना होता है कि यह कितनी सुरक्षित है.”

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शुरुआती वैक्सीन पर ज्यादा भरोसा नहीं जता रहे कई एक्सपर्ट

एस्ट्राजेनेका का प्रमुख वैक्सीन कैंडिडेट कॉमन कोल्ड का एक कमजोर वर्जन- एडेनोवायरस है, जिसमें SARS-CoV-2 के प्रोटीन में से एक प्रोटीन का जीन होता है.

एडेनोवायरस को कोरोनावायरस के खिलाफ एक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया को प्रेरित करने के लिए डिजाइन किया गया है. ऐसा तरीका किसी भी मंजूर हुए वैक्सीन में इस्तेमाल नहीं किया गया है, लेकिन इबोला सहित दूसरे वायरस के खिलाफ प्रयोगात्मक वैक्सीन में इसका टेस्ट किया गया है.

दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों ने लगातार चिंता जताई है कि हो सकता है फर्स्ट जनरेशन वैक्सीन कैंडिडेट यानी शुरुआती वैक्सीन सबसे अच्छे न हों.

वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में ड्रग डेवलपमेंट एंड रिसर्च के विशेषज्ञ माइकल एस. किंच ने वाशिंगटन पोस्ट को बताया, “असल हालात शायद वैसा ही होने जा रहा है जैसा हमने एचआईवी/एड्स के मामले में देखा था. एचआईवी के मामले में भी, हमारे पास फर्स्ट जनरेशन दवाएं थीं. अब पलट कर देखते हैं तो वह काफी औसत दर्जे की दवाएं थीं. मुझे अफसोस है- और लोग इसे सुनना पसंद नहीं करेंगे, लेकिन मैं इसके बारे में लगातार बता रहा हूं- हमें खुद को इस बात के लिए तैयार करना होगा कि हमारे पास बहुत अच्छी वैक्सीन नहीं होगी. मेरा अंदाजा है कि वैक्सीन की पहली जेनरेशन औसत दर्जे की हो सकती है.”

वैक्सीन के मामले में जल्दबाजी क्यों सही नहीं है?

इससे पहले फिट से बातचीत में, मंगलुरु की येनेपोया यूनिवर्सिटी में बायोएथिक्स के एडजंक्ट प्रोफेसर और शोधकर्ता अनंत भान ने कहा था, “वैक्सीन से जुड़ी चिंताएं एक खास पहलू हैं. कुछ सवालों के जवाब दिए जाने की जरूरत है: क्या हमारे पास सुरक्षा और असर को लेकर पर्याप्त डेटा है? क्या हमें पता है कि यह कितनी इम्युनिटी प्रतिक्रिया पैदा करती है और कितने समय के लिए? हमें कितनी डोज लेनी चाहिए? क्या यह सभी उम्र के लोगों के लिए असरदार है?"

“जब आप समय-सीमा को घटाते हैं, तो आपके लिए इन सवालों का सही तरीके से जवाब देना मुमकिन नहीं हो सकता है. वैक्सीन से पैदा होने वाली इम्युनिटी प्रतिक्रिया और समय के बारे में हमारे पास जरूरी जानकारी नहीं हो सकती है. अगर हम कम समय का डेटा देखते हैं, तो हम सिर्फ उस अवधि के लिए इससे सुरक्षा और असर को समझ सकते हैं. अब अगर आपके पास केवल 2-3 महीनों के लिए प्रतिरक्षा का सबूत है और बाजार में एक वैक्सीन बेचने का लाइसेंस जारी कर देते हैं, तो इसके लंबे समय तक बचाव के बारे में सवाल अभी भी मौजूद रहेंगे. इसके लिए हमें कुछ महीने या साल इंतजार करना होगा.”

इस अनिश्चितता का अधिकांश हिस्सा वायरस के नए होने से उपजा है. हालांकि हम कुछ महीनों पहले SARS-CoV-2 से निपटने के लिए जैसे थे, अब उससे बेहतर हैं, लेकिन वायरस के बारे में हमारी ज्यादातर समझ अभी भी अधूरी है.

इस बीच, विशेषज्ञ यह देखने के लिए ‘प्रतिकूल’ घटना की जांच कर रहे हैं कि क्या यह इकलौता मामला था या ऐेसे और भी मामले हैं जिनका समाधान करना होगा. कुल मिलाकर, अगर मामला वैक्सीन से जुड़ा नहीं था तो अन्य निगरानियों के साथ वैक्सीन का ट्रायल जारी रहेगा.

दूसरी वैक्सीन निर्माता Pfizer Inc और BioNTech, Moderna Inc, Sanofi और चीन की SinoVac Biotech Ltd के वैक्सीन कैंडिडेट भी हैं, जो फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल में हैं.

ये सभी बारीकी से जांच करेंगी कि क्या उनके वैक्सीन कैंडिडेट भी इस तरह के लक्षण दिखाते हैं. लेकिन इसकी संभावना नहीं है कि एस्ट्राजेनेका का ट्रायल रुकने से उनके ट्रायल पर कोई असर पड़ेगा.

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