भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की एक रिपोर्ट जिसमें भारत के प्रमुख शहरों में पानी की गुणवत्ता की जांच की गई थी, केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने जारी की.
रिपोर्ट के नतीजे राजधानी दिल्ली के लिए डरावने थे: सर्वे किए गए 21 शहरों में से दिल्ली के पानी की गुणवत्ता में अंतिम पायदान पर थी और मुंबई आश्चर्यजनक रूप से पहले पायदान पर थी.
अब सर्वे के नतीजों को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खारिज कर रहे हैं और यह मुद्दा राजनीतिक खींचतान में अटक गया है- लेकिन असल में आपको जानना चाहिए कि खराब गुणवत्ता का पानी पीने से आपकी सेहत पर क्या असर पड़ता है? यह उन बच्चों पर क्या असर डालता है, जो बिना वाटर प्यूरिफिकेशन या आरओ वाले घरों में रहते हैं?
FIT ने फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉ अमिताभ पार्थी और डॉ अश्विनी सेतिया से बात की ताकि खराब पानी पीने से हमारी सेहत पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सके.
दिल्ली के पानी के नमूने 19 में से 11 मानदंडों पर फेल हो गए, जिनमें गंध, TDS, PH, मैलापन, रंग, नाइट्रेट, अमोनिया, क्लोराइड और एल्यूमीनियम शामिल हैं.
इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार, BIS द्वारा परीक्षण किए गए मानदंड थे: रंग, गंध, pH, टोटल डिजॉल्व सॉलिड, कठोरता, क्षारीयता, तत्व यौगिक जैसे आयरन, मैंगनीज, सल्फेट, नाइट्रेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक, क्रोमियम, कॉपर, सायनाइड, लेड, मर्करी, जिंक और कोलीफॉर्म बैक्टीरिया.
नल के पानी की गुणवत्ता परखने के लिए दिल्ली के 11 इलाकों से सैंपल इकट्ठा किया गया था, जिनमें से सभी में पानी की गुणवत्ता का स्तर खराब मिला.
डॉ अश्विनी सेतिया कहते हैं, “पानी फंगस वाले पाइपों से लेकर गंदे स्टोरेज ड्रमों तक कई जगहों पर दूषित हो जाता है. सीवेज के पानी के संपर्क में आने से भी इसके संक्रमित होने की बहुत संभावना है, इसलिए इससे हेपेटाइटिस A+B, एक्यूट गैस्ट्राइटिस से लेकर डायरिया तक सभी तरह के संक्रमण हो सकते हैं. अब, फंगस की समस्याएं सिर्फ कम इम्यूनिटी वाले लोगों को छोड़कर आमतौर पर आम लोगों को प्रभावित नहीं करती हैं, लेकिन जल जनित संक्रमणों का भारी जोखिम है. ”
यह जानना जरूरी है कि पानी में कौन से दूषित तत्व होते हैं. डॉ पार्थी कहते हैं, “बहुत ज्यादा लेड विषाक्तता पैदा कर सकता है, अगर पानी बहुत ज्यादा एसिडिक हो तो इससे पेट की समस्या और गैस्ट्राइटिस हो सकता है. बहुत ज्यादा आर्सेनिक या सायनाइड भी बहुत बड़ी समस्या है.”
वह अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, 'दूषित पानी से पेचिश से लेकर ब्रेन डैमेज, न्यूरोलॉजिकल डैमेज और कई दूसरी परेशानियां हो सकती हैं.ट
इसके अलावा, भारत में डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के साथ जल जनित और संचारी रोग कई लोगों के लिए एक बड़ी समस्या है.
इसके अलावा, अधिकांश दिल्लीवासी वाटर प्योरिफिकेशन सिस्टम का खर्च नहीं उठा सकते हैं, ऐसे में उनका क्या होगा? उनके बच्चों का क्या होगा? उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है.
लेकिन, क्या आरओ वाटर सचमुच इसका जवाब है?
डॉ सेतिया कहते हैं, “आरओ बिना पैसे के नहीं आता.”
जो लोग आरओ का पानी पीते हैं, वे शुद्ध पानी पी रहे हैं, उसके प्रदूषकों और विषाक्त पदार्थों को हटाकर, लेकिन साथ ही इसके जरूरी मिनरल्स भी हट जाते हैं.
वह बताते हैं कि यह कहना बहुत मुश्किल है कि जो कोई खराब पानी पीता है, वह बीमार पड़ जाएगा, लेकिन कुल मिलाकर बड़ी आबादी खतरे में है. “निश्चित रूप से अफवाहें फैलाना और इस अनुपात को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना गलत है - इसमें निहित कारोबारी हितों के बारे में सोचें, खासकर वाटर प्योरिफिकेशन कंपनियों के बारे में."
तो अगर आरओ सबसे बेहतर उपाय नहीं है, तो हमें क्या करना चाहिए?
“पीने लायक पानी मुहैया कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, नहीं तो यह हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. बेशक एनजीओ और अन्य सिविल सोसाइटी संगठनों को इसके लिए संघर्ष करना होगा.”
वह कहते हैं कि आम आबादी की इम्यूनिटी (प्रतिरक्षा प्रणाली) में सुधार होता है, जब वे कम मात्रा में नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों के संपर्क में आते हैं. शरीर कई तरह के बैक्टीरिया के लिए प्रतिरोध प्रणाली विकसित कर लेता है. लेकिन हां, एक तय सीमा से आगे वायरस और बैक्टीरिया बहुत सी समस्याएं पैदा करते हैं. शरीर केवल एक तय सीमा तक ही बर्दाश्त कर सकता है.
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